चौराहे पर भीड़ लगी है ,
कुछ ना कुछ तो बात हुई है .
कैसे ये खिड़कियाँ खुली हैं ,
कुछ ना कुछ तो बात हुई है .
सूखा कहीं तबाही भीषण ,
ऐसी तो बरसात हुई है .
उगता सूरज कैसे लिखदूँ ,
दिन में ही जब रात हुई है .
निकली कहाँ ,कहाँ गुम होगई ,
एक नदी जज़बात हुई है .
अपनापन 'अनमोल' होगया ,
मँहगी हर सौगात हुई है .
हार जीत का खेल बनी अब
राजनीति बदजात हुई है .
जो समझा था, धोखा छल
था
सच्चाई अब ज्ञात हुई है .