‘फुनगियों पर डेरा’ से अब आप अपरिचित नहीं होंगे ,ऐसा मैंने मान लिया है फिर भी पुनः बता देती हूँ यह ‘श्वेतवर्णा’ से सद्यप्रकाशित पुस्तक है जो अर्चना चावजी के विचार और वन्दना अवस्थी की प्रेरणा से साकार हुए समूह ‘गाओ गुनगुनाओ शौक से’ की सात वर्षीय गतिविधियों का लेखा है . समूह का नाम बेशक गीत गाने गुनगुनाने को ही प्रस्तुत करता है लेकिन उसमें तमाम अन्य गतिविधियाँ ( चित्र ,कविता , गीत ,संस्मरण , पत्र लेखन लघुकथाएं आदि )भी चलती रही है इसलिये यह पुस्तक साधारण नहीं बल्कि विविध कलाओं में विशिष्टता पाई साहित्यकार व ब्लागर सखियों की रचनात्मकता का विशिष्ट उदाहरण है .
अर्चना की इच्छा व ऋता पूजा व सभी विदुषियों के सम्मिलित प्रयास से किताब प्रकाशित तो होगई . सबको भिजवा भी दी गई लेकिन अर्चना और हम सभी के मन में उसके विमोचन की प्रबल चाह अभी शेष थी . विचार तो यह था कि किसी ऐतिहासिक या ऐसी जगह जहाँ सभी जाना चाहें सब पहुँचकर इस कार्य को अंजाम दें पर वह संभव नहीं हो पाया . क्योंकि मैं , ऋता शेखर और अर्चना फिलहाल बैंगलोर में ही हैं इसलिये हमने तय किया कि तीनों ही सबको ऑनलाइन बुलाकर विमोचन सम्पन्न करें . उसके लिये जगह तय करने में एक सप्ताह लगा . तय हुआ कि क्यों न हम किसी पार्क के सुहाने वातावरण में इस कार्य को सम्पन्न करें . इसके लिये कब्बन पार्क को चुना . दिनांक 2 जून 2024 को हम पूरी तैयारी के साथ कब्बन पार्क में पहुँच गईं . रविवार होने के कारण पार्क में बहुत भीड़ थी . एक बार तो लगा कि हमने जगह चुनने में गलती करदी . लेकिन एक जगह हमने अपना आसन लगा ही लिया . ऋता को ऐसी व्यवस्थाओं में बड़ी महारत हासिल है . विमोचन के लिये सारी आवश्यक वस्तुएं सरस्वती जी की तस्वीर फूल रोली चन्दन आदि ऋता ही लेकर आईँ . तीन बजे समूह की सभी विदुषी सखियाँ ऑनलाइन उपस्थित हुईं . कुछ सखियाँ कारण वश नहीं आ सकीं , निश्चित ही उनकी कमी बहुत अखरी . साढ़े चार बजे तक हम सबने पुस्तक विमोचन के साथ आवश्यक और तय कार्यक्रम के अनुसार अपने अपने विचार व्यक्त किये .पुस्तक विमोचन का यह आयोजन निश्चित ही बड़ा अनौखा व विशिष्ट था . हमारी मनमर्जी का यह एक बेहद खास और आनन्दभरा अनुभव था .
मन में उसी आनन्द को सहेजे लगभग छह बजे ऋताशेखऱ मैट्रो से अपने घर चली गईं . वहाँ से अर्चना का घर बहुत दूर था . आधी दूर तक वह मेरे साथ ही सन सिटी तक आने वाली थी फिर वहां से सरजापुर रोड स्थित घर . मैं टैक्सी बुक करने का प्रयास कर रही थी लेकिन मेरे मोबाइल फोन पर 'डेस्टीनेशन' नहीं आ रहा था .प्रशान्त ने कहा कि मम्मी आप वहीं खड़ी रहें .मैं कैब बुक कर देता हूँ ,लेकिन इस समय थोड़ा समय लग सकता है .ट्रैफिक बहुत ज्यादा है . उसी समय एक सीधा सज्जन दिखने वाला ऑटो-ड्राइवर हमसे चलने का आग्रह करने लगा . हमने उसे टालने के लिये कुछ कम किराया कहा तो वह उसी पर चलने तैयार होगया मानो उसे इसकी बहुत ज़रूरत थी . मालूम नहीं जल्दी निकलने का विचार था या उस ऑटो ड्राइवर का आग्रह या फिर तेज बारिश का खतरा , हमने जल्दी से वह ऑटो ही किराए पर ले लिया . ऑटो कुछ मीटर चला ही था कि प्रशान्त ने टैक्सी बुक करवा दी . लेकिन अब ऑटो से उतरना हमें उस ड्राइवर के साथ नाइन्साफी लगा . अस्तु प्रशान्त को कैब कैंसल करने को कह दिया . आप सोच रहे होंगे कि इतनी सी बात का इतना हंगामा क्यों , तो असल में इसके आगे जो हुआ वह आसानी से भुला दिया जाने वाला प्रसंग नहीं है . यह हमारी मनमर्जी का यह दूसरा उदाहरण था .लेकिन पहले से उलट बड़ा ही खतरनाक .
