गुरुवार, 25 जुलाई 2013

दक्षता-संवर्धन

"मिसेज गोयल ! जरा इधर तो आइये ।"--परीक्षा-संयोजक नरेन्द्र ने नौवीं कक्षा की कक्षाध्यापिका रमा गोयल को पुकारा तो वह हडबडाई हुई आई ।
"क्या है सर ?"
"कुछ बच्चों को आपने फैल कर दिया ?"
"सर , ये तो वे बच्चे हैं जिन्हें ठीक से अपना नाम लिखना भी नही आता ।" 
"तो इसका अर्थ यह हुआ कि महीना भर के ब्रिज-कोर्स में आप बच्चों को नाम लिखना तक नही सिखा पाईं । और इससे भी बडा अर्थ यह हुआ कि आपको इन्हें फिर पढाना होगा  और फिर टेस्ट लेना होगा । अगर तब भी फैल होते हैं तो फिर पढाना होगा । पढाते रहना होगा  जब तक कि वे पोस्ट-टेस्ट में पास न हो जाएं । फैल करना यानी अपनी मुसीबत बढाना । "
"सर !!"----रमा हैरान और अवाक्..। 
"आप पच्चीस साल से नौकरी कर रही हैं । इतना हैरान होने की बात क्या है बताइये । याद है उस दिन ब्रजेश जी क्या समझा कर गए थे ?"
"जी सर ,पच्चीस साल से नौकरी तो कर रही हूँ पर यह ब्रिजकोर्स जैसी चीजें पहली बार देखीं हैं ।"
" जी हाँ मैडम ,पहली बार शासन सजग हुआ है शिक्षा के प्रति ..।"
"यह कैसी सजगता कि पहली से आठवीं तक धडाधड पास किए जाओ चाहे उसे पढना लिखना भी न आए और अब नौवीं में आकर टेस्ट का फिल्टर लगादो । ईमानदारी से सोचिये कि उसमें से  छन कर कितने बच्चे आएंगे सर ! कितना अच्छा होता कि यह सजगता आरम्भ से दिखाई जाती । बेहतर हो कि या तो फैल हुए बच्चों को फिर से आठवीं में भेज दिया जाए या फिर उन्हें छह माह तक केवल अच्छी तरह पढना लिखना सिखाया जाए ताकि वे कुछ तो कोर्स की पढाई करने लायक हो जाएं । ...सर कमजोर को पास करना तो....।  " 
" ओफ्..ओ ...रमा जी , आप तो उन्नति की बजाए अवनति का मार्ग दिखा रहीं हैं शासन को । और कौन सुनेगा आपकी । मध्याह्न भोजन की योजना जब शुरु हुई थी तब हर समझदार व्यक्ति ने इससे पढाई के नुक्सान की बात कही थी पर शासन ने तो यह सोचा ही नही । स्कूल विद्यालय की जगह भोजनालय बन कर रह गए । उसमें भी होरहे घोटाले और दुर्घटनाएं एक अलग मुद्दा है । रमा जी, आप कोई नियम निर्धारक हैं ? शिक्षाविद् है ? नही न ? अपन लोगों का काम है केवल नियम-पालन करना । आपको याद तो होगा जो ब्रजेश जी ने प्रशिक्षण के दौरान कहा था ।"
"मुझे खूब याद है सर । उन्होंने बताया था कि छात्रों के दक्षता-संवर्धन और हाईस्कूल के बेहतर परीक्षा परिणाम हेतु नौवी कक्षा में प्रवेश के लिये प्री-टेस्ट लेना है । इसमें जो फैल होते है उन्हें पढाने के लिये ब्रिज-कोर्स नाम की एक पाठ्यवस्तु है । उसे पढाने के बाद फिर से एक पोस्ट-टेस्ट लेना है और टेस्ट में पास बच्चों को नौवीं कक्षा का कोर्स पढाना है । "
" वाह--वाह.. आपने खूब याद रखा है "--नरेन्द्र मुस्कराया ।
"लेकिन आपको यह याद नही कि पोस्ट-टेस्ट में छात्र का फैल होने का मतलब है कि आपने कुछ पढाया ही नही । यानी कि कार्य में शिथिलता दिखाई जबकि एक पूरा महीना आपके पास था ।" 
"सर जो काम आठ साल में न हो सका ,वह भला एक महीने में कैसे हो सकता है । ब्रिज कोर्स में संज्ञा ,सर्वनाम ,वाक्य उपसर्ग, प्रत्यय अलंकार आदि पढाने हैं । वही आठवीं के पाठ्यक्रम की पुनरावृत्ति । पढना लिखना नही सिखाना । लेकिन उन्हें तो ठीक से पढना भी नही आता । सोचिये सर जब तक भाषा का आधार मजबूत नही होगा यानी पढने व लिखने की योग्यता नही होगी बच्चा इन बातों को कैसे सीखेगा ?" 
"यही तो परख है आपकी योग्यता की कि कौनसी जादू की छडी है कि आप बच्चों को चुटकियों में वह सब सिखादें जो वे आठ साल में नही सीखे ..। नही सिखा पाते तो इसका मतलब है कि आपमें सिखाने पढाने की योग्यता है ही नही ..।"
 रमा चुप । नरेन्द्र ने समझाया --"मैडम सबसे आसान तरीका है ,बच्चों को पास किए जाओ । चाहे वे लिखें या न लिखें । आब्जेक्टिव को अपने हाथ से सही करदो । 'सुरे' का 'सूर्य' और 'सरनम' का 'सर्वनाम' ही तो करना है । पास करो और छुट्टी पाओ । जैसे अब तक पढते आए हैं वैसे ही आगे पढाते जाओ । हाईस्कूल परीक्षा-परिणाम के लिये भी कुछ सोचा जाएगा । शासन भी तो यही चाह रहा है नही तो ऐसे ...। खैर छोडो.....दरअसल यह परीक्षा बच्चों की नही अपनी मानो मैडम । इसमें आपको कैसे पास होना है बस इसी पर ध्यान दो । बाकी तो......।"

