बस भरोसा रहे ,और रहे हौसला
दौर तूफान का भी , गुजर जाएगा ।
क्या हुआ रात हो गई अगर राह में,
चलते--चलते सुबह का पहर आएगा ।
यह अँधेरा उसी को डराता सदा
जो उससे निगाहें बचाता सदा
आँधियाँ धूल से ,भर गईं जो चमन ,
बारिशों में वो फिर से निखर जाएगा ।
खिड़कियाँ बन्द क्यूँ ,रोशनी मन्द क्यूँ ?
सोच की चादरों में है पैबन्द क्यूँ ?
राह दे दो उसे ,जो है भटका हुआ ।
वरना जाने कहाँ वो किधर जाएगा ।
जो चले आए अपना तुम्हें जानकर ।
साथ लेकर चलोगे यही मानकर ।
अब जो बदली अगर , तुमने अपनी नजर
मीत सोचो कि क्या कुछ बिखर जाएगा ।
अब नही मानता नीम की छाँव को
भूलता जा रहा ,खेत ,घर ,गाँव को
भीड़ में खो रहा ,एक सड़क हो रहा
ऐसा ही होगा ,जो भी शहर जाएगा ।
पत्थरों में उगे बीज की बात हो ,
बीहड़ों में सुने गीत की बात हो ।
सोज और ओज आवाज में हो अगर ,
तो यकीनन समय भी ठहर जाएगा ।
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जवाब देंहटाएंग़ैर है कौन, और कौन अपना यहाँ
जवाब देंहटाएंछूट जाते सभी, छूटता जब जहाँ
काम कर ऐसा कुछ, याद रक्खें सभी
ये जहाँ छूट जाए, वो संग जाएगा।
मन्दिरों मस्जिदों में जो ढूँढा किए
रोज़े रखे, रहे भूखे और व्रत किये
मन के मन्दिर में अपने जो तू खोज ले
अपने अंतस में ही तू उसे पाएगा।
दीदी! आपने तो इस अ-कवि को भी कवि बना दिया! शिक्षक दिवस और हिन्दी दिवस का उपहार आपके लिये!!
बहुत ही शानदार और अनमोल उपहार है भाई । इतनी जल्दी ऐसी काव्यमय प्रतिक्रिया मैं नही देसकती ।
हटाएंबहुत प्रेरक उद्बोधन देती हुई कविता है और उसी को आस्था से संवलित करती सलिल की पंक्तियाँ - दोनों को साधुवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी कविता....
जवाब देंहटाएंदी आपकी और सलिल दा की जुगलबंदी कमाल रही !
सादर
अनु
अब नही मानता नीम की छाँव को
जवाब देंहटाएंभूलता जा रहा ,खेत ,घर ,गाँव को
भीड़ में खो रहा ,एक सड़क हो रहा
ऐसा ही होगा ,जो भी शहर जाएगा ।...................... बहुत सुंदर।
अब नही मानता नीम की छाँव को
जवाब देंहटाएंभूलता जा रहा ,खेत ,घर ,गाँव को
भीड़ में खो रहा ,एक सड़क हो रहा
ऐसा ही होगा ,जो भी शहर जाएगा ।
सचमुच भीड़ में खो ही जाता है आज आदमी...किन्तु ऐसे समय में भी बोध देतीं पंक्तियाँ...
खिड़कियाँ बन्द क्यूँ ,रोशनी मन्द क्यूँ ?
जवाब देंहटाएंसोच की चादरों में है पैबन्द क्यूँ ?
राह दे दो उसे ,जो है भटका हुआ ।
वरना जाने कहाँ वो किधर जाएगा ..
पह्के पद आशा और विश्वास का संचार करते हुए ... फिर जीवन के सत्य से साक्षात्कार करवाते हुए ... फिर इस अनत भीड़ का एहसास करवाती बहुत ही सुन्दर लाजवाब रचना ...