शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

सर्दी के दिन

अब दिनों का बढ़ना शुरु होरहा है . उससे पहले ही दिसम्बर के छोटे दिनों को लेकर एक कविता पुनः प्रस्तुत है  -------------------------------------------------------------

मँहगाई सी रातें
सीमित खातों जैसे दिन ।
हुए कुपोषण से ,
ये जर्जर गातों जैसे दिन ।

पहले चिट्ठी आती थीं
पढते थे हफ्तों तक
हुईं फोन पर अब तो
सीमित बातों जैसे दिन ।

वो भी दिन थे ,
जब हम मिल घंटों बतियाते थे
अब चलते--चलते होतीं
मुलाकातों जैसे दिन ।

अफसर बेटे के सपनों में
भूली भटकी सी ,क्षणिक जगी
बूढी माँ की
कुछ यादों जैसे दिन ।

भाभी के चौके में
जाने गए नही कबसे
ड्राइंगरूम तक सिमटे
रिश्ते--नातों जैसे दिन ।

बातों--बातों में ही
हाय गुजर जाते हैं क्यों
नई-नवेली दुल्हन की
मधु-रातों जैसे दिन ।

शुक्रवार, 1 दिसंबर 2023

हृदय धरा का

हृदय धरा का 

अथाह ,असीम

नेह भर उमड़ता है,

देखकर प्रिय को

पूर्णकला सम्पन्न

भर लेता है आगोश में

वंचित से किनारों को .

भर देता है दामन बादलों का

दिल खोलकर .

 

धड़कता है हदय धरा का

किसी की आहट पर

प्रतीक्षा और धैर्य की

टकराहट पर .

हिलोरें उठतीं हैं

टकराती है पलकों के किनारों से

 

मिलती हैं जब बदहाल नदियाँ

लिपटती हैं ससुराल से आईं बेटियाँ

जैसे माँ से 

 मन ही मन सिसकता है .

हदय धरा का .

 

और गरजता भी है

हृदय धरा का

किसी के थोथे दम्भ पर

झूठे अवलम्ब पर .

अनर्थ और अतिचार पर

उफन उफन कर   

उत्ताल तरंगें मिटा देतीं हैं

हर चिह्न मनमानी का .  

 शान्त और प्रसन्न

स्नेह से सम्पन्न

लिखता है गीत

सावन की हरियाली के

फूलों भरी डाली के .

पर ध्यान रहे कि

रुष्ट हो तो

प्रलय भी लाता है .

हदय धरा का .



शनिवार, 25 नवंबर 2023

26 /11 की स्मृति में

26 नवम्बर मेरे लिये विशेष है . आज ही मेरे बड़े पुत्र प्रशान्त का जन्म हुआ . लेकिन आज का दिन मेरे साथ पूरे देश के लिये भी विशेष है क्योंकि सन् 2008 में आज के ही दिन पाकिस्तान से आए आतंकवादियों के हमले से मुम्बई दहल उठी . लगभग 164 से भी अधिक लोग मारे गए . 300 से अधिक घायल हुए . कमांडो व सेना के जवान भी शहीद हुए . आज एक बहार फिर  उन शहीदों की पुण्य स्मृति में और कसाब को पहचानने वाली नौ साल की वीर बालिका ( जो अब युवा है ) देविका को समर्पित  एक गीत आप सबके अवलोकनार्थ  प्रस्तुत है . 

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एक बार फिर उसने गैरत को ललकारा है.

सद्भावों को जैसे यह आघात करारा है .

 

दिवा-स्वप्न कबतक देखोगे ,अब तो आँखें खोलो .

कब तक व्यर्थ चुकेंगी जानें ,कुछ तो साहस तोलो .

समझ सके ना बात समझ की ,उसको क्या समझाना .

सीखा है वह चिनगारी सा जलना और जलाना .

अमन चैन से रहना उसको कहाँ गवारा है .