14 टिप्‍पणियां:

  1. दायित्व का उथल पुथल उत्तर, उत्तरदायित्व। शिक्षा के संवेदनीय पक्ष।

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  2. शिक्षा के नाम पर चल रही धांधली पर प्रकाश डालती सशक्त रचना..बहुत अजीब से हालात से गुजर रही है हमारी शिक्षा व्यवस्था..

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  3. यह कथा नहीं शिक्षा व्यवस्था पर करारा कटाक्ष है।..साधुवाद।

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  4. इससे बेहतर तो ये है बच्‍चों को विदयालय ही मत भेजो। बिना पढ़े ही उत्‍तीर्ण करना है तो उत्‍तीर्ण-प्रमाणपत्र घर पर भी भिजवाए जा सकते हैं।....अच्‍छा विचारणीय कथानक।

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  5. यही हमारी शिक्षा व्यवस्था -बिलकुल सही चित्रण किया है !

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  6. उत्तर
    1. काजल कुमार जी पता नही आपने क्या अर्थ लिया है । कुछ समझ नही आया ।

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  7. कित्न्स बड़ा और कडुवा सच है आज का ... और फिर ये कहना की गुणवत्ता खत्म हो रही है ... सोचने को विवश करता है ये लेख ... क्या चाहता है प्रशासन ...

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  8. शिक्षा के नाम पर यही तो हो रहा है हमारे देश में । हमें पहली कक्षा से ही सजगता की आवश्यकता है । टीचर्स की और से देखो तो हर बेगार काम में उनकी डयूटी लगा दी जाती है चाहे सर्वे हो या इलेक्शन कार्य ।
    विचारणीय लेख ।

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  9. शिक्षा के साथ यह मजाक ही तो है, बहुत सटीक.

    रामराम.

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  10. लेकिन ये कड़वा सच है आज का :(

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