सोमवार, 21 मार्च 2016

कोहरा हुआ सा है

आसमां पर शाम का 
पहरा हुआ सा है ।
वक्त जाने किसलिये 
ठहरा हुआ सा है ।

रुक गई है जिन्दगी
उस मोड पर आकर
खुद से ही अनजान
यह चेहरा हुआ सा है ।

दास्तां अपनी सुनाने
चल दिये किसको
इस शहर में हर कोई
बहरा हुआ सा है ।

दूर थे वो , बेकली थी
पास जाने की ।
पास जाकर जख्म क्यूँ
गहरा हुआ सा है ।

साथ देंगी शाम तक
केवल प्रतीक्षाएं ।
सुबह से ही आज कुछ 
कोहरा हुआ सा है ।