सोमवार, 25 अप्रैल 2011

दो लघु कथाएं

(1)
गन्दगी
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ए......ए,ए मौडा ,यहाँ नही । आगे ले जा ।
एक चौदह-पन्द्रह साल का लडका किसी चेम्बर का मलबा कनस्तरों में भर कर नाली में बहाने के लिये ले जा रहा था कि खिडकी में बैठी औरत चिल्लाई । उसकी आवाज सुन कर एक दो लोग और आगए । उनमें मोहल्लावासी होने का दायित्त्व जागा । इस एक एक करके उसे टोकने लगे ।
क्यों रे सुना नही , कहाँ से ला रहा है भर--भर कर । इधर क्या आदमी नही रहते जो गन्दगी को इधर बहाने ले आया ।
भाई साब मैं तो आगे ही .....। लडका अपनी सफाई में कुछ कहता तभी दूसरा आदमी आगया ।
ओय , इधर क्या जानवर रहते हैं ..हें..। गरीबों का मोहल्ला है तो हर कोई फालतू ही समझ लेता है । होंगे,, भी.आई.पी. तो अपने घर के होंगे।
अरे यार ये लोग भी तो ऐसे ही होते हैं । पूरे जूताखोर । रौब के मारे चलते हैं और हम जैसों को आँखें दिखाते हैं। कोई उठवा तो ले इनसे एक पत्ता भी ...।
इतने सारे लोगों के तीखे तेवर देख कर लडका सहम गया । उनकी बातों से कुछ आहत भी हुआ । तिलमिला कर बोला ---आप बेकार ही क्यों चिल्ला रहे हैं । मैने गन्दगी को यहाँ बहा तो नही दिया ।
अच्छा ...---एक आदमी दबंग की तरह बाँहें चढाता हुआ बोला---यहाँ कनस्तरों को खाली कर देता तब कहते तुझसे । हें ।
अगर नही टोकते तो साफ बहा ही दिया होता कि नही ...। दूसरा आदमी आगया ।
हेकडी तो देखो लौंडे की---बहा तो नही दिया ---अभी दो हाथ पड गए तो सारी अकड भूल जाएगा ।
ऐसे कैसे पड जाएंगे हाथ । गन्दगी को क्या हम अपने घर ले जाएं...। लडके का आत्मसम्मान जागा ।
तो फिर आ ...आज तेरी हेकडी को मैं निकालूँ ।--एक और आदमी मूँछों पर हाथ फेरता हुआ बढा ही था कि लडका दोनों कनस्तरों को वही पटक कर भाग लिया ।
वहाँ इकट्ठे हुए लोगों ने एक विजयी ठहाका लगाया ।
ससुरा ... भाग गया । नही तो उसे बताते कि इस मोहल्ले में कोई ऐरे--गैरे लोग नही रहते । अब कभी हिम्मत नही करेगा भूल कर भी..।
अरे , वो तो मेरी नजर पड गई वरना वो तो यही बहाने वाला था ।---वह औरत ,जो सबसे पहले चिल्लाई थी , बोली ।
और नही तो क्या बहन जी ..आपने अच्छा किया ।हम लोग एक मोहल्ले में रहते हैं तो हम सब की जिम्मेदारी बनती है कि सफाई का ध्यान रखें ।
सभी बडे सौहार्द्र के साथ अपनी सूझबूझ और जिम्मेदारी का बखान कर रहे थे । तभी गन्दी बदबू ने उन्हें अहसास कराया कि न केवल कनस्तर वही लुढके पडे हैं बल्कि उनसे गन्दगी भी बह कर फैल रही है ।
अरे,....कमबख्त यही पटक गया ..। कहते हुए सबने अपनी-अपनी नाक पर रूमाल रख लिया ।
इससे तो अच्छा था कि वह नाली में ही बहा जाता । ---एक ने बगल में थूकते हुए कहा ।
अब क्या होगा भाई----दूसरा वहाँ से काफी दूर जाकर बोला ।
होगा क्या , जमादार को खबर कर देते हैं । यह कह एक--एक कर सभी अपने घरों में बन्द हो गए ।
कनस्तरों से निकल कर बदबू छोडती हुई गन्दगी लगातार गली में बह रही थी ।
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(2)
स्वराज
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वीरू भाई, नल में टोंटी लगवा लो । पानी बेकार ही बह रहा है । ---श्रीवास्तव जी अपने पडौसी को समझा रहे थे ।
सब जानते हैं कि कुछ ही दिन पहले इस मोहल्ले के लोग किस तरह बाल्टी भर पानी के लिये सडक, चौराहे तक भटकते थे । कटोरी भर पानी भी फालतू नही फेंकते थे ।
आखिर एक दिन तंग आकर लोग इकट्ठे होकर महापौर के दफ्तर पहुँच गए । जमकर नारे बाजी की और विरोधी पार्टी के एक कार्यकर्ता ने दमदार भाषण भी दिया---
अँग्रेजी शासन में जब जनता पिसी तो हमारे वीरों ने कुर्बानियाँ देकर उन्हें भगाया और स्वराज स्थापित किया पर पर आजादी के बासठ साल बाद भी हमारी सरकार हमें पानी तक उपलब्ध नही करा सकी है । एक-एक बूँद पानी के लिये लोग पूरे दिन संघर्ष करते हैं। नही चाहिये ऐसे नेता ,ऐसे प्रशासक । महापौर हाय..हाय..।
महापौर को अपनी कुर्सी डोलती नजर आई सो तुरन्त इस मोहल्ले के लिये अलग बोरिंग की व्यवस्था करदी । अब पानी का कोई संकट नही है । एक-दो घण्टे जितना चाहे पानी लो ।
भले ही हमें भरपूर पानी मिल रहा है भाई ,लेकिन इसे व्यर्थ नही बहाना चाहिये पानी की एक--एक बूँद कीमती होती है ।--- श्रीवास्तव जी वीरेन्द्र को यही समझा रहे थे ।
अरे भाई साब काहे फालतू की टेंसन में दुबला रहे हो ।--वीरू ने ढिठाई से हँसते हुए कहा ----
पानी कौनसा तुम्हारे घर से जा रहा है ।
घर से तो न मेरे जारहा न तुम्हारे । लेकिन मेरे भाई जल के भण्डार की भी सीमा होती है ।
तो ठीक है न । खतम होजाएगा तो.......बस जरा सा हंगामा करने की जरूरत है सरकार फिर कोई इन्तजाम करेगी ।
श्रीवास्तव जी के पास अब वीरू को समझाने के लिये कुछ भी नही था । पानी नाली में बहे जा रहा था ।

