शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

हिमालय के कोट में टँका हुआ फूल--भाग 2

भाग 1 से आगेl

थिम्पू
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17 मई 2019 
लगभग 2335 मी. की ऊँचाई पर बसा शहर 'थिम्पू' भूटान की राजधानी है और शायद भूटान का सबसे बड़ा शहर भी .फुनशुलिंग से थिम्पू तक हरे-भरे मनोरम पहाड़ों में ऊपर नीचे चढ़ते उतरते हुए पाँच छह घंटे के सफर के बाद अब तन मन दोनों ही विश्राम चाह रहे थे . थिम्पू के शानदार 'रामदा' होटल में हम दो रातें गुजारने वाले थे .होटल पहुँचते ही दो युवक गाड़ी से सामान उतारने आगए .फिर जब दो सुन्दर लड़कियों ने मुस्कराते हुए हमारे कन्धे पर सफेद रेशमी दुपट्टा डालकर अभिवादन और स्वागत किया तो एक गरिमामय अनुभव हुआ .उनकी अतिथि सत्कार की यह परम्परा हमें अपूर्व और बहुत आत्मीय प्रतीत हुई . साथ ही यह एहसास भी हुआ कि अब हम सचमुच दूसरे देश में हैं .

वास्तव में यहाँ आकर ही हमें असली और हर दृष्टि से समग्र भूटान देखने मिला . थिम्पू में दो दिन रुके इसलिये बहुत सारी नई व अनौखी जानकारियाँ मिलीं . जैसे कि , भूटान का स्थानीय नाम 'ड्रुक' अर्थात ड्रैगन की भूमि है .राज्य के चीफ को ड्रेगन किंग कहा जाता है.....यहाँ लोकतांत्रिक शासन है पर संवैधानिक राजशाही भी है.....यहाँ ट्रैफिक सिग्नल नहीं हैं लेकिन एक से बढ़कर एक शानदार गाड़ियों सड़कों पर दौड़ती देखी जा सकतीं हैं.....दो पहिया वाहन नहीं दिखाई देते . हर जगह (होटल ,शॉपिंग सेन्टर व अन्य स्थानों पर ) लड़कियाँ ही काम करतीं हैं ...सबसे अनौखी बात यह कि यहाँ कोई अपना अलग से जन्मदिन नहीं मनाता बल्कि हर साल नववर्ष को ही सबके जन्मदिन के रूप में मनाते है...यहाँ प्लास्टिक और धूम्रपान पूरी तरह प्रतिबन्धित है ....लोग पर्यावरण के प्रति बहुत जागरूक हैं अधिकतर लोग हिन्दी समझते हैं ...शादी के बाद लड़का लड़की के घर आकर रहता है....बहुविवाह प्रथा को गलत नही माना जाता .लोग अपनी संस्कृति व परम्पराओं के प्रति बहुत प्रतिबद्ध व आस्थावान हैं .वगैरा ..वगैरा ...

