शनिवार, 9 मई 2020

प्रतीक्षा --कुछ क्षणिकाएं डायरी से


1)
आसमान में सु--दूर
झिलमिलाता
रुपहला तारा
कितना पास-
कितना दूर
(2)
दाँतों में फँसा हुआ
अदृश्य सूक्ष्म तन्तु
और कुछ तो सोचना भी
असंभव है
जिसके रहते
(3)
प्रतीक्षा
एक चिंगारी छोटी सी
सुलग -सुलग कर
धीरे-धीरे
बदल लेती है
राख में सब कुछ
(4)
प्रतीक्षा
रेगिस्तान में
लहराती हुई टहनी
बचाए है अपनी नमी
किसी तरह
लेकिन कब तक
(5)
फिजूलखर्च जिन्दगी के साथ
किसी तरह गुजारते
बचे हुए आखिरी गहने जैसी
प्रतीक्षा
किस सन्दूक में रखूँ
बचाकर
कहो तो-----
(6)
एक अन्तहीन
रुपहली रेशमी डोर सी
प्रतीक्षा
बँधी है क्षितिज के पार
टाँग दिया जिस पर
मैंने अपना ह्रदय
पडा था कोने में
रद्दी कपडे की तरह
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