प्यारे नीम के पेड़
मैं खुश हूँ कि
देख पा रही हूँ तुम्हें
फिर से हरा भरा .
बीत गया बुरे सपने जैसा
वह समय
जब निर्दयता से
चला दी गयी कुल्हाड़ी तुम्हारी हरी भरी शाखों पर .
सारी टहनियाँ ,सारे पत्ते उतार दिये गये
तुम्हारे तने से ,कपड़ों की तरह .
तुम खड़े रह गए निरीह निरुपाय कबन्ध मात्र
सिसक उठीं थीं चिड़ियाँ ,गिलहरियाँ
मेरे हृदय की तरह .
जैसे उजड़ गया मेरा भी
आश्रय पिता के साये जैसा .
लेकिन खुश हूँ ,
कि तुम पहले से अधिक
सघन हरीतिमा के साथ लिये फैल रहे हो,
मेरे रोम रोम में उल्लास बनकर .
जैसे हँस रहे हों
कुल्हाड़ी वाले हाथों की नीयत पर
खुश हूँ कि तुम्हारे कोमल
अरुणाभ पल्लव ऊर्जा की चमक लिये
मुस्करा रहे हैं ,
एक उम्मीद जैसे .
कि ठूँठ होजाने पर भी
ज़मीन से जुड़ा एक पेड़
नहीं छोड़ता पल्लवित होना ,
सीख रही हूँ तुमसे मैं भी ऐसा ही कुछ .
खुश हूँ कि ,
आत्मविश्वास से भरी हुई
तुम्हारी घनी टहनियाँ और पत्ते .
रोकने में समर्थ हैं ,
चिलचिलाती कण कण झुलसाती
धूप का आतंक ,
निश्शंक हवाओं का
ज़हर
और कहर साँसों पर .
बहुत खुश हूँ
मेरे नीम के पेड़
कि तुम हो मेरे आँगन में ,
मेरे पिता की तरह
एक गुरु की तरह
और एक माँ की तरह भी .