 अपनी सभ्यता व संस्कृति को बाहरी प्रभाव से मुक्त रखने के लिये लम्बे समय तक भूटान ने पर्यटकों के लिये अपने दरवाजे बन्द रखे थे .1970 ई में यहाँ पहला विदेशी पर्यटक आया .1999 से पहले यहाँ टीवी इन्टरनेट जैसे संचार साधन नहीं थे . यहाँ का वास्तु शिल्प बड़ा अनूठा और विशिष्ट है . पूरे भूटान में सभी इमारतें एक ही शैली में बनी हुई हैं .निचले भाग में सफेद और ऊपरी भाग में कत्थई पेंट किया गया है जिस पर हरे सुनहरे रंगों की कलात्मक आकृतियाँ हैं .खिड़की दरवाजों और झरोखों में लकड़ी की शिल्पकारी देखने लायक है . यहाँ पारम्परिक शैली से अलग रंग और ढंग के भवन निर्माण की अनुमति नहीं है....होटल अपार्टमेंट्स ,मॉल ..सभी भवन एक ही शैली में बने हुए हैं . यह भूटान की अनुशासनप्रियता का अनुकरणीय उदाहरण है . हिमालय की गोद में बसे सिक्किम और भूटान में भौगौलिक समानताएं हैं . लेकिन अलग राष्ट्र होने के साथ भवन निर्माण शैली भी भूटान को सिक्किम (भारत) से अलग करती है .
थिम्पू के बाजार बहुत साफसुथरे शान्त व भीड़ रहित हैं....कोई आपाधापी या तनाव नहीं है.... विदेशियों के लिये भूटान काफी मँहगा है लेकिन भारतीय पर्यटकों के लिये यह छोटा सा देश अपने घर आँगन जैसा है ...यहां का राष्ट्रीय पक्षी 'रेवेन' है जो एक शक्तिशाली देवता माना जाता है . उसे मारने पर उम्रकैद की सजा का प्रावधान है .रेवेन-क्राउन को वांग्चुक वंश का मॉडल माना जाता है ... यहाँ लोग राजा को बहुत मानते हैं . वर्त्तमान राजा 'जिग्मे खेसर नामग्याल' हैं और रानी 'जेटसुन पेमा'.यहाँ आय का बड़ा स्रोत बिजली है... अन्य में वन सम्पदा और अब पर्यटन भी शामिल हो रहा है .पर्यावरण के प्रति यहाँ लोग बहुत जागरूक हैं . दो-तीन साल पहले राजपुत्र के जन्मोत्सव के रूप में लोगों ने एक लाख पेड़ लगाए .यहँ की पाम्परिक वेशभूषा .धौं व कीरा है . हर भूटानी नागरिक के लिये यही परिधान अनिवार्य है .भूटान के लोग अपनी भाषा , वेशभूषा और परम्पराओं के प्रति बड़े प्रतिबद्ध हैं ...ये सारी जानकारियाँ हमें विकास दे रहा था   ..
रात के भोजन के बाद हम अपने अपने कमरों में चले गए . विवेक ने विकास के ठहरने के विषय पूछा तो वह हँसकर बोला ---हो जाएगा सर ,हमारा तो रोज का काम है . हँसते समय उसकी आँखें लगभग बन्द होगई लगतीं हैं .
सर सुबह नौ बजे तक ब्रेकफास्ट लेकर तैयार रहें . मैं आ जाऊँगा .”विकास ने एक बार और दोहराया फिर खाना खाकर अपने किसी परिचित या मित्र के यहाँ चला गया .
मेरे साथ विहान के खूब मजे रहे . उसे मालूम तो हो ही गया है कि दादी पापा मम्मी से भी बड़ी हैं .इतनी बड़ी कि जरूरत होने पर वे उन्हें डाँट भी सकती हैं . इसलिये उनसे डरने की कोई बात नहीं .सोने से पहले वह मुझसे एक- दो कहानियाँ व चुटकुले सुनता फिर खुद अपने प्रिय कार्टून डोरेमोन के किस्से सुनाता और मेरी नॉलेज परखने के लिये उनसे जुड़े सवाल भी करता (मानो नोबिता ,डोरेमोन सूजैन वगैरा को मैं रोज मिलती हूँ ) जो मेरे पल्ले तो नही पड़ते पर मैं अन्दाज से जबाब देती जाती .इससे वह बड़ा खुश होता . कहता –--"अरे दादी आप तो काफी इन्टेलिजेंट हैं ."
कहानी सुनकर विहान सो गया लेकिन मुझे उस रात नींद बहुत ही कम आई . बल्कि कहूँ कि नहीं ही आई .एक तो कम से कम डेढ़-दो बालिश्त मोटा गद्दा आपत्ति की हद तक मुलायम और गुलफुला था . हम दोनों उसमें लगभग धँस गए थे . मुझे इतनी आरामदायक चीजें रास नहीं आतीं . उस पर रास्ते के दृश्य दिल-दिमाग और आँखों में इस तरह भरे हुए थे कि नींद के लिये जगह ही न थी . वह आ आकर लौट जाती थी .
18 मई
मेमोरियल चोर्टन 
विकास सचमुच सुबह ठीक नौ बजे आगया . हम लोग भी तैयार थे . पहले हम मेमोरियल चोर्टन (msmorial chorten) ( किसी किसी ने कोर्टन भी लिखा है . कोई नियम--धरम नहीं है रोमन लिपि का ) गए . यह थिम्पू के मनोरम ,प्रसिद्ध व प्रतिष्ठित स्मारकों में से एक है . विश्वशान्ति को समर्पित, तिब्बती शैली में बना यह मठ तृतीय ड्रुक ग्यालपो ( भूटान का राजा) जिग्मी डोरजी वांगचुक की याद में बनाया गया था .हमने देखा ,सैकड़ों लोग उस हरे भरे मैदान के बीच स्थित धवल भव्य स्मारक की परिक्रमा कर रहे थे . आस्था , प्रेम व श्रद्धा का केन्द्र चाहे मानवीय हो या दैवीय वह मन को ऊर्जा, उल्लास और जीवन को सौन्दर्य देता है . आस्था व विश्वास के बिना जीवन जैसे बिना चालक के चलता दिशाहीन वाहन है .
बुद्ध—पॉइंट और थिम्पू शहर--
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भूटान बौद्ध संस्कृति का देश है .बौद्ध धर्म यहाँ का राजकीय धर्म है .सड़क ,पुल ,पेड़ , पहाड़ , हर जगह बौद्धधर्म के रंगबिरंगे परचम लहराते दिख जाते हैं .जंगल पहाड़ और नदियों के साथ साथ भूटान को बौद्ध मठों ( मॉनेस्टरीज) का भी देश कहा जा सकता है .थिम्पू में स्थित भगवान बुद्ध डोरडेम्मा की प्रतिमा भूटान ही नहीं पूरे एशिया में सबसे ऊँची प्रतिमा है . हम वहीं जा रहे थे .गाड़ी लहराती हुई पहाड़ चढ़े जा रही थी और मैं नीचे छूटते जा रहे शहर को देख रही थी जहाँ भवनों के बीच की दूरियाँ मिटती जा रही थी और शहर सिमटता जा रहा था . विहंगम दृष्टि भौतिक के साथ आध्यात्मिक व व्यावहारिक संकेत भी देती है . दृष्टिकोण जितना ऊँचा होगा ,विषमता और संकीर्णता उतनी ही कम होगी . मैंने अपनी कविता ऊँचाई पर दो व्यंजना में भी लिखा है कि ऊँचाई का मतलब ही है ,भेदों का मिट जाना .  कुछ ही पलों में हम भगवान बुद्ध के विशाल प्रांगण में थे ,विस्मित अभिभूत .... आसमान में बादलों के बीच शान्त , उन्नत-भाल भगवान बुद्ध की स्वर्णखचित प्रतिमा सचमुच भव्य है , अद्भुत है , दिव्य है . प्रतिमा की ऊँचाई का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि नीचे प्रांगण खड़े होकर बुद्ध का मस्तक देखने के लिये आकाश की ओर देखना पड़ता है . 169 फीट ऊँची इस प्रतिमा की स्थापना भूटान के चतुर्थ नरेश जिग्मे सिंगे वांग्चुक के साठवें जन्मदिन पर की गई थी . कहते हैं कि इसके अन्दर भी काँसे की सवा लाख बौद्ध-प्रतिमाएं हैं . इसके निर्माण और स्थापना में चीन जापान कोरिया आदि देशों का पर्याप्त सहयोग मिला है . उस ऊँची और बंजर सी पहाड़ी पर जहाँ हरियाली वैसी नहीं थी जैसी रास्तें में थी लेकिन हवा में गज़ब का जोर था , जैसे पाँव फर्श पर कसकर पर नहीं रखे तो उखड़ जाएंगे . मानो कि दर्शनार्थियों की यह एक परीक्षा थी कि कितना टिक सकोगे यहाँ , भगवान बुद्ध के मार्ग पर जो धन-वैभव और पति पत्नी व सन्तान जैसे आत्मीय सम्बन्धों के प्रति भी व्यक्ति को निस्संग व निर्मोही बना देता है .
सुविशाल प्रांगण में चारों ओर देवी देवतों की सुनहरी और भव्य प्रतिमाएं खड़ी थीं मानो वे सुविशाल भगवान बुद्ध की स्तुति कर रहे हों और नीचे सारा थिम्पू शहर भगवान बुद्ध के चरणों में साष्टांग प्रणाम कर रहा हो और बुद्ध जैसे अपने संरक्षण में आए शहर को अभयदान दे रहे हों .प्रतिमा से ऐसा ही भास होता है .प्रतिमा के नीचे विशाल भवन है . वहाँ बुद्ध भगवान विष्णु , शिव ,ब्रह्मा , सरस्वती आदि के बीच विराजमान हैं . बाहर मोर व गरुड़ की मूर्त्तियाँ हैं . इस तरह मुझे वहाँ हिन्दू और बौद्ध धर्म का समन्वय देखने मिला .वास्तव में बौद्ध धर्म का प्रवर्त्तन भी तो एक तपस्वी बने हिन्दू राजकुमार ने ही किया था . उस विशाल भव्य भवन में लकड़ी के स्तम्भों और छत की शिल्पकारी अद्भुत है . हमने वहाँ जितना भी समय बिताया , वह बड़ा आनन्दमय ,अपूर्व और अविस्मरणीय है .
इसके बाद एक दूसरे बहुत प्राचीन बौद्धमठ या मन्दिर को भी देखने गए जो बारहवीं शताब्दी में बनाया गया . बौद्ध धर्म यहाँ नौवीं सदी में आया था .इससे पहले का इतिहास कहीं लिपिबद्ध नहीं है. केवल जनश्रुतियों में ही पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित हो रहा है . परम्पराओं ,कथाओं का हस्तान्तरण करना सचमुच एक आवश्यक और महत्त्वपूर्ण कार्य है .
भूटान और भारत के सम्बन्ध अच्छे पड़ोसी जैसे ही हैं . भूटान में सड़क, पुल का निर्माण , म्यूजियम ,कई परियोजनाएं , सीमा सुरक्षा आदि में भारत का सहयोग व हस्तक्षेप है . हुआ यों कि 1865 ई. में ब्रिटेन और भूटान के बीच एक सन्धि हुई जिसके तहत भूटान के कुछ सीमावर्त्ती भूभाग के बदले उसे वार्षिक अनुदान देना तय हुआ . आजादी के बाद वह अधिकार भारत को मिला लेकिन भारत ने जैसी हमारी नीति रही है अपने पड़ोसी के प्रति सहृदयता निभाते हुए सन् 1949 ई. में भूटान को उसकी सारी ब्रिटेन अधिकृत भूमि लौटादी . उसके बदले में भारत को भूटान की विदेश व रक्षा नीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका मिली जो अभी तक बरक़रार है.