प्रशान्त ने घर से चलते समय भी और बीच में भी फोन पर कहा कि जल्दी निकल आना मम्मी शाम को बहुत तेज बारिश हो सकती है ..हमने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया लेकिन हुआ वही कि एक किमी भी न चले कि बारिश शुरु होगई . बारिश अच्छी लगती है लेकिन घर में ही . बाहर मुझे बहुत डर लगता है . भीगने का नहीं ,बादलों के कर्णविदारक तुमुल घोष और रोष दिखाती बिजली का .ऑटो में बौछारों से बचाव की कोई तैयारी नही थी . यानी हमें एक घंटे का रास्ता बूँदों के प्रहार सहते हुए ही तय करना था . हम इसी चिन्ता में थीं कि ऑटो वाले ने एक एक जगह सी एन जी के लिये ऑटो खड़ा किया और हमारे अधिक से अधिक तीस सेकण्ड बाद ही पीछे बड़ी जोर की आवाज व चीख पुकार सुनाई दी . ऑटो वाले ने घबराकर कहा—"हे वैंकटेश्वरा रक्षा करो। दो तीन तो गए .”
“भैया आप किसकी बात कर रहे हैं ?”--अर्चना ने पूछा . उसकी बातों से पता चला कि हमारे पीछे लगभग पचास साठ कदम पर खड़ा पेड़ एक ऑटो पर गिर पड़ा था . ऑटो पूरी
तरह पिचक गया था . यह सचमुच भयानक था . अगर हम बीस-तीस सेकण्ड लेट होते तो वही
हश्र हमारा होता यह सोचकर हृदय जोर से धड़क उठा . उस दर्घटना में लोग जान से नहीं गए होंगे तो गंभीर रूप से घायल
ज़रूर हुए होंगे . उन लोगों के बारे में सोचना भी कम दुखद नहीं था .
इसके बाद बारिश बहुत ज्यादा तेज होगई . हमारे कपड़े पूरी तरह भीग गए . तेज हवा पसलियों तक चोट कर रही थी .लेकिन हमें घर पहुँचने की चिन्ता थी . बारिश मूसलाधार थी . सड़क पर पानी बढ़ता जा रहा था .पास से गुजरती कारें हमें सिर तक भिगोने का उपक्रम कर रही थीं . ड्राइवर सचमुच सज्जन था . फोन पर उसका बेटा मना करता रहा –-“ पापा गाड़ी मत चलाओ .” लेकिन वह गाड़ी को लगातार भगाता रहा . इधर प्रशान्त काफी परेशान था . लेकिन हम गीत गा गाकर जैसे जान बच जाने का जश्न मान रही थीं और ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का अनुभव कर रही थीं .साथ ही अपनी तमाम आशंकाओं को परे झाड़ रहीं थीं .
जिस समय हमें सरजापुर क्रॉस वाला
ब्रिज दिखा , हमने चैन की साँस ली . अर्चना का घर अभी बहुत दूर था . इसलिये वह
मेरे साथ ही कुछ देर के लिये आगई . हमारे कपड़े तरबतर थे ., तुरन्त बदले .
सुलक्षणा ने बढ़िया चाय बनाकर दी .
हम निश्चित ही एक बड़े संकट को पार कर आई थीं . तेज बारिश में ऑटो बन्द भी हो सकता था ,तेज हवा में पलट भी सकता था . और ड्राइवर हमें कहीं भी उतारकर भाग सकता था या चलने से मना कर सकता था .
लेकिन जब कोई काम हम अपनी मर्जी व जिम्मेदारी के साथ करते हैं तब कोई और दोषी नहीं होता . इसलिये कठिनाई सहने और पार पाने की शक्ति भी स्वतः ही आती है . हमने ड्राइवर को धन्यवाद कहा . उसे पूरा उचित किराया दिया . तब तक बारिश का आवेश भी कम होगया .
खैर यह
सब छोड़ तस्वीरों से आप भी हमारे आनन्द का अनुभव कर सकते हैं .
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ जून २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
धन्यवाद श्वेता जी
हटाएंजान बची । यह तो बहुत गड़बड़ हो गया । ईश्वर का लाख लाख शुक्र और उन गीतों का जो हिम्मत बने
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद ।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी
हटाएंएक यादगार दिन हम सखियों का, बहुत ही व्यवस्थित तरीके से सब संपन्न हुआ।
जवाब देंहटाएंसचमुच बड़ा ही यादगार दिन रहा।
जवाब देंहटाएंअनुपम चित्र, रोमांचक विवरण, आप सभी को इस उपलब्धि के लिए बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंअभिनन्दन आपका
हटाएंपुस्तक का विवरण इतना दिलचस्प है कि पढ़ने की उत्सुकता बढ़ गई. और पुस्तक विमोचन के साथ एक अविस्मर्णीय अनुभव को आपके साथ जी लिया. बहुत मज़ा आया. अभिनंदन आपका और सखी वृन्द का. नमस्ते.
जवाब देंहटाएंनूर जी आपका हार्दिक स्वागत और
हटाएंबहुत आभार
नूपुरं *
हटाएंजान बची और सुरक्षित घर पहुंच गए आप लोग ईश्वर का लाख लाख शुक्र है। शुरुआत की सरस्वती वंदना और विमोचन तक तो हम भी साथ थे आप लोगों के। यादगार दिन की सभी को बधाई और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत प्यार और आभार प्रिय सन्ध्या
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