 

लगे समझने जब उदारता को कोई कमजोरी .

चोरी करके उलटा हमें दिखाए सीनाजोरी .

बड़े प्यार से उसको उसके घर की राह दिखाओ .

अपनी ही सीमाओं में रहने का पाठ पढ़ाओ .

समझौतों वार्ताओं से कब हुआ गुजारा है .

 

है इतिहास गवाह कि चुप रहना डर जाना है .

औरों का ही मुँह तकते रहना ,मर जाना है .

समझौतों को एक तरफ रख ,दो जैसे को तैसा .

सबको समझादो यह देश नहीं है ऐसा वैसा .

वीरों ने बलिदानों से ही इसे सँवारा है .

 

किसी शहादत पर ना हो अब कोरी नारेबाजी .

आन बान की बात नहीं है कोई सब्जी भाजी   

स्वार्थ और सत्ता से ऊपर हों अपनी सीमाएं

कोई भी गद्दार न रहे ना अपने दाँए बाँए .

तर्क-भेद सब पीछे पहले देश हमारा है 


बुधवार, 22 नवंबर 2023

राग-विराग

 अमराई को हुआ विराग

बिसरा बूढ़ा लगता बाग,

भूल रहा सुर तानें मौसम

लगे हवा भी भागमभाग .

 

रिश्तों में जंजीर नहीं है

काँटा तो है पीर नहीं है

लहरें तोड़ किनारे बहतीं

हृदय नदी के धीर नहीं है

बिगड़ गईं तानें मौसम की  

कुपित बादलों का अनुराग .

 

टूटे बिखरे स्वप्न पड़े हैं .

सब अनीति की भेंट चढ़े हैं

सिकुड़ रहें हैं आँगन गलियाँ ,

पदलिप्सा के पाँव बढ़े हैं .

उखड़ी सड़कों सी उम्मीदें

उजड़ा जैसे अभी सुहाग .

 

जो धारा में बहने वाले

सुनलें हाँ हाँ कहने वाले

अनाचार का असुर खड़ा है  

न्याय सत्य के तीर निकालें

अपनी ही रोटियाँ सेकने

अब तो ना सुलगाएं आग  

 

दरवाजे कचनार खड़ा है .

सुरभित हरसिंगार बड़ा है

फिर इस बार आम की टहनी ,

गुच्छा गुच्छा बौर जड़ा है .

मौसम बदले ना अब ऐसे

बने बेसुरा कोई राग .

अमराई को हो अनुराग

बूढ़ा बिसरा लगे न बाग .

 

 

शनिवार, 11 नवंबर 2023

सज गई दीपावली में

 

जगमगाए दीप अनगिन नयन में सखि री.

सज गयी दीपावली में हदय की नगरी .


राम देखो लौट आए सिय लखन के साथ .

फूल बरसाए हदय ने आज दोनों हाथ .

आज उमड़ी है नदी छलके नयन जल री .

राम मेरे आगए हैं अवध की नगरी .


हदय के वन में प्रभु कर ही रहे थे वास .

किन्तु भावों की अवध को अब मिला मधुमास .

मुक्त होकर उड़ चली आसा विहंगिन री .

राम मेरे लौट आए .......


जीत यह विश्वास की धीरज प्रतीक्षा की .

नीति के ध्रुव सत्य की ,सच की समीक्षा की .

कामना पूरी हुई तपरत भरत की री  .

राम मेरे लौट आए ...


पुष्प में जैसे सुरभि है नीर है सरुवर .

प्राण जैसे देह में कण कण रमे रघुवर .

राम ही चिन्तन मनन हैं राम ही गति री .

राम मेरे लौट आए...


अवनि से आकाश तक प्रभु राम का ही राज

हवाओं में गूँजती है एक ही आवाज .

मन वचन और कर्म से तू राम ही रट री .

राम मेरे आगए हैं अवध की नगरी .