निहाशा ने पहले ही विकास को बता दिया था कि हम दोपहर का भोजन होटल में नहीं बल्कि ऐसी किसी जगह करना चाहेंगे जहाँ केवल भूटान के पारम्परिक व्यंजन मिलते हों . होटलों में तो हर जगह लगभग एक सा ही मेनू पनीर दाल सब्जी रायता चपाती सलाद आदि होता है . रवि हमें 'कावाजंग्सा'( kawajangsa) फोक हैरिटेज रेस्टोरेंट ले गया . वहाँ की पारम्परिक कला से सज्जित व्यवस्था देख मन खुश होगया . एक बहुत खूबसूरत लड़की --–"अच्छा चलता हूँ दुआओं में याद रखना .." गीत गुनगुना रही थी .सुनकर अपनेपन का अनुभव हुआ . 
वहाँ भी हमारी प्राचीन परम्परा की तरह ही भोजन फर्श पर बैठकर करने का नियम हैं .हमारे सामने सुसज्जित चौकियाँ थी जिन पर भोजन रखा जाने वाला था . सबसे पहले हमें मिट्टी के कुल्हड़ों में 'सुजा' (बटर टी ) दी गई .यह पेय चाय ,नमक और मक्खन से बनाया जाता है . इसके बाद जो कुछ आया सब नया था .परोसने का तरीका भी शानदार था .. व्यंजनों में 'एमादात्शी' ,'केवादात्शी', 'रेड-राइस' ,'वेज मोमोज' , लाल मिर्च की तीखी चटनी ,'खुली' ,'एजी' परोसा गया . .'खुली' (khulee) कूटू के आटे से बना पेन केक होता है , 'एमादात्शी' भूटान का राष्ट्रीय व्यंजन कहा जाता है .इसे लाल मिर्च मक्खन और चीज़ के साथ पकाया जाता है जबकि केवादात्शी , पत्तागोभी , बीन्स आलू चीज़ और मक्खन से बनता है .यहाँ सब्जी में मिर्च की मात्रा ज्यादा होती है . 'एजी' चीज़ के साथ बारीक कटा सलाद था . 'रेडराइस' बेस्वाद (लेकिन सेहत के लिये अच्छे ) लाल चावल होता है...स्थानीय भोजन में शाकाहारी लोगों के लिये बस इतना ही है . हमने जैसे तैसे उदरपूर्ति की , फिर निकट ही स्थित म्यूजियम देखा 

