tag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post3444610305140918268..comments2024-03-23T21:12:19.100-07:00Comments on Yeh Mera Jahaan: हिमालय की गोद में --2गिरिजा कुलश्रेष्ठhttp://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-61917604904954209972015-06-07T04:54:43.183-07:002015-06-07T04:54:43.183-07:00धन्यवाद मनीष जी ,दरअसल हम लोग गंग्टोक से निकलने मे...धन्यवाद मनीष जी ,दरअसल हम लोग गंग्टोक से निकलने में ही काफी लेट होगए थे . मंगन में रुककर खाना खाने के अलावा कहीं रुकने का अवसर ही नही था तब भी लाचेन पहुँचने से काफी पहले ही अँधेरा होगया था . जो भी हो यह यात्रा बेहद खूबसूरत थी .गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-74438181522249317082015-06-06T21:00:27.781-07:002015-06-06T21:00:27.781-07:00आज पढ़ा ..हम तो रास्ते भर कभी मंगन और कभी चुंगथाँग ...आज पढ़ा ..हम तो रास्ते भर कभी मंगन और कभी चुंगथाँग में रुकते हुए गए थे और लाचेन में वैसी ही एक छोटे कमरे में चावल और आलू बंद गोभी की सब्जी खाकर अपनी क्षुधा पूरी की थी।<br />Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-53842668058419064862014-11-25T03:11:13.883-08:002014-11-25T03:11:13.883-08:00चित्रों के साथ सजीव वर्णन... सरल, सरस और आपकी अपनी...चित्रों के साथ सजीव वर्णन... सरल, सरस और आपकी अपनी शानदार शैली.... मन मचल रहा है तीस्ता के साथ साथ बहने का.... लोकेन्द्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-6093127080565177942014-11-17T03:10:15.359-08:002014-11-17T03:10:15.359-08:00अद्वितीय नजारों के बीच से गुज़रती आपकी यात्रा का अं...अद्वितीय नजारों के बीच से गुज़रती आपकी यात्रा का अंड हम भी ले रहे हैं ... लाजवाब फ़ोटोज़ से आपने जैसे प्राकृति को साँसें दे दी हैं ... अनुपम ... दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-66131569083542100392014-11-13T06:01:34.109-08:002014-11-13T06:01:34.109-08:00Jewant yatra warnan.Jo pathak ko apane sath bahas...Jewant yatra warnan.Jo pathak ko apane sath bahasa let jata hai. Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-22895918592562925222014-11-13T01:43:53.527-08:002014-11-13T01:43:53.527-08:00यात्रा वृतांत की अनुपम प्रस्तुति .... एवं बेहतरीन...यात्रा वृतांत की अनुपम प्रस्तुति .... एवं बेहतरीन छाया चित्र <br />आभारसदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-62127855347962075542014-11-12T21:20:35.591-08:002014-11-12T21:20:35.591-08:00सुन्दर मनोरम यात्रा वृतांत में रमकर हिमालय की वादि...सुन्दर मनोरम यात्रा वृतांत में रमकर हिमालय की वादियों में खो जाने का मन करने लगा है ...<br />तस्वीरों के साथ पोस्ट बहुत जानदार बन जाती हैं ...मेरा भी यह अनुभव है <br />बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-82217048976486996412014-11-12T19:40:43.111-08:002014-11-12T19:40:43.111-08:00इन शब्दों में प्रकृति की सारी रमणीयता प्राणवंत ह...इन शब्दों में प्रकृति की सारी रमणीयता प्राणवंत हो उठी है -अपने विभिन्न रूपों और मुद्राओं के साथ यात्रा के सचित्र वर्णनों ने आभास कराया जैसे हम भी साथ-साथ चल दिये हों और उन अनुभूतियों का ग्रहण करते जा रहे हों .