मौसम के द्वार
पर ऋतुरानी आई
पलकों के छोर
खोल कलियाँ मुस्काईं .
कोयल ने बाँची
जो केसरिया पाती
गूँज उठी
सुधियों के आँगन शहनाई .
गुलमोहर भर लाया मुट्ठी गुलाल अब
किंशुक ने
कुंकुम की थाली सजाई .
गूँज उठी सुधियों के आँगन शहनाई .
रचने लगा शिरीष खुशबू के गीत अब
वासन्ती सरसों
,उमंगों की जीत अब
झौर झौर बौर
बौर महकी अमराई
गूँज उठी
सुधियों के आँगन शहनाई
ठूँठ हुए अन्तर
में पल्लव से पीके हैं
राग ने सिखाने
के ढंग नए सीखे हैं
पोर पोर पीर जागी
,अखियाँ अलसाईं
गूँज उठी
सुधियों के आँगन शहनाई
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-02-2021) को "नयन बहुत मतवाले हैं" (चर्चा अंक-3987) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी .
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 23 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद यशोदा जी
हटाएंबहुत सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंरचने लगा शिरीष खुशबू के गीत अब
जवाब देंहटाएंवासन्ती सरसों ,उमंगों की जीत अब
झौर झौर बौर बौर महकी अमराई
गूँज उठी सुधियों के आँगन शहनाई
बहुत सुंदर मनोहारी रचना
बसंत ऋतु की सुंदरता का मनोहारी वर्णन... सुन्दर गीत..
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंसादर.
बहुत ही सुन्दर मुग्ध करती कविता - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंमनोमुग्धकारी गीत में वसंत को पिरो दिया है.
जवाब देंहटाएंप्रणाम माँ
हटाएंबहुत प्यारा गीत ।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंआप सबका बहुत बहुत आभार जो आपने गीत को पढ़ा सराहा .
जवाब देंहटाएंशब्दों की चित्रकारी... आँगन में खिल आए मौसमी रंग!!
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