सोमवार, 22 जुलाई 2013

देखें---'सुनहरे पन्नों का खजाना '

भाई लोकेन्द्र सिंह राजपूत ने  -- 'मुझे धूप चाहिये' अभी हाल ही पढी  है और पढ कर जो कुछ लिखा है उसे आप भी अवश्य पढें । लिंक----
http://apnapanchoo.blogspot.in/

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी समीक्षा लिखी है लोकेन्द्र जी ने.....
    जल्द से जल्द खरीदती हूँ..मेरे भीतर के बच्चे को भी ज़रूर पसंद आएगी.
    कब से सोचा था खरीदूं, ज़ेहन से निकल ही गयी थी.
    :-)
    समीक्षा पढवाने का शुक्रिया दी.
    सादर
    अनु

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  2. पुस्तक के लिए बहुत बहुत बधाई !

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  3. सुन्‍दर, प्रभावी समीक्षा। और यह तब ही हो सका जब पुस्‍तक के अध्‍यायों से समीक्षाकर्ता तादात्‍म्‍य स्‍थापित कर उनसे उस रुप में प्रभावित हो सका, जिस रुप में रचनाकर्ता ने उन्‍हें रचा है।..................गिरिजा जी कुछ पुस्‍तकें मुझे मेरे पते पर भिजवा दें, मैं उनका पुस्‍तक-मूल्‍य और डाक-प्रभार चैक या ड्राफ्ट या एनईएफटी से आपको भिजवा दूंगा। आप मुझे अपना धनप्राप्ति विवरण vikesh34@gmail.com पर भेज सकती हैं।

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