पढ़ने के क्रम में सहयात्री बना लेनेवाली इस संवेदनामयी अभिव्यक्ति हेतु आभार ! प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-7383997710486847592014-11-12T07:07:22.230-08:002014-11-12T07:07:22.230-08:00उन्मुक्त करता यात्रा वृत्तांत। बहुत सुन्दर। उन्मुक्त करता यात्रा वृत्तांत। बहुत सुन्दर। Harihar (विकेश कुमार बडोला) https://www.blogger.com/profile/02638624508885690777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-89615020831837478642014-11-12T05:53:48.533-08:002014-11-12T05:53:48.533-08:00धन्यवाद अनीता जी । आप जैसे ही कुछ मेरे अपने पाठक ह...धन्यवाद अनीता जी । आप जैसे ही कुछ मेरे अपने पाठक हैं जो मुझमें मेरे विश्वास को मजबूत बनाते हैं । सलिल भैया , आपने सही कहा है कि भावाभिव्यक्ति में मेरा बचपन झलकता है । इसे आप भी समझते होंगे कि जब गंभीर रचना को भी कोई बचकानेपन के साथ लिखता है तो निश्चित ही यह उसके भावों की गहनता ,अध्ययन व ज्ञान की अल्पता व भाषायी कौशल की न्यूनता होती है । <br />इसके अलावा हर नया अनुभव मुझे बहुत विस्मय व जिज्ञासापूर्ण बनाता है । गाँव में ऊपर उड़ते हवाईजहाज को देखकर बच्चे कितने चकित व उत्साहित होते हैं और पहली बार उसमें सफर करने वाले कितने आन्दोलित व रोमांचित होते हैं जबकि उसमें अक्सर सफर करने वाले लोग गंभीर बने रहते हैं । मुझे तो यही लगता है । <br />शब्दों को चित्रों से अधिक जीवन्त कहकर कितना कुछ तो कह दिया है आपने । गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-14336707194308904642014-11-12T05:36:47.419-08:002014-11-12T05:36:47.419-08:00आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-11-2014 को चर्चा मंच ...आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-11-2014 को चर्चा मंच पर <a href="http://charchamanch.blogspot.com/2014/11/1796.html" rel="nofollow"> चर्चा - 1796 </a> में दिया गया है <br />आभार दिलबागसिंह विर्कhttps://www.blogger.com/profile/11756513024249884803noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-60368025748890639102014-11-12T04:45:45.064-08:002014-11-12T04:45:45.064-08:00कदम कदम पर माँ की गोद से मचलकर उतरते चंचल बालक जैस...कदम कदम पर माँ की गोद से मचलकर उतरते चंचल बालक जैसे झरनों को गिना जाय या ,छोटी छोटी चट्टानों पर उछल-कूद करती तीस्ता की नीलाभ हरीतिमा वाली धारा की उन्मुक्तता के साथ साहचर्य बनाया जाय या घने जंगल में सुनसान रास्तों पर विचरती किशोरियों को अभयदान देती हुई सी पवित्र घाटियों पर मुग्ध हुआ जाय ...अद्भुत और मनोरम वर्णन..रोमांचक भी..बधाई इस यात्रा के लिए और यात्रा विवरण के लिए..Anitahttps://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-20900910079103535392014-11-11T23:07:50.285-08:002014-11-11T23:07:50.285-08:00दीदी! एक के बाद एक आपकी दोनों कड़ियाँ पढ गया. और पढ...दीदी! एक के बाद एक आपकी दोनों कड़ियाँ पढ गया. और पढते हुये ऐसा लगा कि आपके शब्दों के पर्वतों पर उपमाओं के आच्छादित हिमखण्डों का सौन्दर्य देखते हुये मैं भी आपकी इस यात्रा में सहयात्री हूँ. फिर भी जाने क्यों मुझे लग रहा है कि आपके अन्दर की मान्या इन दोनों पोस्टों में अधिक मुखर है बजाए गिरिजा कुलश्रेष्ठ के. एक कौतूहल, जिज्ञासा, उमंग, भय, प्रसन्नता और आश्चर्य, यह सारे भाव और ऐसे अनेक भाव दिख रहे हैं जो आपके और मान्या के मध्य आयु का अंतर समाप्त कर देते हैं!<br />चित्र जीवंत हैं, लेकिन विश्वास कीजिये चित्र अपनी सम्पूर्ण सजीवता में भी आपके शब्दों के मुक़ाबले उन्नीस हैं!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.com