 

सोमवार, 4 सितंबर 2023

सबसे आगे हम हैं

 

23 अगस्त 2023 को जब शाम साढ़े पाँच बजे से चद्रयान—3 की चन्द्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का सीधा प्रसारण किया जा रहा था देश-दुनिया के लाखों लोग प्रसारण पर टकटकी लगाए हुए थे . हम लोग भी उन्ही लाखों लोगों में से थे .पल पल धड़कनें बढ़ रही थीं . 2019 का चन्द्रयान मिशन-2 का स्मरण हो रहा था जिसमें चाँद की सतह पर उतरते उतरते से कुछ ही दूरी से आहिस्ता उतरने की बजाय पर नियंत्रण से अलग हो गया था और लक्ष्य के अनुसार सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो सकी थी . शाम 6 बजकर चार मिनट पर जैसे ही विक्रम ने बड़ी कोमलता के साथ चाँद की सतह पर कदम रखे तो रोम रोम नर्त्तन करने लगा . भारत ही नहीं पूरे देश दुनिया में बसे प्रवासी भारतीय जयहिन्द का जयघोष करके झूम उठे थे . सचमुच यह एक अविस्मरणीय ऐतिहासिक पल था . चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का अग्रणी देश हमारा भारत हम लोगों के लिये मेरे लिये यह और भी अधिक हर्ष की बात थी क्योंकि इस अभियान में हमारा बड़ा बेटा प्रशान्त लगातार सात वर्ष से जुड़ा हुआ था . मैंने कार्य के प्रति उसकी लगन और मेहनत को देखा है . अपने कार्य के प्रति उसका निष्ठावान् होना मुझे आश्वस्त करता रहा है . चन्द्रयान –2 की तरह चन्द्रयान—3 की योजना निर्माण सम्पादन खास तौर पर सॉफ्ट लैंडिंग की कार्ययोजना में भी उसकी मुख्य भूमिका रही है ..

हमारे लिये यह प्रसन्नता की बात तो है कि प्रशान्त देश के एक गौरवशाली संस्थान से जुड़ा है .किन्तु विशेष और उल्लेखनीय बात यह है कि वह बिना किसी शोर या प्रचार किये अपना काम करता रहता है . कैमरे के आगे आना उसे पसन्द नहीं ,जबकि लोग कैमरे में आने के लिये कितने लालायित रहते हैं . यही कारण है कि इस अभियान में भी वह बहुत कम दिखा है . अपनी सीट से उठकर कैमरे के सामने आना उसने बिल्कुल ज़रूरी नहीं समझा . जब बहू सुलक्षणा ने मैसेज किया कि एक बार तो सामने आएं तब कहीं सीट से उठकर आया . उसका कहना है कि हमें अपना काम करना चाहिये बस . काम बोलता है 

तब मुझे प्रशान्त पर गर्व के साथ केदारनाथ अग्रवाल की यह कविता भी याद आई --

सबसे आगे हम हैं

पाँव दुखाने में;

सबसे पीछे हम हैं

पाँव पुजाने में ।

 

सब से ऊपर हम हैं

व्योम झुकाने में;

सबसे नीचे हम हैं

नींव उठाने में ।

 

 

शनिवार, 29 जुलाई 2023

बदरिया गरजे आधी रात

 

बदरिया गरजे आधी रात .

बिजुरिया चमके आधी रात

रिमझिम रिमझिम सुधियाँ बरसें

कैसी यह बरसात 


अमराई में झूलें यादें

गाएं राग मल्हार .

महके नीबू और करोंदे

बेला हरसिंगार .

मोर पपीहा घोलें

कानों में रस की बरसात   

 

बाड़ों पर छाई हैं बेलें

पकी निबोली नीम .

कच्चे खपरैलों में ही

थी खुशियाँ भरीं असीम .

कितने किस्से और कहानी  

तारों वाली रात . बदरवा...

 

सावन में जब आ जाती   

ससुरे से सारी सखियाँ .

