मौसम कैसा होगया है संवेदन-हीन
कोहरे में डूबी सुबह और दोपहर दीन ।
यह है उसकी बेरुखी या निर्मम अभिमान
धूप छुपा कबसे कहाँ, ओझल है दिनमान ।
उम्मीदों पर जम गया रातों-रात तुषार
सुलगा यादों के अलाव, काट रहे अँधियार ।
सरसों लिखना चाहती थी वासन्ती फाग
लेकिन बादल गारहे ,बेमौसम का राग ।
भीगे पंख पखेरुआ हुए नीड में मौन
राहों के हिमखण्ड को आकर तोडे कौन ।
थर-थर पल्लव स्वप्न सब तुहिन कणों के घात
धुँआ हुई साँसें सुबह दूर्वा अश्रु निपात ।
क्षीण मलिन नदिया हुई ताल हुआ अपरूप
काश पुलिन पर आ बसे बस अँजुरी भर धूप
कोहरे में डूबी सुबह और दोपहर दीन ।
यह है उसकी बेरुखी या निर्मम अभिमान
धूप छुपा कबसे कहाँ, ओझल है दिनमान ।
उम्मीदों पर जम गया रातों-रात तुषार
सुलगा यादों के अलाव, काट रहे अँधियार ।
सरसों लिखना चाहती थी वासन्ती फाग
लेकिन बादल गारहे ,बेमौसम का राग ।
भीगे पंख पखेरुआ हुए नीड में मौन
राहों के हिमखण्ड को आकर तोडे कौन ।
थर-थर पल्लव स्वप्न सब तुहिन कणों के घात
धुँआ हुई साँसें सुबह दूर्वा अश्रु निपात ।
क्षीण मलिन नदिया हुई ताल हुआ अपरूप
काश पुलिन पर आ बसे बस अँजुरी भर धूप
बहुत सुन्दर बहुत अनुकूल।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा चित्रण किया है , मानव की कठिनाई का प्रकृति के माध्यम से नायब वर्णन
जवाब देंहटाएंनिष्कर्ष अनुकूल होंगे, भविष्य निष्ठुर नहीं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : स्वर्णयोनिः वृक्षः शमी
अति सुंदर कहा है।
जवाब देंहटाएंएक बार पहले भी कहा था मैंने कि कालिदास की रचनाओ6 की विशेषता उनकी उपमाएँ हुआ करती थीं!! और यही विशेषता आपकी रचनाओ6 में भी दिखाई देती हैं, चाहे दग्य हो या पद्य.. इस दोहावलि में प्रकृति की उपमाओं से सँजोकर आपने इस भयंकर शीत से जूझ रहे लोगों की दशा चित्रित की है!!
जवाब देंहटाएंएक सुखद अनुभूतो है इस रचना को पढ़ना!!
बहुत ही सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंउम्मीदों पर जम गया रातों-रात तुषार
जवाब देंहटाएंसुलगा यादों के अलाव, काट रहे अँधियार ।
...वाह...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण...
बहुत गहरे भाव और प्रभावशाली बिम्ब..
जवाब देंहटाएंमौसम का मिजाज़ पकड़ लिया ... उपमान बहुत ही सुंदर हैं
जवाब देंहटाएंवाह
अति सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मेरी प्रियतमा आ !
नई पोस्ट मौसम (शीत काल )
सुंदर उपमाओं से भरे मनमोहक दोहे।...वाह! आनंद दायक।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावमय ... मनमोहक दोहे ... प्राकृति के विभिन्न रंगों से सजे ...
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