मंगलवार, 16 अप्रैल 2024

पुरस्कार--महात्म्य (व्यंग्य)

आप अगर मुझसे पुरस्कार की परिभाषा लिखने को कहें तो वह कुछ इस तरह होगी--–"पुरस्कार लोहे को सोना बना देने वाला पारस है .किसी गुमनाम बस्ती में किसी मंत्री या सांसद का आगमन है .अँधेरी गली में लगा दिया गया बल्व है .अनावृष्टि में जूझती उम्मीदों के लिये एक बाल्टी पानी है. लेखन रूपी फसल के लिये खाद पानी है . पुरस्कार-विहीन लेखन बिना विज्ञापन के बेचा जा रहा प्रॉडक्ट है , बिना लाउडस्पीकर के किसी कोने में गुनगुनाया गया गीत है ,बिना बैंडबाजे की बरात है , अरण्य रोदन है . जंगल में नाचता हुआ मोर है .कारों के बीच रेंगता साइकिल सवार है . भरे वसन्त में फूल पत्र विहीन खड़ा पेड़ है .मंच पर बिना हाव ,भाव और सुर ताल के सुनाई गई कविता है ...वगैरा वगैरा

मंच से याद आया कि मंच पर श्रोताओं का ध्यान ,सम्मान मिलना भी किसी पुरस्कार से कम नहीं है . श्रोताओं को बाँधे रखना और उनसे तालियाँ बजवा लेना कोई हंसी खेल नहीं है .उसके लिये बड़ा अभ्यास और लगन चाहिये . कविता (कहीं से चुराई भी चलेगी) किसी मंत्र की तरह सिद्ध हो ,आवाज में सुर और बुलन्दी हो .श्रोताओं की आँखों में झाँककर अपनी बात इस विश्वास के साथ सकने का कौशल हो कि श्रोता वाह वाह कहने , तालियाँ बजाने विवश होजाय ..भाई साहब वह है मंच पर काव्यपाठ . .डायरी या मोबाइल लेकर पढ़ने वाले तो जैसे आते हैं , चले जाते हैं . इसके लिये माइक से गहरा मोह और अभिनय , सुर लय का ध्यान भी बहुत काम आता है . मंच पर कविता पढ़कर लोकप्रियता की चाह रखने वाले बन्धु ,भगिनी इन सूत्रों को अवश्य अपनाएं . यह भी उल्लेखनीय है कि मंच पर जमने वाले कवि अपने मंचासीन साथी कवियों के समय की चिन्ता जूतों /चप्पलों के साथ ही मंच के नीचे ही छोड़ आते हैं . फिर चाहे साथी कवि कुढ़ते हुए उसकी तुलना अपने चिपकू पड़ोसी से करते रहें .
मंच पर सफल काव्य-पाठ करने के बाद श्रोताओं से दो दुलार मिलता है उसे देखकर दावे के साथ कहा जा सकता है कि जो लोग मंचीय कविता को दूसरी श्रेणी की कहकर कमतर नज़रों से देखते हैं वे हीनता के यानी एहसासे कमतरी के शिकार होते हैं .सच्ची .
अब देखें पुरस्कार का प्रभाव .उसका पहला लाभ तो यह है कि जो लोग सोशल मीडिया पर आपके नाम को देख नाक सिकोड़कर निकल जाते थे वे अचानक आपके घनिष्ठ बन जाते हैं . नाकुछ शब्दों में बहुत कुछ खोजकर निकाल लेते हैं .निरर्थक से वाक्य या ,एक सादा सी सेल्फी पर ही बलिहारी जाते हैं .कमेंट्स की बौछार कर देते हैं .रचनाओं पर भली सी समीक्षाएं लिखकर निकटता जताते हैं मन न हो तब भी आपकी मामूली सी बात को लाइक करते हैं .साक्षात्कार के लिये बुलावे भी बड़ी भूमिका अदा करते हैं .
सबसे बड़ी बात यह कि पुरस्कार में दाम के साथ नाम भी मिलता है . नाम की बड़ी महिमा है. कवियों ने ,“राम से बड़ा राम का नाम…” कहा है . दुनिया नाम के लिये ही मरती है . दुनियाभर में सत्ता और धन के अलावा जिस चीज के लिये भागदौड़, आपाधापी ,खींचतान , नोंच-खसोट और मारकाट मची है , वह  नाम ही है . नाम में क्या रखा है ..” ,कहने वाला शख्स आज ज़िन्दा होता तो खुद के लिखे पर ही बहुत पछता रहा होता . सभी नामचीन साहित्यकारों से माफी माँग रहा होता खैर..