पनघट पर हँस हँसकर करती थी

मधुभीगी बतियाँ .

बहिन बेटियाँ सबकी साझी

एक सभी का घाट . बदरिया

 

अम्मा ने बोई लहराईं

लम्बी पीत भुजरियां.

जातीं गातीं नदी सिराने   

धारा लहर लहरिया .   

घोंट पीसते सुर्ख हुए

मेंहदी से दोनों हाथ . बदरवा...

 

जाने किस आँधी में उजड़ गए

खुशियों के मेले .

हरी घास में चलते फिरते

इन्द्रवधू के रेले .

हल के पीछे पीछे चलती थी

बगुलों की पाँत ..बदररिया  

 

सूने घाट बाट हैं सूनी

माँ बाबुल  की देहरी .

नहीं नाचते मोर सशंकित

देख घटाएं गहरी .

बीते दिन नयनों में छाए

भीगे अंसुअन गात .

बदरिया गरजे आधी रात .

गुरुवार, 29 जून 2023

जिया तुम्हारे बिना

 

तुम्हारे बिना

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मन है वीरान ,

जैसे तुम्हारे बिना

यह मकान .

मकान जो घर हुआ करता था ,

दो कमरों वाला

वह बहुत छोटा सा घर 

तुम्हारे ममत्त्व की सुगबुगाहट से  गुंजित . 

घर , जिसकी देहरी-दीवारें भले ही

नहीं थीं बड़ीं ,

पर छत को सम्हाले खड़ीं

मजबूती से .

छोटा सा आँगन, 

बड़ा था जैसे आसमान .

चहकती चिड़ियों और पतंगों वाला आसमान .

सूरज चाँद या सितारों वाला आसमान .

जिसकी खिड़कियों से देखा जा सकता था

सुदूर क्षितिज तक फैली लाली ,

किरणों की  रुपहली जाली 

अटका हुआ सूरज। 

बादलों की गडगड़ाहट सुन नाचता मोर

या अनीति का शोर 

खड़खड़ा उठती थीं खिड़कियाँ ,

विरोध में अनीति के ..

चली आती थीं खुशियाँ , बेझिझक

दस्तक बिना ही

दरवाजा हमेशा खुला रहता था

तुम हँसती थीं खुलकर  

दीवारें भी मुस्कराती थी .

गैलरी दोहराती थी तुम्हारे गीत .

आँगन में खाट पर लेटे

तारों भरे आसमान के नीचे

तुम्हारी कहानियों में घुल जाती थी चाँदनी

'जिया 'एक और ..बस वह हंस वाली कहानी

चाय के कप में मलाई के साथ

घोल देती थीं तुम धीरे से

ढेर सारी आश्वस्ति,

और बातों में विश्वास

 

तुम बिन

दीवारें झड़ रही हैं  अफसोस करती 

जाले पुरे हैं हर कोने में .

आँगन में उग आए हैं झाड़ झंखाड़ .

दरवाजा बन्द है .

एक पूरी दुनिया ,

जो तुम्हारे कारण थी ,

चली गई हैं तुम्हारे साथ ही .

साथ-साथ स्नेह और अपनत्त्व भी .हर राह सुनसान , जैसे यह मकान

तुम्हारे बिना . 

 

शनिवार, 3 जून 2023

मेरे काकाजी की साइकिल

 संस्मरण का शीर्षक भले ही एक फिल्म ( 'मेरे डैड की मारुति')  के नाम से प्रेरित है लेकिन काकाजी और उनकी साइकिल की कहानी एकदम सच्ची और अनूठी है. काकाजी यानी मेरे पिताजी शिक्षक थे . स्कूल और छात्र छात्राओं के लिये पूरी तरह समर्पित शिक्षक कंकड़-पत्थरों से भरी और रेतीली ज़मीन में फूल खिलाने वाले शिक्षक . कुर्सी की बजाय टाटपट्टी पर बैठकर छोटे बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक ...नागा न हो इसलिये उफनती नदी तैरकर भी विद्यार्थियों के बीच पहुँचने वाले शिक्षक ... अरे नहीं यहाँ काकाजी