टाकिन--
टाकिन
टाकिन भूटानका राष्ट्रीय पशु है इससे बड़ी विशेषता है कि यह बकरी और गाय का मिलाजुला रूप है , आगे बकरी और पीछे से गाय. तब तो टाकिन को देखना ही चाहिये ,इस विचार के साथ हम मोतीथांग प्रेजरवे (अभयारण्य) पहुँचे . विकास ने टाकिन के बारे में एक जनश्रुति सुनाई कि सदियों पहले एक लामा घूमते घूमते इधर आए . एक दिन उन्होंने एक जगह एक गाय की हड्डियाँ पड़ी देखी और दूसरी जगह एक बकरी की . लोगों को मालूम हो चुका था कि लामा के पास दैवीय शक्ति है इसलिये उनसे कुछ चमत्कार दिखाने का आग्रह किया तो सन्त ने बकरी और गाय दोनों की हड्डियों को जोड़कर प्राण डाल दिये तो एक विचित्र जानवर उठ खड़ा हुआ . वही जानवर आज टाकिन के नाम से जाना जाता है  .300 रुपए प्रति व्यक्ति टिकिट के हिसाब से 1200 रुपए देकर हम अन्दर गए तो महसूस हुआ कि इतने रुपए व्यर्थ गए क्योंकि वहाँ मात्र चार-पाँच टाकिन दिखे वह भी बहुत दूर . वे दूर उधर ही घूमते रहे .पास से देखने की चाह पूरी नहीं हो पाई . लौटते हुए परिजनों को उपहार देने हेतु 'बेम्बो मार्केट' से कुछ 'की-चेन' ,पर्स ,स्पेशल होममेड साबुन ,बुद्ध की प्रतिमाएं आदि सामान खरीदा . 
भूटान में हमने हर जगह लड़कियों को काम करते पाया .होटलों में भी रिशेप्शन से लेकर ,कुकिंग, फूड सर्विंग ,सफाई सब कुछ लड़कियाँ करतीं हैं और वह भी निर्भय , निश्चिन्त ,हँसमुख... यह बात हमें बड़ी अच्छी लगी . अच्छी और एक मिसाल .
रात में रॉयल पैलेस
अब तक शाम हो चली थी .तन मन दोनों ही आराम चाह रहे थे पर विकास ने कहा ----कुछ देर रुकें , रॉयल पैलेस की लाइट देखकर चलेंगे . 
"यहाँ आए ही हैं तो देख लेते हैं ना सर? "
.विकास साग्रह बोला . वह खुशमिजाज होने के साथ बहुत उत्साही और पर्यटकों का ध्यान रखने वाला युवक है . पैलेस की लाइट जलने में अभी लगभग एक घंटा की देर थी पर वह हमें यहाँ वहाँ घुमाता रहा और जानी अनजानी जानकारियाँ देता रहा कि यह खेल का मैदान है . तीरन्दाजी और डार्ट्स यहाँ के राष्ट्रीय खेल है , कि उस तरफ डोक्लाम है .आपको याद तो होगा न वहाँ का सीमा विवाद ..इस बार भूटान ओलम्पिक में भी शामिल हुआ था ... कि यहाँ भारत के सभी प्रधानमंत्री आ चुके हैं ... कि भूटान का एक मतलब भूतान भी है यानी भूतों का घर ..पहले यहाँ भूतों का डेरा हुआ करता था .हाँ सच्ची......
सात बजे रॉयल पैलेस लाल पीली रोशनी से जगमगा उठा तब विकास का आग्रह हमें बहुत आत्मीय और सार्थक लगा .वरना उसे क्या पड़ी थी . उस रात काफी अच्छी नींद आई .

