सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

खुशबू के गीत


मौसम के द्वार पर ऋतुरानी आई

पलकों के छोर खोल कलियाँ मुस्काईं .

कोयल ने बाँची जो केसरिया पाती

गूँज उठी सुधियों के आँगन शहनाई .

 

 
भोर ने उतार दी कुहासे की शाल अब

गुलमोहर भर लाया मुट्ठी गुलाल अब

किंशुक ने कुंकुम की थाली सजाई .

गूँज उठी सुधियों के आँगन शहनाई .


रचने लगा शिरीष खुशबू के गीत अब

वासन्ती सरसों ,उमंगों की जीत अब

झौर झौर बौर बौर महकी अमराई

गूँज उठी सुधियों के आँगन शहनाई

 

ठूँठ हुए अन्तर में पल्लव से पीके हैं

राग ने सिखाने के ढंग नए सीखे हैं

पोर पोर पीर जागी ,अखियाँ अलसाईं

गूँज उठी सुधियों के आँगन शहनाई

 

 

15 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-02-2021) को     "नयन बहुत मतवाले हैं"  (चर्चा अंक-3987)    पर भी होगी। 
    --   
    मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 23 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. रचने लगा शिरीष खुशबू के गीत अब

    वासन्ती सरसों ,उमंगों की जीत अब

    झौर झौर बौर बौर महकी अमराई

    गूँज उठी सुधियों के आँगन शहनाई

    बहुत सुंदर मनोहारी रचना

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  4. बसंत ऋतु की सुंदरता का मनोहारी वर्णन... सुन्दर गीत..

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  5. बहुत ही सुन्दर मुग्ध करती कविता - - नमन सह।

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  6. मनोमुग्धकारी गीत में वसंत को पिरो दिया है.

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  7. आप सबका बहुत बहुत आभार जो आपने गीत को पढ़ा सराहा .

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  8. शब्दों की चित्रकारी... आँगन में खिल आए मौसमी रंग!!

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