गुरुवार, 23 अक्टूबर 2014

ज्योतिर्मय यह पर्व है

ज्योतिर्मय यह पर्व है ,
जगर-मगर उजियार।
ऐसे ही शाश्वत रहे ,
अन्तर्मन उजियार ।


नेह और विश्वास का , हो प्रवाह अविराम ।
इन्तज़ार तब तक रहे , जब तक लौटें राम ।

घर लौटे विश्वास यों पूरा कर वनवास,

निर्वासित ना हो कभी वैदेही सी आस ।

घर-आँगन ही क्यों रहें , बाहर भी हो स्वच्छ ।

राम-राज्य साकेत-मन ,हर निर्णय निष्पक्ष ।

दीपावलियों में कहाँ ,टिके अमावस रात 

उजियारे की चाह में , कोई तो है बात ।

मन दीपक जलता रहे ,करे तिमिर का नाश।
यों घर में दीपावली ,रहे बारहों मास ।

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 






( चित्र गूगल से साभार )

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24.10.2014) को "शुभ दीपावली" (चर्चा अंक-1776)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है। दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।

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  2. बहुत सुन्दर।
    प्रकाशोत्सव के महा पर्व दीपावली की शृंखला में
    पंच पर्वों की आपको शुभकामनाएँ।

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  3. बहुत सुन्दर।
    प्रकाशोत्सव के महा पर्व दीपावली की शृंखला में
    पंच पर्वों की आपको शुभकामनाएँ।

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  4. सुंदर ।
    आपको भी सपरिवार दीपोत्सव शुभ हो मंगलमय हो ।

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  5. दीपावलियों में कहाँ ,टिके अमावस रात
    उजियारे की चाह में , कोई तो है बात ...
    सच लिखा है .. जहां दीप और प्रकाश अपना वास करने लगता है अन्धकार कहाँ टिक पाटा है .... सभी दोहे प्रकाश, आशा और विश्वास का पथ प्रशस्त करते हुए ...
    दीपों के मंगल त्यौहार की मंगल कामनाएं ...

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  6. आपको भी मंगल कामनाएं ...
    सादर

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  7. मन दीपक जलता रहे ,करे तिमिर का नाश।
    यों घर में दीपावली ,रहे बारहों मास ।
    मंगलकामनाएँ !
    सादर !

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  8. नेह और विश्वास का , हो प्रवाह अविराम ,
    मन निर्मल ,निश्छल रहे तभी बसेंगे राम !

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