के शिक्षकीय जीवन की नहीं उनकी साइकिल की कहानी सुनानी है , इसलिये आज यही ....मुझे याद है ,काकाजी के पास 'हिन्द साइकिल' थी . वस्तु का महत्त्व उसकी कीमत से नहीं उपयोगिता से होता है .जबसे मुझे याद है , वह पुरानी कहीं कहीं बदरंग होती डगमगाती ,खड़खड़ाती साइकिल ,हमारे लिये , खासतौर पर मेरे लिये किसी मारुति से कम नहीं थी .घर में वही तो एकमात्र वाहन थी जो धूलभरे , कंकरीले पथरीले ,हर तरह के रास्तों को नापती हुई दूरियों को जैसे चिढ़ाती थी और हर शनिवार को हमें बड़बारी से माहटौली पहुँचाती थी . यह सन् 1966 से 1970 के बीच की बात है जब मैं काकाजी के स्कूल में पढ़ने के लिये बड़बारी गई थी जबकि जिया (माँ) माहटौली ( बानमोर मुरैना ) के पास एक छोटे से गाँव खासाराम का पुरा में बालबाड़ी स्कूल की शिक्षिका थीं . मुझे दोनों जगहों की दूरी का अनुमान नहीं है पर उन दिनों वह एक लम्बी दूरी थी जिसे साइकिल से तय करते काकाजी किसी योद्धा से कम नहीं लगते थे . मुझे आगे साइकिल के डण्डा पर बिठाते और शनीचरा के जंगल से होते हुए , मुझे जंगल में कुलाँचें भरते हिरण , मोर ,तीतर और वसन्त ऋतु में पलाश के बेशुमार हल्के लाला नारंगी फूल दिखाते हुए , पहाड़े गिनती और हिन्दी मायने रटवाते पूछते हुए काकाजी खासाराम का पुरा पहुँचते थे . कंकड़ पत्थरों से जूझती , ऊबड़ खाबड़ रास्ते में डगमगाती वह साइकिल मुझे कभी हार स्वीकार करती नहीं दिखी . टायरों में कम हवा की शिकायत करती तो काकाजी साथ ही एक पम्प रखते थे जिसे पैरों में दबाकर हवा भरी जाती थी . पंचर होने पर काकाजी खुद ही ठीक कर लेते थे . उनके पास सारा सामान रहता था . साइकिल को आँगन में लिटाकर रिंच से टायर के अन्दर का ट्यूब निकालकर पम्प से हवा भरते और तसला में पानी भरकर हवा भरे ट्यूब को पानी में घुमाकर पंचर वाली जगह देखते . जिस जगह बुलबुले निकलते उस जगह को सुखाकर कपड़े से पौंछकर  सुलोचन ( सोल्यूशन ट्यूब) लगाते , किसी पुराने ट्यूब से काटा हुआ टुकड़ा चिपका देते ..बस होगया इलाज .हम लोग कौतूहल से देखते रहते . मेरी याद में वह साइकिल मरम्मत के लिये किसी दुकान पर नहीं गई . काकाजी खुद ही सब कर लेते थे .  मैं जब छठवीं-सातवीं मैं थी , लगभग अपने ही कद की उस साइकिल से ही मैंने साइकिल चलाना सीख लिया था . पहले आधी कैची सीखी यानी पैडल आधी गोलाई में ही घूमकर वापस होना पूरी कैंची यानी पैडल पूरी गोलाई में चलाना . सीट पर बैठना कुछ कठिन था क्योंकि उस समय सीट मेरे कन्धों से भी ऊपर थी . एक बार गिरी भी , कोहनी छिल गई थी पर जिस दिन मैं कैंची चलाकर बगीचे से घर आई मुझे जिया काकाजी की शाबासी मिली . मेरे लिये बड़ी उपलब्धि थी ,काकाजी से मिली शाबासी भी और साइकिल चला सकने की काबलियत भी . उन दिनों गाँव में एक लड़की का साइकिल चला लेना अभूतपूर्व घटना थी . यही क्यों , मेरा ग्यारहवीं पास कर लेना और दो साल बाद ही शिक्षिका बन जाना भी उन दिनों पूरे ग्रामीण क्षेत्र में अभूतपूर्व ही था खैर...