जारी......

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा,रोचक और सहज यात्रा वर्णन आदरणीया गिरिजा जी। पहला भाग भी पढ़ा। सादर।

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  2. भूटान के बारे में कितनी तरह की जानकारी भी मिल रही है आपके इस रोचक यात्रा वृतांत से..साथ ही आपके पोते और पुत्रवधू से मुलाकात भी हो गयी..अगली कड़ी का इंतजार रहेगा

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  3. जी अनीता जी , मीनू जी आभार .यों तो जानकारी के और भी कई स्रोत हैं लेकिन यह मैंने खुद जानकर लिखा है . हमारा ड्राइवर विकास बहुत गुणी था . उसकी बहुत सी बातें तो मैं याद रख ही नही पाई .आप मेरी पोस्ट मुझे पढ़कर जो आगे का रास्ता दिखातीं हैं वह बड़ी बात है .

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  4. गलती से मीनू लिखा मीना जी . भूल माफ हो .

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  5. विस्तार से लिखा है आपने बुद्ध नगरी भूटान के बारे में ... हर बात का, रहन सहन, भाव भंगिमा, खान पान, सांस्कृति और विकास की कहानी कहता आपका आलेख रोचक और आती जानकारी पूर्ण है ... अभी तक भूटान जाना नहि हुआ पर इस लेख को पढ़ कर लगता है जैसे भूटान घूम रहा हूँ ... साधुवाद ...

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  6. अहा बहोत ही रोचक विवरण । लग रहा है भुटान ही घूम आये😍

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  7. सुंदर वर्णन। भूटान घूमने की इच्छा हो गई।

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