मंगलवार, 13 सितंबर 2016

ग्यारहवीं कक्षा में हिन्दी का पीरियड .

यह लघुकथा उच्च कक्षाओं में भी हिन्दी की स्थिति बताने के लिये काफी है .कहीं छात्र पढ़ना नही चाहते और कहीं शिक्षक पढ़ाना नही चाहते या जानते . किसी एक को उत्तरदायी नही कहा जा सकता . ऐसे में हिन्दी दिवस मनाने का आडम्बर छोड़कर जरूरत है विद्यालयों में प्रारम्भ से ही हिन्दी अध्यापन की जड़ें मजबूत करने की .क्योंकि विद्यालय ही वह संस्था है जहाँ भाषा सीखने का औपचारिक आरम्भ होता है .
------------------------------------------------------------------------
छात्रो ,आज हम नौका विहार पढेंगे । सभी छात्र पुस्तक में यह पाठ निकाल लें .”
सर हम लोग किताब नहीं लाए .”
मैं भी नहीं लाया ...
और मैं भी ..
“ पाठ्य-पुस्तक जरूर लाया करें यह मैंने कई बार बताया है . खैर जो लाए हैं उन्ही के साथ मिलकर देखलो .
यस सर ,कौनसे पेज पर है ?”
बेटा ,विषय-सूची में दिया हुआ है । जरा देखो .”
विषय-सूची कहाँ है सर ?”
किताब के शुरु में ही है बेटा .शायद आज पहली बार आए हो । मैं अक्सर बताता रहता हूँ कि विषय-सूची देखकर किस तरह अन्दर का कोई भी पाठ निकाला जा सकता है .... निकाल लिया ? अच्छी बात है।.... यह छायावाद के प्रसिद्ध कवि सुमित्रानन्दन पन्त की कविता है .इन्हें प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है . ये छायावाद के चार प्रमुख कवियों में से एक हैं .”
सर अब ये छायावाद क्या है ?”
दो दिन पहले ही तो मैंने इसके बारे में विस्तार से बताया था .
एक छात्र--“सर मेरे सामने नहीं बताया .
तुम आए नहीं होगे खैर....कविता के इतिहास में आधुनिक काल की ही एक अवधि है जो द्विवेदी युग के बाद सन् 1920 से प्रारम्भ होती है . इसे फिर एक बार अलग से पढ़ लेंगे .
सर क्या यह पेपर में आएगा ?”
बेटा पेपर में आएगा यह तो नही कहा जासकता लेकिन यह कई तरह से बहुत महत्त्वपूर्ण कविता है । छायावाद की सारी विशेषताएं इसमें हैं जिन्हें में साथ ही साथ तुम्हें समझाता जाऊँगा । पाठ के साथ यह जानना भी उपयोगी रहेगा .पेपर के प्रारम्भ में जो पच्चीस प्रश्न आते हैं उनमें ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं . फिर हर पाठ तो पेपर में नही आ सकता तो क्या उसे हम पढ़ेंगे नहीं .”
"लेकिन सर पहले तो किसी ने यह सब नही पढ़ाया और हम बढ़िया नम्बरों से पास भी होगए ."
"लेकिन .... ." 
एक छात्र (ऊब कर बीच में ही)--"सर आप तो पाठ पढ़ाइये .."
"हाँ हम वही करने जा रहे हैं . तो कविता है---
शान्त स्निग्ध ज्योत्स्ना उज्ज्वल ,अपलक अनन्त नीरव भूतल...
एक छात्र---सर ,नौका विहार का क्या मतलब है ?”
नौका यानी नाव और विहार यानी सैर करना .”
नाव की सैर ! सर इन लोगों के पास और कोई काम नही था ? खुद नाव में सैर की और कविता लिख डाली ..कितनी टफ है यार ?”
शिक्षक आवेश को दबाकर हँसते हुए --“पहले पाठ को पढ़ तो लें बेटा ,फिर दूसरी बातें करें .
ठीक है सर . आप तो पाठ पढ़ाइये .
 “हाँ.., तो कवि जिस समय नौका विहार के लिये गए ,वह रात्रि का समय था । चारों ओर बड़ी कोमल सी उजली चाँदनी फैली हुई थी । आसमान बिल्कुल साफ था और धरती पर किसी तरह का कोई शोर नही था । चारों ओर शान्ति छाई थी ……”
सर जी , डिटेल रहने दो . आप तो हमें बस इम्पौर्टेंट, इम्पौर्टेंट बता दीजिये . सभी सर हमें केवल इम्पौर्टेंट बताते हैं .”
तभी चपरासी आकर बताता है कि उन्हें प्रिंसिपल साहब बुला रहे हैं .इन शिक्षक महाशय को बीच में कक्षा छोड़ना अच्छा नहीं लगता लेकिन संस्था-प्रधान के आदेश को न मानने का तो सवाल ही नहीं उठता . जाकर हाथ बाँधे नतसिर खड़े होगए .
जी सर !”
अरे कौशिक ,टाइम-टेबल में थोड़ा चेंज किया है .
जी ..!”
हिन्दी का पीरियड पाँचवा ठीक रहेगा .
सर पाँचवे तक तो छात्र रुकते ही नहीं . चौथे पीरियड के बाद ही कोचिंग चले जाते हैं .
तभी तो...हिन्दी तो बच्चे वैसे ही पढ़कर पास होजाते हैं . पहले मैथ्स , साइंस और इंगलिश  जरूरी है . अभी सक्सेना जी को अंग्रेजी पढ़ाने दीजिये ..


जी सर जैसा आप कहें ..  

