गुरुवार, 21 मार्च 2024

जब कविता बन जाती है

 कुछ ही पल ऐसे होते हैं सखि

जब कविता बन जाती है ।

 

अन्तर-वीणा पर पीडा ,

जब कोई राग बजाती है

विद्रूपों की ज्वाला जब-जब भी ,

मन विदग्ध कर जाती है

जब साँस-साँस से आहों की

बारात निकलती जाती है

अलि तब कविता बन जाती है ।

 

अन्तर आलोडन हो होकर

जब एक उबाल उमडता है

अधरों का पथ अवरुद्ध जान

भीषण भूकम्प मचलता है

घातों-प्रतिघातों से छिल-छिल कर

गलती कोमल छाती है

सखि तब कविता बन जाती है ।

 

जब हृदय प्रतीक्षाकुल व्याकुल

नैराश्य जलधि में बुझता है ।

देहरी पर जलते दीपक का

स्नेह भी चुकता है ।

स्मृतियाँ तीखे दंश चुभा

उर को उन्मत्त बनाती हैं

सखि तब कविता बन जाती है ।

 

खायी हो चोट कभी गहरी

अपने हो ,कहने वालों से .

मिलते पीछे से वार दुसह ,

अन्तर में रहने वालों से .

जब चूर चूर होकर आशाएं

पग पग ठोकर खाती हैं .

सखि तब कविता बन जाती है .

 

जब हृदय प्रतीक्षाकुल पल पल

नैराश्य जलधि में बुझता है .

जब अन्धकार से लड़ते दीपक का

स्नेह भी चुकता है .

जब यादें तीखे शूल चुभा

उर को उन्मत्त बनाती हैं ,

सखि तब कविता बन जाती है .

 

आतप से तप्त तृषित धरती

कण कण विदग्ध होजाता है .

जब श्याम सघन मेघों का मेला

अम्बर में लग जाता है .

शीतल बौछारों से गद्गद्

जब सृष्टि हरी होजाती है

सखि तब कविता बन जाती है .

 

नूतन किसलय के सम्पुट में

कोमलता कम्पन करती है

शाखाओं की खाली झोली

पल्लव पुष्पों से भरती है .

मधुऋतु रसाल को मंजरियों के

हार स्वयं पहनाती है .

सखि तब कविता बन जाती है .

 

निस्सीम गगन के अगम पन्थ में

अणु सा हृदय भटकता है .

अद्भुत कौशल कण कण का

जब मन में विस्मय भरता है .

जिज्ञासाएं जब उस असीम की

जब जब थाह लगाती है

सखि तब कविता बन जाती है 

1 टिप्पणी:

  1. निस्सीम गगन के अगम पन्थ में

    अणु सा हृदय भटकता है .

    अद्भुत कौशल कण कण का

    जब मन में विस्मय भरता है .

    जिज्ञासाएं जब उस असीम की

    जब जब थाह लगाती है

    सखि तब कविता बन जाती है

    वाह !! कितना सुंदर लिखा है आपने, अनंत की राह में चलना कोई शुरू करे तो पग पग पर कविता है

    जवाब देंहटाएं