साइकिल सीखना नवमी दसवीं कक्षाओं में काम आया जब मैं गाँव से दूर पढ़ने जाने लगी थी तब काकाजी की साइकिल मेरे काम आई . मेरे हिसाब से साइकिल तब भी बहुत ऊँची थी . सीट पर बैठने पर पैडल तक पाँव पहुँचाने दोनों तरफ बारी बारी से झुकना पड़ता था तब भी चक्का का पूरा चक्कर पैडलों को ठेलते हुए ही लगपाता था .तीन साल काकाजी की साइकिल ने मेरा बड़ा साथ दिया .स्कूल में चर्चाएं होती . शिक्षक और प्राचार्य मुझे प्रशंसा की दृष्टि से देखते ,मेरा उत्साह बढ़ाते . लड़के लड़कियाँ हँसते –"–देखो यह लड़की मर्दानी साइकिल चलाती है . यह तो नहीं कि लेडीज साइकिल खरीदवा ले .मैं चकित होती –-- अच्छा ,साइकिलें भी जनानी मर्दानी होती हैं ..?”

जब मैं घर आजाती तब काकाजी घर के ज़रूरी सामान लेने बाजार जाते .

आज भी वह साइकिल गुड्डे गुड़ियों की तरह , स्कूल के प्रिय लगने लगे रास्ते की तरह और बचपन की सच्ची मित्र जैसी ही दिल दिमाग में है . स्कूटी चलाने का सपना ,सपना ही रह गया पर काकाजी की साइकिल के कारण ही मैं कह सकती हूँ कि हाँ मैंने टू व्हीलर भी चलाया है ..

रविवार, 12 मार्च 2023

ऑरेंज में क्रिसमस

 पिछली पोस्ट से आगे 

25 दिसम्बर

क्रिसमस प्रभु यीशु का जन्मदिन .यह दुनिया के बड़े स्तर पर मनाए जाने वाले त्यौहारों में से एक है . ईसाई धर्मावलम्बी-बहुल राष्ट्र होने के कारण ऑरेंज  में भी क्रिसमस पर बड़े आयोजन ,रोशनी और धूमधाम की कल्पना सहज थी . वैसे भी सिडनी डार्लिंग हार्बर में शानदार आतिशबाजी होती है फिर आज तो .....

इसलिये तय किया गया कि आज खाना बाहर ही खाएंगे और क्रिसमस की रौनक भी देखेंगे लेकिन जब श्वेता ने गूगल पर कोई अच्छा सा रेस्टोरेंट बुक करना चाहा तो सफलता नहीं मिली . पता चला कि रेस्टोरेंट ही नहीं पूरा बाजार बन्द है . हमें बड़ी हैरानी हुई . हमारे यहाँ त्यौहारों पर कितनी रौनक और धूमधाम होती है .  

चलो बाहर निकल कर देखते हैं .कहीं कुछ तो होगा . मयंक ने कहा . शाम पाँच बजे हम लोग बाहर निकले .पर सब कुछ मेरी कल्पना के विपरीत था .