16 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15-09-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2466 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (16-09-2016) को "शब्द दिन और शब्द" (चर्चा अंक-2467) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. हाँ , यही तो हाल है हिन्दी का ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सारगर्भित कथा ! आपके विचारों से पूर्णत: सहमत हूँ ! आज के चर्चामंच की पहली प्रस्तुति 'हिन्दी दिवस और हिन्दी' को भी पढ़िए ! आपकी प्रतिक्रिया की मुझे अपेक्षा भी रहेगी और प्रतीक्षा भी ! सादर !

    जवाब देंहटाएं
  5. गहराई से निकले शब्द पूर्णत: सहमत

    जवाब देंहटाएं
  6. दीदी! आपकी इस क्लास में विलम्ब से आने के लिये सबसे पहले आवेदनपत्र समर्पित करूँ. कृपया स्वीकार करें. आपकी इस लघुकथा ने मुझे अपने कॉलेज के दिनों में पहुँचा दिया. विज्ञान का विद्यार्थी होने की नाते हमारी कक्षा में हिन्दी की पढाई की ओर किसी का ध्यान नहीं होता था. अंगरेजी (भाषा) में भी उनका वही हाल था, किन्तु अंग्रेज़ी को अंगूठा दिखाना उन्हें अपनी शान के विरुद्ध लगता होगा, इसलिए उसका अपमान नहीं करते थे. हिन्दी में हमारी एक प्राध्यापिका थीं श्रीमती संपत्ति अर्याणी, जो पुष्पा दी (मेरी दूसरी माँ) की बड़ी बहन थीं. उनकी कक्षा में लगभग हंगामा सा ही होता था. आपने जिस क्लास का दृश्य प्रस्तुत किया बिलकुल उसी तरह का. आपने जो हिन्दी की कक्षा दिखाई है, उसके बच्चे "अनपढ़" थे, मेरी कक्षा के बच्चे ढीठ और बदतमीज़ थे. उन्होंने संपत्ति दी का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया.
    बाद में संपत्ति दी ने पुष्पा दी से मेरी शिकायत की कि मैंने उनका उपहास किया कक्षा में. मेरे इनकार करने के बाद वे बोलीं, "जब तुम उन लडकों के बीच थे तो तुम्हारा चुप रहना भी उसमें शामिल होने जैसा ही है."
    फिर तो मैं पहली पंक्ति में ही बैठने लगा और ऐसा लगता था कि बस जैसे वो केवल मुझे पढ़ा रही हों.
    ये सब उन्हीं गुरु/ शिक्षकों की शिक्षा का परिणाम है कि मुझमें थोड़ी बहुत साहित्य की समझ और रूचि जीवित है.
    आपकी यह लघु कथा हिन्दी की दुर्दशा का आईना है.

    जवाब देंहटाएं
  7. विलम्ब की तो कोई बात ही नही. पाठ आगे भी तो आपके उपस्थित होने पर ही बढ़ता है. आपसे मुझे भी बहुत कुछ जानने व सीखने मिलता है .

    जवाब देंहटाएं
  8. यह बताना भी ठीक होगा कि जब कोई अच्छा पढ़ाता है तो हर कक्षा में कुछ अच्छे जिज्ञासु विद्यार्थी भी होते हैं . प्रस्तुत प्रसंग कुछ कालपनिक होते हुए भी सच्चा है . यह बात अलग है कि ऐसे छात्र ज्यादातर एक तो बहुत कम स्कूल आते हैं और आते भी हैं तो उपस्थिति देकर किसी तरह निकल लेते हैं . खुशी यह कि कुछ छात्र तो अच्छे मिलते ही हैं पर चिन्ता यह कि उनकी संख्या बहुत कम होती है .

    जवाब देंहटाएं
  9. ऐसा लगता है आजकल शिक्षा केवल डिग्री हासिल करके जीविकार्जन करने के लिए ली जाती है न कि सुसंस्कृत होने के लिए..

    जवाब देंहटाएं
  10. हर तरह के विद्यार्थी होते हैं कक्षा में पर ये सच है की आज कल उसी सब्जेक्ट को तवज्जो दी जाती है जिसमें करिअर बनाना होता है बच्चे को ... ये कोई समझना ही अहि चाहता की जीवन में हर बात काम आती है ... आज कर विशेष कर भाषा और हिंदी के ज्ञान को कोई गहराई से नहीं सीखना चाहता ...

    जवाब देंहटाएं
  11. अरे गिरिजा, कुछ पूछो मत.हमने तो M.A.की छात्र का ये हाल हेखा है कि गर्भ और गर्व में अंतर नहीं पता,श्याम और शाम में ,जूठा और झूठा में .और लड़के? क्या कहूँ प्रशान्त के साथी लड़के हाई स्कूल में हिन्दी विषय के लिये एक गद्य-शैली और एक काव्यगत विशेषताओं का लेख याद कर लेते थे ,पेपर में जिसकी पूछी गई उसी का नाम धर कर लिख आये .अब क्या कहोगी तुम !

    जवाब देंहटाएं
  12. आपने सही कहा . इसी तरह के प्रसंगों से जूझते हुए उन्तालीस साल ( प्राइमरी के दस साल छोड़कर ) गुजारे हैं . अब तो अपना सीखा भी विस्मृत हुआ जा रहा है क्योंकि नया कुछ पढ़ाना ही नही है . वही वर्ण मात्रा शब्द वाक्य का शद्धीकरण , उत्तीर्ण होने लायक सन्दर्भ प्रसंग और प्रश्नोत्तर . यही सन्तोष रहता है कि कम से कम कुछ तो सिखा ही रहे हैं .कभी कभार अच्छे जिज्ञासु बच्चे मिल जाते हैं तो उत्साह बढ़ जाता है .

    जवाब देंहटाएं