तुम्हारे बिना
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मन है वीरान ,
जैसे तुम्हारे बिना
यह मकान .
मकान जो घर हुआ करता था ,
दो कमरों वाला
वह बहुत छोटा सा घर
तुम्हारे ममत्त्व की सुगबुगाहट से गुंजित .
घर , जिसकी देहरी-दीवारें भले ही
नहीं थीं बड़ीं ,
पर छत को सम्हाले खड़ीं
मजबूती से .
छोटा सा आँगन,
बड़ा था जैसे आसमान .
चहकती चिड़ियों और पतंगों वाला आसमान .
सूरज चाँद या सितारों वाला आसमान .
जिसकी खिड़कियों से देखा जा सकता था
सुदूर क्षितिज तक फैली लाली ,
किरणों की रुपहली जाली
अटका हुआ सूरज।
बादलों की गडगड़ाहट सुन नाचता मोर
या अनीति का शोर
खड़खड़ा उठती थीं खिड़कियाँ ,
विरोध में अनीति के ..
चली आती थीं खुशियाँ , बेझिझक
दस्तक बिना ही
दरवाजा हमेशा खुला रहता था
तुम हँसती थीं खुलकर
दीवारें भी मुस्कराती थी .
गैलरी दोहराती थी तुम्हारे गीत .
आँगन में खाट पर लेटे
तारों भरे आसमान के नीचे
तुम्हारी कहानियों में घुल जाती थी चाँदनी
'जिया 'एक और ..बस वह हंस वाली कहानी
चाय के कप में मलाई के साथ
घोल देती थीं तुम धीरे से
ढेर सारी आश्वस्ति,
और बातों में विश्वास
तुम बिन
दीवारें झड़ रही हैं अफसोस करती
जाले पुरे हैं हर कोने में .
आँगन में उग आए हैं झाड़ झंखाड़ .
एक पूरी दुनिया ,
जो तुम्हारे कारण थी ,
चली गई हैं तुम्हारे साथ ही .
साथ-साथ स्नेह और अपनत्त्व भी .हर राह सुनसान , जैसे यह मकान
तुम्हारे बिना .