अरे हाँ , नाम से याद आया, नामी लोगों का सम्पादक के साथ भी एक आत्मीय रिश्ता बन जाता है . सम्पादक उनकी मामूली रचनाओं को भी सिर माथे लेकर छापते हैं .जानते हैं .पूरी पत्रिका में एक दो रचनाएं ऐसे ही पड़ी रहें पत्रिका की सेहत पर भला क्या असर होने वाला है .वैसे भी छोटी बड़ी हर पत्रिका में कुछ रचनाएं फालतू होती ही हैं ,ज़ाहिर है कि वे उनके कुछ पालतू रचनाकारों की होती हैं .
असल में सम्पादक वर्ग ऐसी प्रजाति है जो विधाता की तरह रचनाकार के पालक और संहारक दोनों का दायित्त्व निभाता है. राई को पर्वत और पर्वत धूल कर देने वाली क्षमता . न छापनी हो तो ठीक ठाक रचना को भी खेद सहित लौटादे .भले ही रचना बूमरेंग की तरह लौटकर रचनाकार को घायल करदे उन्हें क्या ! जानते हैं कि प्रकाशन के बिना लेखन दो कौड़ी का भी नहीं . छपने और लिखने में परस्पर जन्मजन्मान्तर का सम्बन्ध है . इसलिये सभी छपने और छपकर नाम कमाने के लिये ही लिखते हैं ..
अब भैये , इसमें तो कोई शक सुबहा नहीं हैं कि हमारे यहाँ नाम और पद पूजा जाता है ,काम नहीं . सरकारी कार्यालयों में एक गुणी अनुभवी कर्मचारी , पिछवाड़े लगी सीढ़ी से ऊपर चढ़ आए अपने नौसिखिया अधिकारी की लानत मलामत सहकर भी हाथ जोड़े रहता है और उसके सामने खुद को अनुभवहीन स्वीकारता रहता है . इससे अच्छा हो कि हाथ जोड़ने की बजाय वह उससे भी ऊपरवाली सीढ़ी तलाश ले .बुद्धिमान लोग लेखन शुरु करने से पहले सीढ़ी तलाश लेते हैं . उन्ही को देखकर द्विवेदी जी के कंठ से फूट पड़ा होगा , “कोशिश करने वालों की हार नहीं होती …”
तो भाई साहब पुरस्कार की महिमा अनन्त है अशेष है .नित्य है ,सत्य है . जैसे आयोजकों ने उनको पुरस्कार दिये , वैसे ही आपको भी मिलते रहों .

 

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 17 अप्रैल 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।

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  2. सुन्दर | राम नवमी की हार्दिक शुभकामनायें|

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  3. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद। आपको भी रामनवमी का पावन पर्व मंगलमय हो।

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  4. पुरस्कार की महिमा
    अनन्त है
    अशेष है .
    नित्य है ,
    सत्य है
    सादर वंदन

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    आपको सपरिवार तथा ब्लॉग के सभी पाठकों को राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  6. आजकल तो साहित्यिक पुरुस्कारों का मेला सा लगा हुआ है, यथार्थ का गहरा अवलोकन और सार्थक लेखन।

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