 जन-शून्य चौड़ी सड़कें , शटर पड़ी दुकानें , नीरव वातावरण .चारों और सन्नाटा था मानो किसी आतंक से डरे लोग शहर को लगभग खाली कर गए हों . हम जैसे भूले भटके से इक्का दुक्का लोग और हवा में पत्ते झुलाते पेड़ शहर के जीवित होने की निशानियाँ थे . श्वेता का शॉपिंग करने का विचार तो टीवी चैनलों से गायब गाँव जैसा होगया पर अदम्य और मयंक का किसी रेस्टोरेंट में एक अच्छा डिनर लेने का विचार भी ( उपमाएं)

अपने इष्ट के जन्मदिन पर ऐसी उदासीनता –मुझे आश्चर्य हुआ . पर्व त्यौहार सांस्कृतिक परम्पराओं के निर्वाह के साथ साथ जीवन में नयापन और और मन में ताजगी लाते हैं .समय को बोझिल नहीं होने देते .

"मेरे विचार से यहाँ अधिकतर वयोवृद्ध लोग रहते हैं .युवा बाहर चले गए हैं . इतनी शान्ति और उदासीनता यही कारण होगा . इनका उत्सव इतना ही है कि ब्रेड बटर चीज़ आदि के साथ वाइन ले ली .कोई 'रिलेटिव्स' मिलने आ गए .बस."--मयंक की यह बात मुझे सही लगी .

"अभी थोड़ी देर गार्डन में बैठते हैं . सात बजे तक होसकता है कुछ दुकानें व रेस्टोरेंट खुलें..,"- यह सोचकर हम एक गार्डन में चले गए . वहाँ कुछ लोग चहलकदमी कर रहे थे . वे भारत और भारत से जुड़े देशों के ही लगते थे . दूर एक बैंच पर एक युवती चुपचाप बैठी कभी गार्डन में बैठे लोगों को देख रही थी तो कभी मोबाइल फोन में कुछ देखने लगती थी . काफी देर उसे देखती रही . वह भारतीय लग रही थी . आदत के अनुसार अन्ततः मुझसे रहा नहीं गया . उसके पास पहुँची . मुझे देख वह हल्का सा मुस्कराई . पूछने पर बताया कि वह चंडीगढ़ के पास एक गाँव से है . यहाँ हॉस्पिटल में काम करती है , किसी के साथ 'रूम शेयर' करती है . परिवार के सभी लोग पंजाब में ही हैं .

"परिवार की कमी तो खलती होगी ."

"हाँ खलती तो है आंटी पर यहाँ जॉब के अवसर काफी हैं . भागदौड़ नहीं करनी पड़ती ..जिन्दगी कूल है ."

मैं देखती हूँ कि अब 'कूल' रहना सबसे अहम् होगया है चाहे इसके लिये अपनी ज़मीन ,अपने लोग छोड़कर किसी होटल में प्लेट ही क्यों न उठानी पड़ें या हॉस्पिटल में बिस्तर चादर . सुविधा और पैसा पैरों से अपनी ज़मीन खींच रहा है .

इतनी देर में शाम गार्डन के ऊँचे और घने पेड़ों से होती हुई नीचे उतर आई थी . लोग क्रिसमस की धूम मचाएं न मचाएं पर ऊँचे घने पेड़ों में बैठे हजारों पक्षी ईश्वर के गुणगान से पूरे वातावरण को गुंजित कर रहे थे . स्ट्रीट लाइट तो जगमगाने लगी पर बाज़ार या कोई शॉप और रेस्टोरेंट वैसे ही बन्द थे जैसे कोई थका हारा या नशे की खुमारी में डूबा व्यक्ति नींद न होने पर भी आँखें बन्द किये पड़ा रहता है .

