रविवार, 14 नवंबर 2010

मान्या का जन्मदिन

बैंगलोर--14 नवम्बर


मान्या होगई चार साल की ।
बातें करती है कमाल की ।
साँसों को ताजी बयार सी ,
खुशबू है मेरे रूमाल की

------------------------------------

बाल-दिवस यानी 14 नवम्बर को नेहरू जी के जन्मदिन के रूप में ही जाना जाता है । पर मेरे लिये आज का दिन और भी बहुत खास दिन है । क्यों न हो आज के दिन
ही तो मान्या हमारे जीवन में आई और प्रशान्त--सुलक्षणा को पिता--माता के साथ मुझे भी एक नई पदवी मिली---दादी । यहाँ (बैंगलोर ) के सेन्ट फिलोमिना हास्पिटल में रात-भर की प्रतीक्षा के बाद एक नर्स ने कोमल और आत्मीय मुस्कराहट के सा
थ जब यह नन्ही परी मेरी गोद में दी थी तब मुझे लगा कि मैं अचानक काफी बडी और
ज्यादा खास होगई हूँ । मान्या को पाकर ही महसूस हुआ कि दादी बनने का सुख सचमुच जीवन की प्यारी और खूबसूरत उपलब्धि है । उसके लिये मैंने समय--समय पर कई कविताएं लिखी हैं जिनमें कुछ गुल्लक, पलाश व चकमक में छपीं भी हैं। इसी ब्लाग में 15 जून को प्रकाशित-- मान्या को लिखना तो देखो--विता आप पढ ही चुके हैं । नही , तो अवश्य पढें । भाई रवि ने अपने ब्लाग -सरस पायस में भी दो कविताएं लीं हैं । उन्ही में से कुछ कविताएं आप यहाँ भी पढें और मान्या को अपना आशीर्वाद दें---

( 1 )
नाजुक चंचल है
नन्ही कोंपल है
पत्तों पर शबनम सी निर्मल
झिलमिल-झिलमिल है
फुलबगिया सी मेरी गुडिया
कोमल--कोमल है ।

रेशम सी गभुआरी अलकें
पलकें हैं पंखुडियाँ
कोई आहट सुनती है तो
झँपकाती है अँखियाँ ।
विहगों के कलरव जैसी वह
हँसती खिलखिल है ।
फुलबगिया सी ...।

किलक-किलक कर पाँव चलाती
चप्पू दोनों हाथ चलाती
पंखुडियों से होंठ खोल कर
आ.आ..ऊँ..ऊँ..ऊँ बतियाती ।
नदिया की धारा बहती ज्यों
कलकल कुलकुल है ।
फुलबगिया सी...।

नन्हे नाजुक हाथ
हथेली नरम नवेले पत्ते
शहतूती सी हैं अँगुलियाँ
गाल शहद के छत्ते ।
फूलों की टहनी पर जैसे
चहके बुलबुल है । 
फुलबगिया सी .मेरी गुड़िया 
कोमल कोमल है ।
( 2 )
मान्या होगई कितनी खब्बड.
लोहा लक्कड माटी मक्कड
रोटी बिस्किट कागज कक्कड
जो कुछ भी हाथों में आए,
सीधा मुँह में जाए ।

कितने नखरे हैं हमसे
खाती--पीती थोडा ही ।
अपने हाथों से खाना चाहे
हाथी--घोडा भी ।

पेन सम्हालो छुन्नू जी
अखबार किताब उठालो ।
अपना चश्मा ,घडी बचाना चाहो
अभी बचालो ।

लगती है हर चीज उसे तो
टॅाफी रंग-बिरंगी ।
जैसे हनुमान ने समझा
सूरज को नारंगी ।
(3)
जाग गई है नन्ही मान्या,
गहरी निंदिया सोकर ।
जैसे हवा अभी आई है,
अपनी आँखें धोकर ।

नींद होगई है पूरी
अब जीभर कर खेलेगी ।
फुर्ती से हर चीज तुम्हारे
हाथों से ले लेगी ।
(4)
डु्ड्..डू...डुड्.ड्...आहा..
होगई अपने आप खडी
हुई पहले से जरा बडी ।

रुपहली बाल बाजरा की
दूधिया दानों से है जडी
मटर की बेल सजाए खडी
श्वेत पुष्पों की जैसे लडी ।

खींचती पल्लू ,पकडे हाथ
छुडाएगी अब मेरी घडी ।
हुई पहले से जरा बड़ी ।
(5)

मान्या स्कूल चली
गुंजा सी खिली--खिली ।
सजधज दरवाजे पर
ज्यों भोर खडी उजली।

बस ढाई साल की है यह
नटखट कमाल की है यह
चंचल है मनमौजी है
अपने खयाल की है यह ।

बस्ता में भर कर सपने
मन में ले जिज्ञासाएं ।
चलती है उँगली पकडे
कल खुद खोजेगी राहें ।

जो पाठ आज सीखेगी
कल हमको सिखलाएगी
खुद अपना गीत रचेगी
अपनी लय में गाएगी ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. blog ke avlokan aur tippadi ke liye abhari hu.ek sujhav- bengaluru men hain to sahityik goshthiyon men bhag len.
    sadar naman.

    जवाब देंहटाएं
  2. गिरिजा जी! आपकी दादीगिरी का जवाब नहीं.. सही मायने में बाल दिव्स इसको कहते हैं जब अपना खोया बचपन अपने बच्चों मे वापस मिल जाए और आपने तो सूद समेत पा लिया.. हर पल को जीवंत करती मान्यता की दादी का प्यार.. बहुत मीठे अनुभव!! मेरी तरफ से भी कोटि कोटि आशीष प्यारी मान्यता को ( विलम्बित ) जन्म दिन पर!!

    जवाब देंहटाएं
  3. girija ji naman.
    pandeypatrika@gmail.com par aapke mail ka swagat hai. main bangalore me hoon.
    namaskar.

    जवाब देंहटाएं
  4. मान्या के जन्मदिन की विलंबित बधाई स्वीकारें. उस नन्ही परी के लिए लिखे सुंदर कविताओं के द्वारा आपके और मान्या के स्नेहमय बंधन की प्रगाढ़ता के दर्शन मन को अभिभूत कर गए. वो प्यारे मासूम से लम्हें आंखों के सामने जैसे जीवंत हो उठे. उन स्नेहिल पलों को साझा करने के लिए आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

    जवाब देंहटाएं