tag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post5659984319515600862..comments2024-03-23T21:12:19.100-07:00Comments on Yeh Mera Jahaan: "अबे 'होगा' क्यों ? " गिरिजा कुलश्रेष्ठhttp://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-88080351735350912014-09-04T01:12:39.861-07:002014-09-04T01:12:39.861-07:00बहुत ही रोचक संस्मरण .... गुज़रे समय में कितना उत्स...बहुत ही रोचक संस्मरण .... गुज़रे समय में कितना उत्साह होता था हर बात का जो आज कहीं खो सा गया है बनावटी जीवन के परिवेश में ... बाकी सलिल जी ने पूरा विश्लेषण कर दिया है जहां तक फ़िल्मी गीतों पर भजन बनाने की बात है मेरा मत भी यही कहता है की इससे गरिमा में कमी जरूर आई है ... दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-4737168925189342102014-09-02T08:56:19.103-07:002014-09-02T08:56:19.103-07:00वाह...यह टिप्पणी तो खुद एक पूरी पोस्ट है सलिल भैय...वाह...यह टिप्पणी तो खुद एक पूरी पोस्ट है सलिल भैया । और 'कान में चींटी'! कितना सार्थक व सटीक प्रयोग । कर्णकटु संगीत के लिये दाल में कंकड़ इतना फिट कहाँ है । टिप्पणियों में ही आप कितना कुछ कह देते हैं ।गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-85473566026242487272014-09-02T08:25:35.111-07:002014-09-02T08:25:35.111-07:00दीदी! आज तो आपने मेरे अन्दर रुके हुये भावों को (आप...दीदी! आज तो आपने मेरे अन्दर रुके हुये भावों को (आपके शब्दों में कहूँ तो पॉलिथीन से जाम हुई नालियों की तरह) एक प्रवाह दे दिया! <br /><br />1. बापू जी जैसे लोग सही माने में संगीतमर्मज्ञ थे! मैं स्वयम के विषय में यही कहता हूँ कि साहित्य सृजन मेरे बस का नहीं, किंतु अच्छे-बुरे साहित्य की पहचान ही मुझे साहित्य की परख का गुण प्रदान करती है! बापू जी को नमन!!<br /><br />2. "इसलिये आसान राह यही लगती है कि फिल्मी तर्ज का इस्तेमाल कर भजन या किसी भी तरह का गीत बना लिया जाय."<br />यह अपने आप में एक विवाद का विषय रहा है, दीदी. पुराने समय में एक बड़ा कवि वर्ग यह मानता था कि गीत पहले लिखे जाने चाहिये और फिर उनकी धुनें बनाई जानी चाहिये, जबकि फिल्म उद्योग में धुनें पहले बनती हैं और गीत बाद में लिखे जाते रहे हैं. आज भी यही परिपाटी चली आ रही है. इसीलिये बनी बनाई धुनों पर (फ़िल्मी गीतों की धुनें) भजन बना लेना लोगों को आसान लगा. <br />हालाँकि यही कठिन परीक्षा भी होती है रचनाकार के लिये. आपके समान रचनाकार हो तो जो रचना जन्म लेती है वो आपके इस पोस्ट की शोभा बढ़ा रही है और अधकचरे रचनाकार जो गीत रचते हैं वो है - भोलाs भोलाss भोलाsss!! आयाs आयाss आयाsss!! (तोहफाs तोहफाss तोहफाsss...)!!<br /><br />3. मेरे एक संगीतकार मित्र, जिनके किसी भी गीत संगीत मेरी स्वीकृति के बिना पूरा नहीं होता था, से पहले बार मैंने सीखा था कि गायक और गायिका के लिये अलग अलग धुनें बनाई जाती हैं और जो गीत दोनों स्वर में गाया जाता है (युगल-गीत नहीं, स्वतंत्र गीत) उसकी धुनें भी अलग हुआ करती हैं. (मेरी एक पोस्ट में मैंने इसका ज़िक्र किया है और उस पोस्ट पर आई टिप्पणी में इस विषय को विस्तार भी दिया था) <br />इसलिये शर्मा जी की दुर्दशा का कारण इसी में छिपा है (मुझे हँसी आ रही है)... बेचारे शर्मा जी ने गायिका की धुन अपने लिये चुन ली, जो उनकी संगीत की अपरिपक्वता को दर्शाता है और बापू जी की दाल का कंकड़ कम, कान की चींटी अधिक बन गया!<br /><br />4. आना होगा, लाना होगा जैसी बातों का जवाब तो बस सलीम-जावेद या अमिताभ बच्चन ही दे सकते हैं - आज, खुश तो बहुत होगे तुम...!!<br /><br />5. आपकी भाभी के भजन सुनकर (जो उन्होंने अपनी डायरी में लिख रखे हैं अपनी महिला मण्डली की सखियों से सुनकर) मुझे हमेशा हँसी आती है! और वे समझती हैं कि मैं ईश्वर या उनके आराध्य का अपमान कर रहा हूँ. अब आप ही बताइये कौन अपमान कर रहा है ईश्वर का. <br /><br />6. गुलशन कुमार जी की चर्चा पर चुप हूँ. क्योंकि जो कहना चाहता हूँ उसके लिये यह विषय मुनासिब नहीं. एक पोस्ट है मन में बहुत दिनों से. शायद मेरी अगली पोस्ट हो! <br /><br />वैसे मेरा भजन तो परमात्मा के साथ वार्तालाप के रूप में ही हो जाता है! मज़ेदार पोस्ट दीदी!! चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-18655959032198355592014-09-02T01:05:57.669-07:002014-09-02T01:05:57.669-07:00बहुत रोचक संस्मरण..और भजनों का होता फिल्मीकरण...कल...बहुत रोचक संस्मरण..और भजनों का होता फिल्मीकरण...कल यहाँ गणेश पूजा का विसर्जन कार्यक्रम था, फ़िल्मी गीत धड़ल्ले से बजाये जा रहे थे अब उन पर भजन भी कौन बनाये.. Anitahttps://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-891343754785214072014-09-01T21:05:26.219-07:002014-09-01T21:05:26.219-07:00
भक्ति के उज्ज्वल और विह्वल कर देने वाले संगीत के ...<br />भक्ति के उज्ज्वल और विह्वल कर देने वाले संगीत के स्थान जगह जब सिनेमा आदि के गानों में जोड़-तोड़ कर पैच लगाए जाने लगते हैं तब मन में वे तन्मय भाव नहीं जागते - मुझे लगता है ये हृदय से निकली भावनाएँ नहीं उनका दिखाऊ आरोपण मात्र है.प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.com