यह लघुकथा उच्च कक्षाओं में भी हिन्दी की स्थिति बताने के लिये काफी है .कहीं छात्र पढ़ना नही चाहते और कहीं शिक्षक पढ़ाना नही चाहते या जानते . किसी एक को उत्तरदायी नही कहा जा सकता . ऐसे में हिन्दी दिवस मनाने का आडम्बर छोड़कर जरूरत है विद्यालयों में प्रारम्भ से ही हिन्दी अध्यापन की जड़ें मजबूत करने की .क्योंकि विद्यालय ही वह संस्था है जहाँ भाषा सीखने का औपचारिक आरम्भ होता है .
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“छात्रो ,आज हम नौका विहार पढेंगे । सभी छात्र पुस्तक में यह पाठ निकाल
लें .”
“सर हम लोग किताब नहीं लाए .”
“मैं भी नहीं लाया ...”
“और मैं भी ..”
“ पाठ्य-पुस्तक जरूर लाया करें यह मैंने कई बार बताया है . खैर जो लाए हैं उन्ही के साथ मिलकर देखलो .”
“ यस सर ,कौनसे पेज पर है ?”
“बेटा ,विषय-सूची में दिया हुआ है । जरा देखो .”
“ विषय-सूची कहाँ है सर ?”
“किताब के शुरु में ही है बेटा .शायद आज पहली बार आए हो ।
मैं अक्सर बताता रहता हूँ कि विषय-सूची देखकर किस तरह अन्दर का कोई भी पाठ निकाला जा
सकता है .... निकाल लिया ? अच्छी
बात है।.... यह छायावाद के प्रसिद्ध कवि सुमित्रानन्दन पन्त की कविता है .इन्हें प्रकृति
का सुकुमार कवि कहा जाता है . ये छायावाद के चार प्रमुख कवियों में से एक हैं .”
“सर अब ये छायावाद क्या है ?”
“दो दिन पहले ही तो मैंने इसके बारे में विस्तार से बताया था .”
एक छात्र--“सर मेरे सामने नहीं बताया .”
“तुम आए नहीं होगे खैर....कविता के इतिहास में आधुनिक काल
की ही एक अवधि है जो द्विवेदी युग के बाद सन् 1920 से प्रारम्भ होती है . इसे फिर
एक बार अलग से पढ़ लेंगे .”
“सर क्या यह पेपर में आएगा ?”
“बेटा पेपर में आएगा यह तो नही कहा जासकता लेकिन यह कई तरह
से बहुत महत्त्वपूर्ण कविता है । छायावाद की सारी विशेषताएं इसमें हैं जिन्हें में
साथ ही साथ तुम्हें समझाता जाऊँगा । पाठ के साथ यह जानना भी उपयोगी रहेगा .पेपर के
प्रारम्भ में जो पच्चीस प्रश्न आते हैं उनमें ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं . फिर हर पाठ तो पेपर में नही आ सकता तो क्या उसे हम
पढ़ेंगे नहीं .”
"लेकिन सर पहले तो किसी ने यह सब नही पढ़ाया और हम बढ़िया नम्बरों से पास भी होगए ."
"लेकिन .... ."
एक छात्र (ऊब कर बीच में ही)--"सर आप तो पाठ पढ़ाइये .."
"हाँ हम वही करने जा रहे हैं . तो कविता है---
शान्त स्निग्ध ज्योत्स्ना उज्ज्वल ,अपलक अनन्त नीरव भूतल...”
एक छात्र---“सर ,नौका
विहार का क्या मतलब है ?”
“नौका यानी नाव और विहार यानी सैर करना .”
“नाव की सैर ! सर इन लोगों के पास और कोई काम नही था ? खुद नाव में सैर की और कविता लिख डाली ..कितनी टफ है यार ?”
शिक्षक आवेश को दबाकर हँसते हुए --“पहले पाठ को पढ़ तो लें बेटा ,फिर दूसरी बातें करें .
“ठीक है सर . आप तो पाठ पढ़ाइये .”
“हाँ.., तो कवि जिस समय नौका विहार के लिये गए ,वह रात्रि का समय था । चारों ओर बड़ी कोमल सी उजली चाँदनी फैली हुई थी । आसमान बिल्कुल साफ था और धरती पर
किसी तरह का कोई शोर नही था । चारों ओर शान्ति छाई थी ……”
“सर जी , डिटेल रहने दो . आप तो हमें बस इम्पौर्टेंट, इम्पौर्टेंट
बता दीजिये . सभी सर हमें केवल इम्पौर्टेंट बताते हैं .”
तभी चपरासी आकर बताता है कि उन्हें प्रिंसिपल साहब बुला रहे हैं .इन शिक्षक
महाशय को बीच में कक्षा छोड़ना अच्छा नहीं लगता लेकिन संस्था-प्रधान के आदेश को न मानने
का तो सवाल ही नहीं उठता . जाकर हाथ बाँधे नतसिर खड़े होगए .
“जी सर !”
“अरे कौशिक ,टाइम-टेबल में थोड़ा चेंज किया है .”
“जी ..!”
“हिन्दी का पीरियड पाँचवा ठीक रहेगा .”
“सर पाँचवे तक तो छात्र रुकते ही नहीं . चौथे पीरियड के
बाद ही कोचिंग चले जाते हैं .”
“तभी तो...हिन्दी तो बच्चे वैसे ही पढ़कर पास होजाते हैं
. पहले मैथ्स , साइंस और इंगलिश जरूरी है
. अभी सक्सेना जी को अंग्रेजी पढ़ाने दीजिये ..”
“जी सर जैसा आप कहें ..”