बुधवार, 3 जून 2020

धरती का तप ---'नौतपा'


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कल यानी दो जून को अखबार में पढ़ा कि आज 'नौतपा' की अवधि समाप्त हो रही है .हम बचपन से ही नौतपा के बारे में सुनते आ रहे हैं कि जेठ माह में नौ दिन की वह अवधि जिसमें सबसे सूर्य का ताप सबसे अधिक रहता है ,नौतपा या नवतपा कहताली है .. .ज्योतिष के अनुसार साल में एक बार रोहिणी नक्षत्र की दृष्टि सूर्य पर पड़ती है। यह नक्षत्र 15 दिन रहता है लेकिन शुरू के पहले चन्द्रमा जिन नक्षत्रों पर रहता है वह दिन नौतपा कहलाते हैं। इसका कारण इन दिनों में गर्मी अधिक रहती है। माँ कहती थीं कि 'नौतपा' पूरा हो जाता है तो वर्षा अच्छी होती है .अगर इस बीच बादल छा गए या वर्षा होगई यानी तप खण्डित होगया तो अच्छी वर्षा की संभावना कम होजाती है .
वास्तव में नौतपा का अर्थ 'नौ दिन का ताप ' महज शाब्दिक है . पर इसके मूल में तप ,संयम , व्रत संकल्प, त्याग जैसे भाव ध्वनित होते हैं . इन भावों से अनुप्राणित कार्य बिना तप के संभव नहीं . व्यक्ति की प्रवृत्ति के अनुसार उसमें लोककल्याण या स्वार्थ भी सम्मिलित रहता है .ग्रीष्मऋतु में धरती तपती है. नौतपा में उसे ज्यादा तपना होता है .तपना अर्थात् तप , तपस्या . ताप और वर्षा यानी तप और वरदान . पौराणिक कथाओं में कितने ही सुर असुरों की कठोर तपस्या और उनके वरदान के प्रसंग हैं . जब इन्द्रदेव किसी की कठोर तपस्या से भयभीत होजाते तो उसे भंग करने के कूट रचते थे और तपस्या पूरी होने से पहले ही भंग होजाती और फलेच्छु फल से वंचित हो जाता . नौतपा' के बीच बादल और वर्षा का आना कहीं इन्द्रदेव की ही एक कूटनीति का हिस्सा तो नहीं है ?
धरती के साथ साथ सुना है कि चातक पक्षी भी अच्छी वर्षा के लिये कठोर व्रत करता है उसका व्रत है कि वह सिर्फ बादल से गिरी बूँद से ही अपनी प्यास बुझाता है . इस तरह वर्षा होने तक वह प्यासा ही रहता है . उसके इस कठोर व्रत के कारण ही इन्द्रदेव प्रसन्न होकर वर्षा करते हैं . कोई इसे बुढिया-पुराण या कपोल कल्पना कहकर भले ही नकारदे पर जीवन में व्रत और संकल्प के महत्त्व को कभी नहीं नकारा जा सकता . हमारे मनीषियों विद्वानों का चातुर्य यह है कि इस सार्वभौमिक सत्य को धर्म से जोड़ दिया गया है .साथ ही प्रकृति को मानव के रूप में प्रस्तुत करती है .  इस तरह धर्म विज्ञान से अलग नहीं . विज्ञान के अनुसार भी तो गर्मी के कारण ही पानी से भाप बनती है .किसी किताब में पढ़ा था कि मानवीकरण पाश्चात्यशास्त्र की देन है  बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि हमारे धर्मग्रन्थों में तो प्रकृति के हर अंग पर्वत सागर नदी वृक्ष सूरज चाँद सबको मानवीकरण द्वारा ही चित्रित किया है .  
नौतपा के सन्दर्भ में मुझे सियारामशरण गुप्त जी की कहानी कोटर और कुटीर याद आती है .कथ्य व शिल्प की दृष्टि से यह भी हिन्दी की एक अत्यन्त रोचक और उद्देश्यपूर्ण कहानी है .कहानी कोटर से शुरु होती है जिसमें चातक का बच्चा प्यास से व्याकुल होकर पानी पीने की जिद करता है .उसे पिता समझाता है कि -- "बेटा प्रथ्वी का यह निर्जल उपवास है। इसी पुण्य से उसे जीवनदान मिलेगा । भोजन का पूरा स्वाद और पूरी तृप्ती पाने के लिए थोड़ी-सी क्षुधा सहन करना अनिवार्य नहीँआवश्यक भी है ।"
