शनिवार, 23 अगस्त 2014

तमाशा

सोनपुरा मोहल्ला में जैसे ही किसी लोकल-चैनल के रिपोर्टर पहुँचने की सूचना मिली महिलाएं ,बच्चे ,जवान, बूढ़े उसी तरह आशा ,उल्लास व कौतूहल से भर गए जैसे सुदूर अंचल में  साड़ी बेचने वाले या बिसाती के जाने पर महिलाएं हुलास से भर उठतीं हैं । 
लोग इस तरह दौड़ पड़े मानो उन्हें पानी का टैंकर आने का समाचार मिल गया हो । 
जो जिस हाल में था वह वहाँ आगया जहाँ कैमरा व माइक सम्हाले दो मीडियाकर्मी खड़े थे । 
"हम शहर के इस उत्तर पश्चिम इलाके सोनपुरा में खड़े हैं "--माइक सम्हाले एक भारी-भरकम आदमी ने बोलना शुरु किया-- "अब मैं एक एक करके लोगों से यहाँ की समस्याओं के बारे में जानकारी लेने जा रहा हूँ ।"
कुछ लोग एकदम सम्हल गए । कैमरे के सामने तरीके से खड़ा होना चाहिये । कुछ लड़के हँस रहे थे और कुछ इस तरह की मुद्रा बनाए थे मानो वे इस कार्यक्रम की खास शख्सियत हैं । उनके मोहल्ला में टीवी के रिपोर्टर आए हैं यह क्या कम है ।
"हाँ माताजी आप बताएं"--मीडियाकर्मी ने बहुत ही शिष्टाचार व विनम्रता से कहते हुए एक महिला के सामने माइक बढ़ाया हालाँकि महिला की उम्र गहरे रंग वाले स्थूलकाय व्यक्ति से कुछ कम ही होगी ।
"पानी गन्दौ आइ रऔ है । भारी बदबू ..।" 
"और बताइये..।"
"बरसा होती है तब पानी घरों में भर जाता है। बिजली 'भौत' कम आती है।"
"और क्या-क्या परेशानियाँ है...?"
मीडियावाले को एक ही जगह सवाल करते देख एक युवकनुमा आदमी अपने बालों पर हाथ फेरते हुए और शर्ट का कॉलर ठीक करते हुए माइक के सामने आया कि कहीं उसका मौका न चूक जाए । बीच में ही बोला---- "समस्या साहब एक थोड़ी है । पानी तो फुल सीवर का आ रहा है। गन्दगी आप देख ही रहे हैं । मैं कार्यालय के पच्चीस चक्कर लगा चुका मेरा आईडी नम्बर कोई नही दे रहा । सर आप ही कुछ......
"आप बताएं अम्माजी "----मीडिया वाले ने युवक की बात पूरी होने से पहले ही माइक एक बुढ़िया के सामने कर दिया । बुढ़िया काँपती हुई बोली----"बे..टा का बताऊँ ! 'पेंसिल' ना मिल रई चारि महीना ते । भूखनि मरिबे की नौबति आइ गई है । 'सिकात' लेकर गई तो एक आदिमी नै दरबज्जे से ही भजाइ दई । कोऊ सुनिबो बारौ नईं हैं ।...मेरौ जबान बेटा तो 'अकसीडेंट' में....।" 
बूढ़ी अम्मा रोने लगती इससे पहले ही वह दूसरी तरफ चला गया । कैमरे की ओर देखकर बोलने लगा । 
"जी हाँssss आप देख रहे हैं.... आप देख सकते हैं कि यह है बाssर्ड ग्यारह और मेरे बाईं तरफ है बाssर्ड दस । ग्यारह और दस के बीच फँसे हैं येsssलोग । गन्दा पानी पीने मजबूर । बिजली की समस्या भी है । जैसा कि आप देख सकते हैं कि लोग किस तरह परेशान हैं । कोईssssसुनने वाला नही है । 
इस बीच कैमरा अपनी ओर आते देख लोग हाथ हिलाकर ऐसे मुस्करा रहे थे जैसे उन्हें कोई अवार्ड मिल गया हो । जिनकी तरफ कैमरा नही जा रहा था वे धक्का-मुक्की करके आगे आना चाह रहे थे । तभी एक अधेड़ बिना बुलाए सामने आगया और मीडिया कर्मी से बोला--"साहब ,आपकी तरह और भी लोग यहाँ की रिपोर्ट ले गए हैं पर कुछ नही हुआ । हमारी बिनती है कि आप पार्षद अलोपी सिंह को पकड़ें । हम लोग नरक की जिन्दगी जी रहे हैं और वह मजे में ए सी में सो रहा है । आप कहें तो उसके मुँह पर कहदूँ कि पक्का खाऊ है । क्या इसके लिये जिताया था । जीतने के बाद इधर सूरत दिखाने तक नही आया ..।"
"देखिये "---मीडिया-कर्मी सतर्क हुआ और सधे हुए स्वर में बोला---" हम आपकी परेशानी समझ रहे हैं पर आप सम्हलकर बोलें । सधे हुए शब्दों में अपनी बात कहें ।टीवी पर आपको लोग देख रहे हैं । शिष्ट भाषा का प्रयोग करें । किसी के लिये अपशब्द या गाली जैसे शब्दों का प्रयोग न करें ।" 
"साहब मैंने गाली तो दी नही है । सही बात को आप गाली कहते हैं !हम जिस दिन गाली पर उतर आए तो.... "--आदमी कहता रहा लेकिन मीडिया कर्मी पहले ही उसकी तरफ से माइक हटा चुका था और अब वह खुद कैमरे को अपनी बात सुना रहा था---
"आप देख रहे हैं लोगों में गुस्सा है । लोग परेशान हैं । हम इसी तरह शहर की समस्याओं से आपको रूबरू कराते रहेंगे । आप देखते रहिये 'आजकल'  । हम फिर किसी बार्ड की समस्या को लेकर आपके सामने फिर हाजिर होंगे । कैमरामैन नकुल के साथ मैं तिलकराज । याद रखिये कल इसी समय इसी चैनल पर । नमस्कार ।" 
कुछ ही पलों में गाड़ी ढेर सारा धुँआ छोड़कर चली गई और साथ ही  उस गन्दी सी बस्ती में एक हलचल ,जो काई जमे पानी पर फेंके कंकड़ से हुए सूराख सा अल्पकालिक ही सही,लोगों को ऊब से राहत देता है । लोग इस बात से उत्साहित थे कि कल वे टीवी पर दिखाई देंगे । और इसी बहाने वे कुछ देर अपनी समस्याओं को भूल गए थे । 

