मौसम कैसा होगया है संवेदन-हीन
कोहरे में डूबी सुबह और दोपहर दीन ।
यह है उसकी बेरुखी या निर्मम अभिमान
धूप छुपा कबसे कहाँ, ओझल है दिनमान ।
उम्मीदों पर जम गया रातों-रात तुषार
सुलगा यादों के अलाव, काट रहे अँधियार ।
सरसों लिखना चाहती थी वासन्ती फाग
लेकिन बादल गारहे ,बेमौसम का राग ।
भीगे पंख पखेरुआ हुए नीड में मौन
राहों के हिमखण्ड को आकर तोडे कौन ।
थर-थर पल्लव स्वप्न सब तुहिन कणों के घात
धुँआ हुई साँसें सुबह दूर्वा अश्रु निपात ।
क्षीण मलिन नदिया हुई ताल हुआ अपरूप
काश पुलिन पर आ बसे बस अँजुरी भर धूप
कोहरे में डूबी सुबह और दोपहर दीन ।
यह है उसकी बेरुखी या निर्मम अभिमान
धूप छुपा कबसे कहाँ, ओझल है दिनमान ।
उम्मीदों पर जम गया रातों-रात तुषार
सुलगा यादों के अलाव, काट रहे अँधियार ।
सरसों लिखना चाहती थी वासन्ती फाग
लेकिन बादल गारहे ,बेमौसम का राग ।
भीगे पंख पखेरुआ हुए नीड में मौन
राहों के हिमखण्ड को आकर तोडे कौन ।
थर-थर पल्लव स्वप्न सब तुहिन कणों के घात
धुँआ हुई साँसें सुबह दूर्वा अश्रु निपात ।
क्षीण मलिन नदिया हुई ताल हुआ अपरूप
काश पुलिन पर आ बसे बस अँजुरी भर धूप