शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

तुम्हारा आना ---कुछ बिम्ब



ख़यालों में तुम्हारा आना
फूटना है कोंपलों का
ठूँठ शाखों पर
पतझड़ के बाद ।

दस्तक देना है ,पोस्टमैन का
भरी दुपहरी में
थमा जाना
एक खूबसूरत लिफाफा ।

मिल जाना है
रख कर भूला हुआ कोई नोट
किताबें पलटते हुए
अचानक ही ।

लौट आना है
एक गुमशुदा बच्चे का
अपने घर
बहुत दिनों बाद ।

उतर आना है दबे पाँव
चाँदनी का
नीरव रात में
बिखेर देना रुपहले ख्वाब
अमावसी पलकों में ।

या कि जैसे
मिल जाना है
अचानक ही
किसी अनजान शहर में
बचपन के सहपाठी का ।

जब दिमाग में भरी हो
खीज और झुँझलाहट
तब एक दुधमुँही मुस्कराहट 
समा जाना आँखों में ,
यूँ तुम्हारा आना ...

 मिल जाना एक सान्त्वना
अपनत्व और दुलार भरी
चोट से आहत
रोते हुए बच्चे को ।

आजाते हो 
ख़यालों में तुम यूँ ही ,
जैसे किसी कॅालोनी की
उबाऊ खामोशी के बीच
गुलमोहर के झुरमुट से
अचानक कूक उठती है कोयल ।