रविवार, 27 मई 2012

जेठ हुआ मेहमान


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सूरज की दादागिरी,सहमे नदिया ताल।
,हफ्ता, दे देकर हुई हरियाली कंगाल।

तीखे तेवर धूप के हवा दिखाए ताव।
मौसम के आतंक से ,कैसे करें बचाव ।

चढी धूप तपने लगा भडभूजे का भाड ।
चित्त चना सा भुन रहा,तन हो रहा तिहाड ।

दिन भर चूल्हे पर तपे धरती तवा समान ।
रोटी सेके दुपहरी,'जेठ' हुआ मेहमान ।

चिडिया बैठी तार पर ,मन में लिये मलाल।
कंकरीट के शहर में दिखे न कोई डाल ।

अनशन कर मानो खडा पत्र-विहीन बबूल ।
बादल बरसेंगे तभी लेगा पत्ते -फूल ।

धूप प्रतीक्षा सी चुभे,झुलसा मन का गाँव ।
पेड कटे उम्मीद के सपना हो गई छाँव ।

उडे बगूले धल बन धरती के अहसास ।
उत्तर जाने मेघमय कब देगा आकाश ।

26 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर गिरिजा जी.....

    लाजवाब....

    सादर.

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  2. ्वाह गिरिजा जी कितने खूबसूरत भाव समेटे हैं हर शेर दाद के काबिल है।

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  3. धूप बड़े पर मेघ प्रतीक्षा में बैठे..

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  4. इन दोहों में है बसा ग्रीष्म ऋतु का चित्र,
    दोहों को मैं क्या कहूँ अद्भुत और विचित्र!
    मुझको अब आशीष दें विदा करें अब आप,
    अब मिलना तब होएगा, जब समाप्त हो शाप!

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    1. इस बात का क्या अर्थ है सलिल जी । फेसबुक में भी मैंने यही पूछा था । कैसा शाप । बताएं । आपकी टिप्पणी कुछ भ्रमित व निराश कर रही है । मेरी ही नही शायद सभी की रचनाएं आपके द्वारा पढे जाने की प्रतीक्षा करतीं हैं ।

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    2. गिरिजा जी, सलिल चचा का ट्रांसफर दूसरे शहर हो गया है!!
      दिल्ली छोड़ कर जा रहे हैं वो :(

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  5. कंक्रीट के जंगलों ने गर्मी को असहनीय बना दिया है...
    लाजवाब कविता....

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  6. ये कविता तो एकदम गर्मियों के मौसम पर फिट बैठती है..और जो पेड़ों की बात आपने कही है...मुझे तो लगता है दिल्ली में इस तरह की गर्मी का सबसे बड़ा कारण एक ये भी है..मुझे तो नज़र ही नहीं आते पेड़ यहां..
    बैंगलोर में तो ऐसी कई सड़कें हैं जहाँ दोपहर में भी आपको धुप बिलकुल नहीं लगेगी...सड़कों के दोनों तरफ सिर्फ पेड़ ही पेड़!!

    और मैं तो अभी "मौसम के आतंक से,कैसे करे बचाव" ही सोच रहा हूँ :) :)

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  7. कल 31/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  8. इस रचना में कुछ ऐसे प्रयोग हैं जो बरबस आकर्षित करते हैं!

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  9. बस आने को ही है अषाढ़
    आज-कल में मानसून केरल को छुएगा
    पर
    तपन का सजीव वर्णन बहुत भाया
    सादर

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  10. गहन अर्थ लिए बहुत ही बेहतरीन रचना...
    :-)

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  11. बहुत सुंदर रचना गिरिजा जी..
    आभार!!

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  12. चित्र खींचने में सफल, सुन्दर सुलझे भाव।
    गर्मी में तो यह धरा, बिलकुल लगे अलाव।

    सुन्दर दोहों के लिए सादर बधाई स्वीकारें

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  13. बेहतरीन प्रकृति चित्रण
    आभार

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  14. भास्कर देव का प्रकोप ..पूछो मत ..क्या haal है
    सुन्दर सटीक चित्रण ...

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  15. आह ताप के उत्ताप का कितना वास्तव चितरण है । और हफ्ता दे दे कर हुई हरियाली कंगाल, वाह, बेहद पसंद आई ये रचना ।

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  16. गहन भाव लिए उत्‍कृष्‍ट लेखन.. आभार ।

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  17. बहुत ही सुन्दर गिरिजा जी ......गर्मी की तपिश से झुलसाती हुई सार्थक रचना !!!!

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  18. आप्ब्र तो मौसम की इस गर्मी कों भी बाँध लिया शब्दों के आवेग में ...
    सार्थक दोहे ...

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  19. इस मौसम के तपिश से झुलसाती बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,,,,
    फालोवर बन गया हूँ आप भी बने तो मुझे खुशी होगी,,,,,,

    RECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,

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  20. गिरिजा जी आपक एदोहे बहुत दमदार हैं । इनका अन्यत्र भी उपयोग कीजिएगा । कोटिश: बधाई !!

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