सुबह सुबह
जब मेरी पलकों में समाया
था 
कोई स्वप्न .
नीम के झुरमुट में चहचहा
रही थीं चिड़ियाँ 
चिंता-मग्न तलाश रही
थीं कि
“अरे ,कहाँ गया सामने
वाला बड़ा सा पीपल ? 
कौन ले गया बरगद ,इमली
,नीम ,गुडहल ?.
कहाँ गया नीला नारंगी
आसमान ?” 
सुन सुनकर मैं भी हैरान
,
उठकर देखा 
सचमुच नहीं है अपनी
जगह  
दीनू की दुकान  
सरपंच की अटारी और मंगलू
का मकान 
फैलू की झोपडी पर सेम-लौकी
का वितान 
चिड़ियों की उड़ान 
धुंध में डूबे हैं दिशाओं
के छोर
चारों ओर
सारे दृश्य अदृश्य 
सुनाई दे रही हैं सिर्फ
आवाजें ,
चाकी के गीत ,चिड़ियों
का कलरव 
गाड़ीवाले की हांक ,
खखारता गला कोई 
छिनककर साफ करता नाक
क्या
है जो फैला है
धुंधला सा पारभाषी आवरण
कदाचित् 
बहेलिया चाँद ने
पकड़ने तारक-विहग 
फैलाया है जाल 
या सर्दी से काँपती ,ठिठुरती
धरती ने 
सुलगाया है अलाव 
उड़ रहा है धुआँ .
या आकाश के गली-कूचों
में 
हो रही है सफाई  
उड़ रही है धूल .
या मच्छरों से बचाव
के लिये 
उड़ाया जा रहा है
फॉग
या शायद ‘गुजर’ गयी रजनी
उदास रजनीश कर रहा है
,
उसका अंतिम-संस्कार
या कि   
साजिश है किसी की 
सूरज को रोकने की .
नहीं दिखा अभी तक .
बहुत अखरता है यों 
किसी सुबह 
सूरज का बंदी होजाना
.
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(1987 में रचित

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शुक्रवार 29 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसर्दी के कोहरे का बहुत सुंदर वर्णन !
जवाब देंहटाएंदिल्ली के स्मॉग में तो यह रोज़ ही घटता होगा शायद
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर ।
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