आज ही अखबार में पढा कि परीक्षा परिणाम को अच्छा बना कर अपनी साख को बचाने के लिये विभाग के आला अफसरों ने एक नया किन्तु विचित्र सुझाव दिया है कि उत्तर-पुस्तिकाओं के परीक्षण में छोटी--मोटी भूलों (??) जैसे छात्र ने पवन की जगह पबन लिखा हो या छोटी बडी मात्राओं की गलती हो तो उसके अंक न काटे जाएं ।
आहा ,ऐसी उदारता पर कौन न मर जाए !! छात्र सूरदास को सुरदास या रमानाथ को रामनाथ लिखदे तो कोई गलती नही मानी जाएगी । फिर तो गजवदन गजबदन भी हो सकते हैं और कृष्ण, कृष्णा (द्रौपदी)(अंग्रेजी की कृपा से कृष्ण को कृष्णा बोला भी जारहा है )। लुट गया व लूट गया तथा पिट गया व पीट गया में कोई फर्क नही होगा । अब जरा समान लगने वाले वर्ण ,अनुस्वर व मात्राओं के हेर-फेर वाले कुछ और शब्दों पर भी ध्यान दें---सुत-सूत, कल-कलि-कली, अंश-अंस, सुरभि-सुरभी, अशित-असित, चिता-चीता ,कुच-कूच ,सुधि--सुधी, शिरा-सिरा ,चिर--चीर, कहा-कहाँ , लिखे-लिखें, गई--गईं, तन-तना-तान-ताना , तरनि-तरनी, मास--मांस, रवि-रबी , जित-जीत ,शोक--शौक ,पिसा-पीसा ,आमरण--आभरण, पिला--पीला ,सुना-सूना , गबन-गवन ,अजित-अजीत, पुरुष-परुष, शन्तनु-शान्तनु ,वसुदेव-वासुदेव आदि । विराम चिह्नों की तो बात पीछे आती है किन्तु वह क्या कम महत्त्वपूर्ण है ?--रुको, मत जाओ । तथा रुको मत , जाओ । इसी तरह --वह गया । , वह गया ! ,तथा वह गया ? में विराम चिह्न का ही चमत्कार है ।
ये तो बहुत छोटे-मोटे उदाहरण हैं । अखबारों ,टेलीविजन ,व सस्ती पत्रिकाओं और जगह--जगह अशिक्षित पेंटरों द्वारा बनाए गए बोर्ड व पोस्टरों ने वैसे ही हिन्दी की हालत खराब कर रखी है । पाठ्य-पुस्तक निगम की पुस्तकों में भी हिन्दी के साथ कम छेडछाड नही की । ऊपर से इस तरह के प्रस्ताव भाषा पर क्या प्रभाव छोडने वाले हैं उसका कथित विद्वानों को अनुमान तक न होगा । प्रश्न यह है कि क्यों परीक्षा परिणाम ही शिक्षा का एकमात्र लक्ष्य रह गया है ?क्या अध्ययन की उपेक्षा करके परीक्षा को ही लक्ष्य बनाना उचित है ? बार-बार परीक्षा लेने से और किसी भी तरीके से परिणाम के आँकडे इकट्ठे करने से शिक्षा का स्तर क्या उठ पाएगा ? ऐसे परीक्षा प्रमाण पत्र का क्या अर्थ व औचित्य है जिसमें छात्र शुद्ध पढना व लिखना तक न जान पाए । अर्थ की समझ तो बहुत बाद की बात है । भाषा की इस दशा पर विचार करने की अत्यन्त आवश्यकता है । गलत तरीके से गलत परिणाम देकर शिक्षा का ढिंढोरा पीटने से बेहतर है कि परीक्षा ली ही न जाएं । परीक्षा हो तो सही हो वरना नही ।