     


10 टिप्‍पणियां:

  1. ऊब से बचना सुखकारी हो सकता है पर कब तक..सत्य तो कोई सुनना नहीं चाहता

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  2. मीडिया अपने कर्मपथ से थोडा सा डिग गया है और समाज को अपनी भूमिका नहीं पता है... इस स्थिति का लाभ लोभी लोग ले रहे हैं और एसी में मजे से सो रहे हैं..... अच्छा वर्णन

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  3. रोचक प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।

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  4. विभिन्न पेशों के लोग जनता से कैसे अपना उल्लू सीधा करते हैं -.केवल रस्म-अदायगी कर बात वहीं छोड़ जाते हैं -परिणाम निकले न निकले (फल की चिंता नहीं ). बिलकुल सही तस्वीर खींच दी है आपने. समाज का सचेत न होना ,हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी विडंबना है और सहन करते चले जाना सबस बड़ा अपराध .

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  5. हा हा हा!! ख़ुद को चौथा खम्भा बताने वाले लोकतंत्र की इस महान "संस्था" का खोखलापन आपकी इस रचना में साफ दिखाई दे रहा है. और आख़िरी पंक्तियों में - "लोग इस बात से उत्साहित थे कि कल वे टीवी पर दिखाई देंगे । और इसी बहाने वे कुछ देर अपनी समस्याओं को भूल गए थे" मीडिया की आर्कलाइट के पीछे छिपी असलियत का दर्द बयान करता है. प्रदूषित वातावरण में रह रहे लोगों के प्रदूषण में वृद्धि करती हुई - कुछ ही पलों में गाड़ी ढेर सारा धुँआ छोड़कर चली गई!!

    और आपकी ट्रेड-मार्क उपमाएँ मन मोह ले गईं - बिसाती और पेट्रोल टैंकर हो या काई जमे पानी पर फेंका गया कंकड़!! दीदी, आपको पढना एक सुखद अनुभव होता है हमेशा!

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  6. सही कहा आप ने दुख को भूलने के लिए कुछ अहसास जरुरी है ...बहुत सुन्दर..

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  7. मिडिया का गन्दा सच है इस पोस्ट में.... :(

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  8. मीडिया को उधेड़ के रख दिया आपने ... और इसके लिए खुस मीडिया ही जिम्मेवार है ... दूसरा कोई नहीं ...

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