tag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post6307515412045433952..comments2024-03-23T21:12:19.100-07:00Comments on Yeh Mera Jahaan: इसलिये कि....गिरिजा कुलश्रेष्ठhttp://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-9152699389046976142013-04-24T07:07:37.148-07:002013-04-24T07:07:37.148-07:00अंतर्मन तक कचोटता किसी का निरपेक्षी भाव.......प्रा...अंतर्मन तक कचोटता किसी का निरपेक्षी भाव.......प्रारम्भ में समझने में जटिलता हुई परन्तु अन्त तक आते-आते बहुत विचारणीय लगी आपकी लिखी पंक्तियां। कविता में छन्दबद्धता, भाव-स्पष्टता हो, सरलता हो तो उसमें डूब कर उसे जीवन माना जा सकता है। यदि आपकी यह कविता उपरोक्त अपेक्षित तत्वों से परिपूर्ण होती तो इसमें कविता-ग्राह्री के लिए एक स्मरणीय विचार है। Harihar (विकेश कुमार बडोला) https://www.blogger.com/profile/02638624508885690777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-90502598892875739382013-04-23T21:43:19.210-07:002013-04-23T21:43:19.210-07:00 behad sundar !!!!!!!!!!!! behad sundar !!!!!!!!!!!!abhihttps://www.blogger.com/profile/12954157755191063152noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-71839512188856006372013-04-20T00:12:38.906-07:002013-04-20T00:12:38.906-07:00ऐसी बातों से ही तो परिवार बनता है, अपने बनते हैं.....ऐसी बातों से ही तो परिवार बनता है, अपने बनते हैं.. निरपेक्ष रहकर तो ईश्वर को पाया जा सकता है, इनसान को नहीं।दीपिका रानीhttps://www.blogger.com/profile/12986060603619371005noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-37222238302531868972013-04-19T11:55:41.560-07:002013-04-19T11:55:41.560-07:00तुम हो मेरे अपने
अपने, जो अहसास कराते हैं
मुझे मे...तुम हो मेरे अपने<br />अपने, जो अहसास कराते हैं <br />मुझे मेरे अपने होने का <br />मुझे नही मालूम कि<br />निरपेक्ष कैसे रहा जाता है<br /><br />बहुत सुंदर और सटीक ..... संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-18986847176126203362013-04-19T10:31:43.189-07:002013-04-19T10:31:43.189-07:00बहुत सुन्दर रचना ....
सच कहा आपने ,निरपेक्ष कैसे र...बहुत सुन्दर रचना ....<br />सच कहा आपने ,निरपेक्ष कैसे रहें अपनों से??<br />मगर आपके अपने भी ऐसा ही सोचें तब न....<br />दिल को छू गयी रचना.<br /><br />सादर<br />अनु ANULATA RAJ NAIRhttps://www.blogger.com/profile/02386833556494189702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-181271379904958042013-04-19T10:01:35.895-07:002013-04-19T10:01:35.895-07:00सलिल भैया ,आपकी टिप्पणियाँ हमेशा प्रतीक्षित रहती ह...सलिल भैया ,आपकी टिप्पणियाँ हमेशा प्रतीक्षित रहती हैं इसलिये अब सबसे पहले स्पैम देखती हूँ । हाँ आप रचनाओं को इतनी ऊँचाई दे देते हैं कि मैं बहुत नीचे पाती हूँ अपने आपको ।<br />गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-1930719726043937622013-04-19T09:35:18.896-07:002013-04-19T09:35:18.896-07:00धन्यवाद वन्दना जी ।धन्यवाद वन्दना जी ।गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-34663562041359267382013-04-19T08:23:50.815-07:002013-04-19T08:23:50.815-07:00इसलिए कि बहुत सारे प्रश्नों का जबाब तो है लेकिन फि...इसलिए कि बहुत सारे प्रश्नों का जबाब तो है लेकिन फिर नया प्रश्न भी खड़ा हो जाता है , यही तो जीवन है ..........बहुत सुन्दर Dr. sandhya tiwarihttps://www.blogger.com/profile/15507922940991842783noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-47099473478769023602013-04-19T08:11:21.066-07:002013-04-19T08:11:21.066-07:00दीदी,
इस कविता ने मुझे मेरे परिवार की परंपरा याद द...दीदी,<br />इस कविता ने मुझे मेरे परिवार की परंपरा याद दिला दी... हमारे यहाँ आज भी यही होता है.. भूल की शिकायत, उसकी कैफियत और उसकी माफी या सज़ा... कुछ कहा तो बड़प्पन से कभी नहीं दबाया किसी बड़े ने.. तर्क और औचित्य की बुनियाद पर बात मानी या नकारी गयी.. हर सवालों के जवाब दिए गए, उन्हें "बेकार की बात" कहकर परे नहीं धकेला गया.. शायद याभी हमारे परिवार में सभी ने माना है, समझा है, जाना है..<br />.<br />तुम हो मेरे अपने<br />अपने, जो अहसास कराते हैं <br />मुझे मेरे अपने होने का <br />मुझे नही मालूम कि<br />निरपेक्ष कैसे रहा जाता है<br />अपनों से .....।<br />.<br />अब तो आपकी कविता भी एक पाठ की तरह लगती है और स्वयं को विद्यार्थी पाता हूँ.. <br />प्रणाम स्वीकारें!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7529418855709302892.post-23428472450140939362013-04-19T07:01:54.340-07:002013-04-19T07:01:54.340-07:00तो मत रहो यों मौन
चुपचाप एक दीवार बनाते हुए ।
तर्क...तो मत रहो यों मौन<br />चुपचाप एक दीवार बनाते हुए ।<br />तर्कों और बहसों से साबित करो<br />उसे झूठा...,<br />यों संवाद तो चलेगा<br />किसी तरह ही....।<br /><b>बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,</b><br /><b>RECENT POST </b><a href="http://dheerendra11.blogspot.in/2013/04/blog-post_18.html#links" rel="nofollow">: प्यार में दर्द है,</a>धीरेन्द्र सिंह भदौरिया https://www.blogger.com/profile/09047336871751054497noreply@blogger.com