गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

कुछ नही तो यही सही

आजकल कुछ नया नही सूझ रहा । इसलिये पुरानी रचनाओं को देकर ही रिक्ति-पूर्ति की जारही है । यहाँ यह लगभग पन्द्रह वर्ष पुराना गीत है ।
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मेरे दिल का हाल ,न पूछो
कितना क्यूं बेहाल ,न पूछो
हर संवेदनशील आदमी
क्यूं रद्दी रूमाल ,न पूछो ।

क्या अपने क्या बेगाने
चाहा सबसे बस अपनापन
पर इस बस्ती में रहते हैं
सब कितने कंगाल ,न पूछो
मेरे दिल का हाल ,न पूछो।

करे कोई अपराध
सजा मिल जाती और किसी को
कैसे-कैसे मिल जाती है
हत्यारों को ढाल न पूछो
मेरे दिल का हाल न पूछो ।

केवल दर्द मिलेगा तुमको
जहां जुडोगे दिल से
ह्रदय की राहों में बिखरे हैं
कितने जंजाल न पूछो
मेरे दिल का हाल न पूछो ।

सब उगते सूरज के गायक
यह ढलती संन्ध्या का
साथी दुखी अकेलों का,
इस मन की उल्टी चाल पूछो
मेरे दिल का हाल न पूछो ।

बूंद-बूंद को तरसे पाखी
धूल उडी आंखों में
उजडे शुष्क मरुस्थल में
अब कैसे नदिया-ताल ! न पूछो
मेरे दिल का हाल न पूछो

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत भावपूर्ण गीत !
    आप अपने खजाने से
    ऐसे मोतियों को ही निकले
    अच्छा लगा !
    मेरे ब्लॉग पे आपका हार्दिक स्वागत है !
    वक्त मिले तो जरुर पधारें !
    आभार !

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  2. "कैसे-कैसे मिल जाती है
    हत्यारों को ढाल न पूछो"

    क्या बात है! बहुत सुंदर!
    भावपूर्ण।

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  3. आपके पास विषयों का अकाल.. हो ही नहीं सकता!! मेरे लिए तो खैर यह गीत भी नवीन था और आनंदित कर गया!!
    नववर्ष आपके लिए नए विषय और आपकी अभिव्यक्तियों की नयी ऊंचाई लेकर आयें!! और हाँ!! समस्त परिजनों के लिए हैप्पी न्यू ईयर!!

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  4. कुछ नहीं में कितना कुछ पूछ डाला आपने, सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  5. सुंदर अभिव्यक्ति बेहतरीन भावभीनी रचना,.....
    नया साल सुखद एवं मंगलमय हो,....

    मेरी नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--

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  6. बेहतरीन अभिवयक्ति.....नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये.....

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  7. बहुत अच्छी कविता।
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  8. जनता की पीड़ा को करती,व्यक्त आपकी सुन्दर रचना।
    नये वर्ष की शुभ वेला पर इस,ढेर आपको शुभकामना।।

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  9. बहुत अच्छी कविता...
    शुभकामनाएँ.

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