12 टिप्‍पणियां:

  1. समाज की विद्रूपताओ व विसंगतियों पर प्रकाश डालतीं लघुकथाएँ !

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  2. दोनो लघुकथायें सोचने को मजबूर करती हैं।

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  3. एक दम पड़ोस से उठाई हुई कहानियां... ये कहानी नहीं सवाल है!!

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  4. आपकी दोनों लघुकथाएँ आज की गिरी और खोखली सोच पर सशक्त प्रहार करती हैं । आपकी अभिव्यक्ति से मेरी अनुभूति का तलामतेल बैठ गया है । इस सार्थक विजय पर आपको बधाई ।
    सुधा भार्गव

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  5. कडवे सच पर तीखा प्रहार करती सार्थक रचना के लिये बधाई ।

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  6. सार्थक चोट करती अतिप्रभावशाली लघुकथाएं....

    अतिसुन्दर इस लेखन के लिए आपका आभार...

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  7. यही कहानियां तो घटती रहती है हमारे जीवन में । बहुत सुंदर ।

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  8. मम्मी, बहुत सुन्दर चित्रण है! चंद घटनाएँ पर अगर उनका हमारे जीवन पर दूरगामी प्रभाव अच्छा ना हो, वो बड़ी ही होतीं हैं!

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  9. पहली लघु कथा में आपकी अभिव्यक्ति देख कर आश्चर्य चकित हूँ
    बहुत ही ज्यादा उम्दा सृजन जिस में व्यावहारिकता है
    कुछ भी कृत्रिम नहीं लग रहा एक प्राकर्तिक रचना
    अगर आपने अपनी पुस्तक लिखी तो उसका प्रथम खरीदार बनने का अभिलाषी हूँ
    आपको रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद

    मैंने मदर्स डे पैर चाँद पंक्तियाँ लिखी हैं इस तुच्छ प्रयास को आपको समर्पित करता हूँ
    माँ माता जननी मम्मी तेरे संबोधन अपार हैं
    तेरी दुआओं से ही तो मेरा यह सुखद संसार है
    हम तेरे बच्चे तेरी ही तो छाया हैं माँ
    दुःख सहकर भी ख़ुशी देती ऐसा तेरा व्यव्हार है माँ
    मेरी गलतियों को हसकर टाल देती यही तो तेरा प्यार है माँ
    नारी से बढकर बहुत अधिक तू ही तो मेरा संसार है माँ
    अंततः बस इतना ही करना चाहता हूँ काम
    मुझे यह संसार दिखाने वाली ऐ परम शक्ति तुझे मेरा शत शत प्रणाम

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