शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

सर्दी के दिन

अब दिनों का बढ़ना शुरु होरहा है . उससे पहले ही दिसम्बर के छोटे दिनों को लेकर एक कविता पुनः प्रस्तुत है  -------------------------------------------------------------

मँहगाई सी रातें
सीमित खातों जैसे दिन ।
हुए कुपोषण से ,
ये जर्जर गातों जैसे दिन ।

पहले चिट्ठी आती थीं
पढते थे हफ्तों तक
हुईं फोन पर अब तो
सीमित बातों जैसे दिन ।

वो भी दिन थे ,
जब हम मिल घंटों बतियाते थे
अब चलते--चलते होतीं
मुलाकातों जैसे दिन ।

अफसर बेटे के सपनों में
भूली भटकी सी ,क्षणिक जगी
बूढी माँ की
कुछ यादों जैसे दिन ।

भाभी के चौके में
जाने गए नही कबसे
ड्राइंगरूम तक सिमटे
रिश्ते--नातों जैसे दिन ।

बातों--बातों में ही
हाय गुजर जाते हैं क्यों
नई-नवेली दुल्हन की
मधु-रातों जैसे दिन ।

शुक्रवार, 1 दिसंबर 2023

हृदय धरा का

हृदय धरा का 

अथाह ,असीम

नेह भर उमड़ता है,

देखकर प्रिय को

पूर्णकला सम्पन्न

भर लेता है आगोश में

वंचित से किनारों को .

भर देता है दामन बादलों का

दिल खोलकर .

 

धड़कता है हदय धरा का

किसी की आहट पर

प्रतीक्षा और धैर्य की

टकराहट पर .

हिलोरें उठतीं हैं

टकराती है पलकों के किनारों से

 

मिलती हैं जब बदहाल नदियाँ

लिपटती हैं ससुराल से आईं बेटियाँ

जैसे माँ से 

 मन ही मन सिसकता है .

हदय धरा का .

 

और गरजता भी है

हृदय धरा का

किसी के थोथे दम्भ पर

झूठे अवलम्ब पर .

अनर्थ और अतिचार पर

उफन उफन कर   

उत्ताल तरंगें मिटा देतीं हैं

हर चिह्न मनमानी का .  

 शान्त और प्रसन्न

स्नेह से सम्पन्न

लिखता है गीत

सावन की हरियाली के

फूलों भरी डाली के .

पर ध्यान रहे कि

रुष्ट हो तो

प्रलय भी लाता है .

हदय धरा का .