शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

राष्ट्रगीत के सम्मान में

अंगरेजी राज में राष्ट्रगान के रूप में 'गॅाड सेव द क्वीन ' गीत गाना अनिवार्य था . तब श्री बंकिमचन्द्र चटर्जी ने , जो उस समय सरकारी अधिकारी थे , उसके विकल्प-स्वरूप सन् 1876 ई. में  'वन्दे-मातरम्' की रचना की थी .बाद में इसे और बढ़ाकर अपने उपन्यास आनन्दमठ में शामिल किया गया  था .  यह गीत हर देशभक्त का क्रान्ति गीत था । कांग्रेस के अधिवेशनों में इसे ध्येय गीत रूप में गाते थे . वन्देमातरंम का जयघोष नौजवानों में जोश भर देता था . इसे गाते गाते कितने ही वीरों ने स्वतन्त्रता के महायज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दी थी . नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने इसे राष्ट्रगीत का दर्जा  दिया था . 24 जनवरी 1950 को संविधान द्वारा भी 'जन-गण-मन' को राष्ट्रगान तथा इसे राष्ट्रगीत घोषित किया गया . राष्ट्रगीत के रूप में 'जन गण मन...' की तरह  इसके पहले अन्तरा को ही मान्य किया गया है .  विश्व के दस लोकप्रिय गीतों में वन्देमातरम् का दूसरा स्थान है . हर भारतवासी के मन प्राण में बसा यह गीत सर्वोच्च और सच्चे अर्थ में मातृ-भूमि की वन्दना का गीत है . हमारे स्वातन्त्र्य-आन्दोलन का गान ,वीरों के उत्सर्ग का मान ,और  हर भारतवासी का अभिमान है .अपने राष्ट्रध्वज और राष्ट्र्गान की तरह ही राष्ट्रगीत  भी हर भारतीय के लिये सम्माननीय है .
 राष्ट्रगीत के सम्मान में  लिखी यह  कविता आप भी पढ़ें . 

प्रेरणा विश्वास का वरदान वन्दे-मातरम्

तिमिर से संघर्ष का ऐलान वन्दे-मातरम्
गूँज से जिसकी धरा जागी गगन गुंजित हुआ ,
क्रान्ति का दिनमान गौरवगान वन्दे-मातरम् 

गीत यह गाया दिशाओं ने ,क्षितिज के द्वार खोले

रंग सिन्दूरी बिखेरा पंछियों ने पंख तोले 
पर्वतों ने सिर झुका कर रोशनी को राह दी ,
हर गली घर द्वार से  उत्सर्ग को मन प्राण बोले ।
देशहित बलिदान का  सन्धान वन्दे मातरम्

हृदय में जिनके भरा परतन्त्रता का रोष था 

क्लान्ति का ही कोश था, मन में समाहित रोष था ।
प्राण रखकर हाथ, निर्भय आगए रण भूमि में, 
 हुंकार ही जिनकी समूची  क्रान्ति का उद्घोष था 
उन सपूतों का यही  जयगान वन्दे मातरम् ।

गर्व है इतिहास का ,यह तो  नहीं हैं गोटियाँ 

आग पर इसकी न सेको राजनैतिक रोटियाँ 
साम्प्रदायिकता ,अशिक्षा जातिगत दलगत जहर
गहन भ्रष्टाचार का सर्वत्र टूटा है कहर ।
इन सभी से युद्ध का आह्वान वन्देमातरम्

 
मातृ-वन्दन, मन्त्र पावन ,गा इसे जो मिट गए 

जिन शहीदों की प्रभा से मेघ काले छँट गए ।
 जाति का या धर्म का उनको कहाँ कब भेद था,
बस उन्हें तो जननि की परतन्त्रता का खेद था ।
एक था उनका धरम-ईमान वन्दे मातरम् ।

अस्तित्त्व का यह मान है ,सम्पूर्णता का भान है
भारती के भाल का यह गर्व है, अभिमान है ।

यह सबेरा है सुनहरा एक लम्बी रात का ,
आत्मगौरव और अपने आपकी की पहचान है ।
जननि का अनुपम अतुल यशगान वन्देमातरम् ।
प्रेरणा विश्वास का वरदान वन्देमातरम्।

11 टिप्‍पणियां:

  1. वन्दे मातरम ...
    शुभकामनायें !

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  2. गणतंत्र दिवस २६/०१/२०१३ विशेष ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सब को गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं ! आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. दीदी,
    आज आपके इस गीत पर तो बस खड़े होकर, सीना तानकर, सावधान की मुद्रा में मिलकर गाते हुए स्कूल के दिनों में खो जाने का जी चाह रहा है.. गीत की लय मन में जोश भर दे रही है..
    गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ!!

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  4. उम्दा प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई...६४वें गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाएं...

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  5. भारत माँ की स्तुति ही है आपकी कविता ...... बहुत बहुत सुंदर ....

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  6. भारत की आजादी का सम्पूर्ण इतिहास लिए तथा वन्देमातरम की वाणी को अपने शब्दों में व्यक्त करने बाला गीत सचमुच जैसा कि मोनिका जी ने कहा है कि यह भारत माँ की ही स्तुति है भारत माँ की भक्ति की इस सफल प्रस्तुति पर आपका आभार और अब आपकी यह रचना मेरे ब्लागों पर अपने पाठकों के लिए उपलब्ध होगी कृपया आकर देखें
    http://debaicity.blogspot.in/ पर हमे अपने ब्लाग पर आपकी उपस्थिति का अहसास अवस्य कराऐं धन्यबाद एसी श्रेष्ठ कृति के लिए

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  7. दो शब्दों में भारत माता का गान वन्देमातरम....
    अद्भुत गीत

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