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सूरज की दादागिरी,सहमे नदिया ताल।
,हफ्ता, दे देकर हुई हरियाली कंगाल।
तीखे तेवर धूप के हवा दिखाए ताव।
मौसम के आतंक से ,कैसे करें बचाव ।
चढी धूप तपने लगा भडभूजे का भाड ।
चित्त चना सा भुन रहा,तन हो रहा तिहाड ।
दिन भर चूल्हे पर तपे धरती तवा समान ।
रोटी सेके दुपहरी,'जेठ' हुआ मेहमान ।
चिडिया बैठी तार पर ,मन में लिये मलाल।
कंकरीट के शहर में दिखे न कोई डाल ।
अनशन कर मानो खडा पत्र-विहीन बबूल ।
बादल बरसेंगे तभी लेगा पत्ते -फूल ।
धूप प्रतीक्षा सी चुभे,झुलसा मन का गाँव ।
पेड कटे उम्मीद के सपना हो गई छाँव ।
उडे बगूले धल बन धरती के अहसास ।
उत्तर जाने मेघमय कब देगा आकाश ।
बहुत ही सुंदर..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गिरिजा जी.....
जवाब देंहटाएंलाजवाब....
सादर.
्वाह गिरिजा जी कितने खूबसूरत भाव समेटे हैं हर शेर दाद के काबिल है।
जवाब देंहटाएंधूप बड़े पर मेघ प्रतीक्षा में बैठे..
जवाब देंहटाएंइन दोहों में है बसा ग्रीष्म ऋतु का चित्र,
जवाब देंहटाएंदोहों को मैं क्या कहूँ अद्भुत और विचित्र!
मुझको अब आशीष दें विदा करें अब आप,
अब मिलना तब होएगा, जब समाप्त हो शाप!
इस बात का क्या अर्थ है सलिल जी । फेसबुक में भी मैंने यही पूछा था । कैसा शाप । बताएं । आपकी टिप्पणी कुछ भ्रमित व निराश कर रही है । मेरी ही नही शायद सभी की रचनाएं आपके द्वारा पढे जाने की प्रतीक्षा करतीं हैं ।
हटाएंगिरिजा जी, सलिल चचा का ट्रांसफर दूसरे शहर हो गया है!!
हटाएंदिल्ली छोड़ कर जा रहे हैं वो :(
कंक्रीट के जंगलों ने गर्मी को असहनीय बना दिया है...
जवाब देंहटाएंलाजवाब कविता....
ये कविता तो एकदम गर्मियों के मौसम पर फिट बैठती है..और जो पेड़ों की बात आपने कही है...मुझे तो लगता है दिल्ली में इस तरह की गर्मी का सबसे बड़ा कारण एक ये भी है..मुझे तो नज़र ही नहीं आते पेड़ यहां..
जवाब देंहटाएंबैंगलोर में तो ऐसी कई सड़कें हैं जहाँ दोपहर में भी आपको धुप बिलकुल नहीं लगेगी...सड़कों के दोनों तरफ सिर्फ पेड़ ही पेड़!!
और मैं तो अभी "मौसम के आतंक से,कैसे करे बचाव" ही सोच रहा हूँ :) :)
bahut hi gahre arth hain inmein
जवाब देंहटाएंकल 31/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
इस रचना में कुछ ऐसे प्रयोग हैं जो बरबस आकर्षित करते हैं!
जवाब देंहटाएंबस आने को ही है अषाढ़
जवाब देंहटाएंआज-कल में मानसून केरल को छुएगा
पर
तपन का सजीव वर्णन बहुत भाया
सादर
गहन अर्थ लिए बहुत ही बेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
बहुत सुंदर रचना गिरिजा जी..
जवाब देंहटाएंआभार!!
चित्र खींचने में सफल, सुन्दर सुलझे भाव।
जवाब देंहटाएंगर्मी में तो यह धरा, बिलकुल लगे अलाव।
सुन्दर दोहों के लिए सादर बधाई स्वीकारें
बेहतरीन प्रकृति चित्रण
जवाब देंहटाएंआभार
भास्कर देव का प्रकोप ..पूछो मत ..क्या haal है
जवाब देंहटाएंसुन्दर सटीक चित्रण ...
आह ताप के उत्ताप का कितना वास्तव चितरण है । और हफ्ता दे दे कर हुई हरियाली कंगाल, वाह, बेहद पसंद आई ये रचना ।
जवाब देंहटाएंगहन भाव लिए उत्कृष्ट लेखन.. आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर गिरिजा जी ......गर्मी की तपिश से झुलसाती हुई सार्थक रचना !!!!
जवाब देंहटाएंआप्ब्र तो मौसम की इस गर्मी कों भी बाँध लिया शब्दों के आवेग में ...
जवाब देंहटाएंसार्थक दोहे ...
इस मौसम के तपिश से झुलसाती बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,,,,
जवाब देंहटाएंफालोवर बन गया हूँ आप भी बने तो मुझे खुशी होगी,,,,,,
RECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,
bahut sunder kavita......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंगिरिजा जी आपक एदोहे बहुत दमदार हैं । इनका अन्यत्र भी उपयोग कीजिएगा । कोटिश: बधाई !!
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