उस उदास शाम में एक सेंटाक्लॉज बने व्यक्ति ने हम सबके मन में उल्लास भर दिया . वह चहकता हुआ हमारी तरफ आया . मैरी क्रिसमस कहा ..हमने भी ुत्तर में वही कहा . फिर उसने अदम्य से हाथ मिलाया और कुछ गाते हुए झूमने लगा . पता चला कि वह एक चाइनीज़ होटल का कर्मचारी है और वैन से घर घऱ जाकर फूड-डिलेवरी कर रहा है . इसका मतलब था कि कम से कम एक जगह तो है जहाँ कुछ खाया जा सकता है . मयंक श्वेता और अदम्य की बाहर खाना खाने की योजना सफल हुई . मुझे चाइनीज़ खाना पसन्द नहीं है . वैसे भी मेरी कुछ भी खाने की इच्छा नहीं थी .मैंने केवल ऑरेंज जूस लिया , जो बहुत बढ़िया ,एकदम ताजे सन्तरों का था . सेंटा क्लॉज से मिलकर अदम्य के साथ हमें भी बड़ा अच्छा लगा . हताशा के बीच उल्लास भरने वाले लोग सचमुच वन्दनीय होते हैं .चाइनीज़ होटल में सबने खूब इनजॉय किया . वैसी फीलिंग्स (अनुभूतियों) के लिये आनन्द या खुशी शब्द फिट नहीं होते .उस समय समझ आया कि दुनिया में चीन का प्रभाव और बाज़ार विस्तार ऐसे ही नहीं हो रहा है . घर लौटते हुए चर्च के पीछे चमकते तिर्यक चन्द्रमा ने इस बात पर ध्यान नहीं जाने दिया कि सड़कों पर सन्नाटा ही नहीं , कई जगह अँधेरा भी था . क्रिसमस के दिन यह सब बड़ा अजीब लगा .

26 दिसम्बर

घर से दूर बाहर कहीं होमस्टे में रुकना मयंक के लिये सिर्फ आराम करना होता है . 25-26 दोनों दिन ऑरेंज बन्द होने की बात ने श्वेता को ( मुझे भी) जहाँ निराश किया वहीं मयंक को फुरसत से बैठने , या लेटने का अच्छा अवसर मिला . खाने पीने का सामान था ही .. पीछे बने गार्डन में पिता-पुत्र क्रिकेट खेले , शाम को गार्डन में गए वहाँ मन सचमुच गार्डन गार्डन होगया . ऊँचे मनोहर अनेक किस्म के घने पेड़ नरम हरे घास की कालीन से सजी धरती , सुन्दर फव्वारे , कल्लोल करते अनगिन पक्षी और सबसे मनोहर गुलाब-गार्डन ..छह सात रंगों के बड़े बड़े मनमोहक गुलाब के फूल ..कि देखते मन ही न भरे .. एक नेपाली परिवार गुलाबों के बीच अपने फोटो खींचने में व्यस्त था . मुझे देखते ही उत्साहित होकर उन्होंने मुझसे फोटो खींचने का आग्रह किया . मैंने कई कोणों से उनके फोटो लिये . वह शाम बहुत ही खूबसूरत रही ..पर मयंक लगभग पाँच सौ ब्लॉक वाली बड़ी जटिल पज़ल ले आया था जिसे बनाने में सारा दिन व्यस्त रहे बल्कि देर रात तक हम चारों जुटे रहे तब जाकर पूरी हो सकी . 

27 दिसम्बर की सुबह जब तक मयंक श्वेता जागते मैंने रात के बचे चावल प्याज टमाटर के साथ फ्राइ कर लिये . खाने पीने का सामान समेट लिया . चाय ब्रेड का नाश्ता करके हम लोग सिडनी की ओर चल पड़े .लौटते हुए रास्ता भी कम खूबसूरत नहीं था . कहीं घने जंगल के बीच तो कहीं लम्बे चौड़े हरे भरे मैदान के बीच बढ़िया सड़क पर कार जैसे बह रही थी . 



नदी किनीरे

रास्ते में एक नदी के किनारे हरी दूब के
गुलाब का यह फूल इतना सुन्दर 
व सुगन्धवाला था कि इसकी टहनी लाने का लोभ संवरण न कर सकीं 
 सुविस्तृत तट पर कुछ समय विराम लिया . खाना खाया . क्रिकेट खेले ,नदी की धारा में चले . वह पड़ाव भी बहुत मनोरम रहा .