लेकिन चातक-पुत्र विद्रोही है वह परम्पराओं को मानना नहीं चाहता . पिता के यह पूछने पर कि जल कहाँ ग्रहण करेगा ,पुत्र गंगाजल पीने की बात कहकर गंगा नदी की ओर उड़ जाता है .रास्ते में थकान अनुभव हुई तो सुस्ताने के लिये एक पेड़ पर उतर जाता है . यह पेड़ एक घर के आँगन में है . यह कुटीर है . इसमें अत्यन्त निर्धन किन्तु ईमानदार पिता बुद्धन और बेटा गोकुल है . गोकुल एक शाम देर से लौटता है .देरी का कारण था कि उसे रास्ते में रुपयों से भरा बटुआ मिला जबकि उसे रुपयों की सबसे ज्यादा जरूरत थी , घर में खाने तक को अनाज नहीं था,,उसने बटुआ उसके मालिक को लौटा दिया क्योंकि उसने बटुआ न मिलने पर उस आदमी के दुख और चिन्ता का अनुमान लगाया था . यह सुनकर पिता की आँखों से आँसू बहने लगे . उसने बेटे को गले लगाते हुए कहा कि इसी बल पर तो धरती थमी है. चातक पक्षी भी तो किस तरह कठिन निर्जल व्रत करके वर्षा के लिये कठोर व्रत करता है . जब वह पक्षी होकर अपने व्रत पर अडिग रह सकता है तो क्या हम अपने ईमान को अटल नहीं रख सकते ?..
पिता के इस संवाद को चातक-पुत्र ने सुना तो अपने मन की शिथिलता पर लज्जित हुआ और जल पीने  का विचार त्यागकर अपने कोटर की ओर उड़ गया .
प्रकृति हमारी अद्भुत पाठशाला है .वही हमें नियम , संयम और अनुशासन का पाठ पढ़ाती है जो सृष्टि के अटल और अनिवार्य सत्य है . व्रत ,संकल्प और संयम या आत्मनियंत्रण का ही दूसरा नाम है .सामान्य रूप से भी देखें तो कार्य छोटा हो या बड़ा कोई भी सृजन , शोध ,आविष्कार या कोई भी बड़ा काम बिना आत्मनियंत्रण या संकल्प के नहीं हो सकता . कोई चाहे इसे विज्ञान कहे चाहे धर्म के साथ जोड़कर अन्धविश्वास का नाम दे दे पर यह सत्य है कि बिना व्रत या संकल्प के बिना आत्मनियंत्रण के हम स्वयं को एक सुनिश्चित स्वरूप नहीं दे सकते .
जिनमें किसी व्रत का पालन कर पाने की दृढ़ता नहीं है , उनमें न तो आत्मविश्वास होता है न ही निर्णय लेने की क्षमता और न ही अपने कार्य के प्रति लगन .
व्रत संयम ,धैर्य , आस्था और कार्य के प्रति निष्ठा लाते हैं .इसी लिये हर धर्म में किसी न किसी तरह के व्रत का प्रावधान है . वह कोई आडम्बर नहीं , बल्कि विचारों को एक आधार , दृढ़ता और आत्मविश्वास लाने की एक सुन्दर हितकर जीवनशैली है .
( नौतपा की परिभाषा गूगल से साभार)

6 टिप्‍पणियां:

  1. शायद इसीलिए भारतीय संस्कृति में इतने सारे व्रत और उपवास बनाए गए हैं ताकि हम अपने मन पर संयम रखना सीख सकें। नवतपा के बारे में अच्छी जानकारी। सादर।

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  2. तभी तो दुनिया की सबसे पहली ऋचाओं में प्रकृति की जिन शक्तियों की स्तुति की गयी वही देव रूप में अग्नि,इंद्र, वायु, जल, मित्र, वरुण, इला, सरस्वती, मही, सविता, सूर्य, पृथिवी, द्युलोक आदि नामों से संबोधित हुए। प्रकृति ही प्राणियों की प्रकृति का मूलाधार है। नौ तपा के बारे में पहली बार जाना। अत्यंत आभार!!!

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  3. सादर नमस्कार,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (05-06-2020) को
    "मधुर पर्यावरण जिसने, बनाया और निखारा है," (चर्चा अंक-3723)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"



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  4. नयी जानकारी ये नहीं पता था । धन्यवाद दीदी🙏

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