को श्रोताओं ने खूब पसन्द किया था ।
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मन रोम रोम उल्लास भरे
हर बाधा से ऊपर जाकर ,
हर अन्तर में विश्वास भरे .
नैराश्य निशा का करे अन्त
वीरों का ऐसा हो वसन्त ।
विकसित हों नए पुष्प पल्लव
सद्भावों का बिखरे सौरभ
अंकुर फूटें आशाओं के,
वन-वन हरियाली
हो अभिनव
पाखण्डों को पतझर दे दो
कोयल को अपना स्वर दे दो
श्रम के पलाश वन वन फूलें
भावों को गुलमोहर दे दो ।
हर सुप्त श्रान्त मन जाग्रत हो
उद्यम जारी हो आदि अन्त
वीरों का हो ऐसा वसन्त
हर सुबह स्वर्ण संकल्प रचे ।
हर शाम गर्व से नाम लिखे
आने वाले कल की खातिर
हर रजनी तुम्हें सलाम लिखे
प्रह्लाद सी रहें आशाएं ,
आतंक जुल्म की होली में ।
प्राणों में दहके ज्वाला सी
वह चिनगारी हो बोली में ।
हो धैर्य तुम्हारा धरती सा
विश्वास गगन सा हो अनन्त
वीरों का ऐसा हो वसन्त ।
अब भ्रष्टाचार अलाल न हो ।
और स्वाभिमान कंगाल न हो ।
सम्मान रहे हर भाषा का ,
अपनी भाषा बेहाल न हो ।
केवल सीमा संघर्ष नहीं
घर में भी है अविकल जारी ।
निर्मूल नहीं है अनाचार ,
छल स्वार्थ गुलामी गद्दारी।
हो कर्म कृष्ण और अर्जुन सा
हो शौर्य राम सा शत्रुहन्त .
वीरों का ऐसा हो वसन्त
हो शान्ति या कि वांछनीय क्रान्ति
संभव होती वीरों से ही ।
होता अनीति का अन्त सदा
सुविचारों के तीरों से ही .
अपनी संस्कृति अपनी भाषा ,
अपना गौरव और मान रहे
अपने आदर्श न विस्मृत हों ,
अपने बल का अनुमान रहे ।
जब चाह नींव में लगने की ,
ऊँचाई होगी दिक् दिगन्त ।
वीरों का ऐसा हो वसन्त ।
नींव से शिखर तक का वासंती वीरानुराग। वाह! बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंदीदी,
जवाब देंहटाएंआपके अतुल शब्द सामर्थ्य और उनका कविताओं में सन्योजन न केवल चमत्कृत करता है, बल्कि अपनी सहजता (जिसे आपने परिचय में एक सपाट सी कविता कहा है) से मुग्ध करता है. एक दशक के पश्चात भी यह कविता नवीन प्रतीत हो रही है और इसमें जिन-जिन आशाओं और अपेक्षाओं की चर्चा है, हमने कुछ भी प्राप्त नहीं किया.
दस सालों में कुछ नहीं बदला. बल्कि और बिगड़ा है! फिर भी आशा का दामन थामे हम, आपकी इस श्रेष्ठ रचना के साथ वसंत पंचमी, सस्रस्वती पूजा और वसंतोत्सव का स्वागत करते हैं!
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
जवाब देंहटाएंसागर सा गहरा हो चिन्तन,
जवाब देंहटाएंविस्तार गगन सा हो अनन्त
वीरों का ऐसा हो वसन्त ...
अप्रतिम ... शब्द, भाषा, छंद जे झंकृत करती ओज़स्वी रचना ... सामिजिक माहोल ओर उसके चरित्र की परतों को खोलते हुए ... उस सत्य से भलीभांति परिचय करवाती हुई तेज प्रवाह सी रचना है ... लाजवाब ...
हो चाह नींव में लगने की ,
जवाब देंहटाएंऊँचाई होगी दिक् दिगन्त ।
वीरों का ऐसा हो वसन्त ।
बहुत सुंदर ! जोश भरते हुए भाव ..और ओज भरे शब्द...
हो चाह नींव में लगने की ,
जवाब देंहटाएंऊँचाई होगी दिक् दिगन्त ।
वीरों का ऐसा हो वसन्त ।
वीरों का ऐसा हो वसन्त।
वाह ओजस्वी भाव एवं शब्द भी ....अद्भुत ...!!
उत्साह संचालित करती कविता।
जवाब देंहटाएंकाश ऐसा ही हो वसंत... लजावाब कविता गिरिजा जी...सच मज़ा आगया पढ़कर।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत कविता !!! लाजवाब !
जवाब देंहटाएंकितने दिन बाद आपके ब्लॉग पर आया हूँ आज....और इतनी सुन्दर कविता पढ़ने को मिली!! अद्दुत!