नववर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएँ
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एक दिन अचानक ही ऐसा हुआ था कि अपनी ही दुनिया में डूबे रहने पर हमें बडा अफसोस होने लगा था ।
एक दिन अचानक ही ऐसा हुआ था कि अपनी ही दुनिया में डूबे रहने पर हमें बडा अफसोस होने लगा था ।
अफसोस यूँ कि न तो हमें यह पता रहता था कि हमारे ही कार्यालय
के श्रीमान ग कब कैसे रिश्वत लेते हुए पकडे गए । न यह कि पडोस की श्रीमती क ने ननद
के घर जाते हुए कौनसे रंग की साडी पहनी थी जबकि वे मुझे खुद आकर अपना ( उनका ) घर को
देखते रहने की कह कर गईँ । श्रीमती सप्रे एक दिन इस बात पर बड़ी नाखुश हुईं कि तारीफ
तो दूर हमने उनके नए टाप्स देखे तक नहीं ..
हाल यह कि जिसे देखो हैरान होकर सवाल उछाल देता कि अरे ,तुम्हें
यह भी नही पता कि शिक्षा मंत्री बदल गए । कि सात परसेंट डी. ए. बढ गया
। कि अरे आपकी करेंट नालेज तो बहुत ही वीक है । द्विवेदी तो कबके भोपाल चले गए । अब
संयुक्त--संचालक तो अहिरवार जी हैं । वगैरा ..वगैरा ..
अक्सर यह भी होता कि अखबार वाले का बिल दो बार अदा कर दिया
जाता तो दूध वाले पर दुबारा पैसे माँगने का सन्देह होजाता...।
अफसोस यों भी कि जहाँ लोग ताजी सामयिक रचनाएं सुना-सुना कर वाहवाही लूट रहे थे वहीं हम दिल का रोना ले कर बैठे थे । सिर्फ यादें जो कभी रुलातीं थीं कभी बहलातीं थीं हमारी हमराज थीं और प्रतीक्षा जो दाँत में फँसे तिनके की तरह हर समय हमें टीस का अहसास कराती व्यस्त रखती थी ,एकमात्र सम्बल बनी हुई थी । तीन-चार सौ गीत—कविताएँ लिख डालीं पर सब स्वालाप से सिसकते हुए । पन्त जी को लिखना नहीं था कि वियोगी होगा पहला कवि....।
अफसोस यों भी कि जहाँ लोग ताजी सामयिक रचनाएं सुना-सुना कर वाहवाही लूट रहे थे वहीं हम दिल का रोना ले कर बैठे थे । सिर्फ यादें जो कभी रुलातीं थीं कभी बहलातीं थीं हमारी हमराज थीं और प्रतीक्षा जो दाँत में फँसे तिनके की तरह हर समय हमें टीस का अहसास कराती व्यस्त रखती थी ,एकमात्र सम्बल बनी हुई थी । तीन-चार सौ गीत—कविताएँ लिख डालीं पर सब स्वालाप से सिसकते हुए । पन्त जी को लिखना नहीं था कि वियोगी होगा पहला कवि....।
दिल की दुनिया में एक झंझट थोड़ी है !
हमें यह भी खेद हुआ कि एक फटेहाल स्त्री को हाथ पसारते देख कर विकल
होने की बजाय हम गुलमोहर के चटक लाल फूलों और एक मीठे से अहसास में एक रिश्ता जोडने
में लगे रहते थे । कचनार के फूलों पर मँडराती तितलियों के साथ विचरते हुए हमारा खालीपन का
अहसास जाग उठता था और बादलों की छाँव में सुस्ताते हुए बारिश जैसे सपने देखने लगते
।
धत् ...निराला या नवीन ऐसे ही तो कालजयी कवि नही बन गए . उन्होंने भिखारी की पीडा को समझा था । गुलाब के फूल को प्रेम का प्रतीक कहने की बजाय पच्चीस लानतें भेजी थीं कि “अबे सुन बे गुलाब ...।“
धत् ...निराला या नवीन ऐसे ही तो कालजयी कवि नही बन गए . उन्होंने भिखारी की पीडा को समझा था । गुलाब के फूल को प्रेम का प्रतीक कहने की बजाय पच्चीस लानतें भेजी थीं कि “अबे सुन बे गुलाब ...।“
नवीन जी ने आदमी को जूठी पत्तल चाटते देख खुद सृष्टि के रचयिता
‘जगतपति’ को कोसा ही नहीं बल्कि मृत घोषित कर डाला । इसे कहते हैं हौसला . एक हम थे
कि घोर प्रगतिवादी युग में छायावादी राग आलाप रहे थे । आत्मा को एक दिन जगाना तो था
ही । सो जाग गई. वैसे भी यह रिश्ते नाते ,दिल विल ,प्रेम-व्रेम सब
फरेब है । छल और धोखा है अपने आप से । कुत्ते का हड्डी चबाने जैसा सुकून भर ।
हमने खुद को समझाया कि हे मन कूप-मण्डूक रह कर दिवास्वप्न
देखना बन्द कर । बाहर की दुनिया से जुड । साथ ही हमने यह भी किया कि दिल की दीवार से तस्वीरे मुहब्बत
को एक तरफ उतार कर रख दिया । और तमाम खिडकी झरोखे खोल दिये । साहित्यकारों के बीच जगह
बनाने के लिये सामयिक भी तो होना था ।यही तो है जागरूकता की निशानी .
सामयिक होने के लिये सबसे कारगर तरीका है अखबार पढना और समाचार
देखना । सो अखबार जिसे पहले पडोसी द्वारा पढ लिये जाने और उन्ही से खबरें सुनने पर
ही पैसा-वसूली का बोध होजाता था ,खुद अक्षर-अक्षर पढने
की आदत डालने का पक्का निश्चय किया ।
तभी मुझे जानकारी हुई कि चाय के साथ अखबार का बडा गहरा और
अभिन्न रिश्ता है । मेरे एक परिचित हैं ,पूरा एक घंटा अखबार पढने में लगाते हैं शायद इसीलिए उनका
परिवेश ज्ञान अद्भुत है ।
सो इधर टी.वी. पर इंडियन-आइडल ,सारेगामा , साराभाई
और एफ.आई आर जैसे कार्यक्रम देख कर बाग-बाग होने
की बजाए हमने गहन गंभीर होने के लिये समाचार चैनल खोल लेने का संकल्प लिया ।
लेकिन हो यह रहा है कि सामयिक होना काफी तकलीफदेह लगने लगा
है ।
एक तो मन को आराम से बैठकर अतीत की जुगाली करने की भयंकर
आदत पड़ी हुई है . हर मुश्किल को नजरंदाज करने का यह एक अचूक उपाय है . लेकिन सबसे बड़ी
वजह यह कि अखबार आँगन में रोज हताशा और अविश्वास का कचरा उँडेल देते हैं । जैसे वे
समाचार वाहक न होकर म्यूनिसपैलिटी वालों की कचरा वाहक गाडी हो । अच्छाई और ईमानदारी
की खबरों से उनका छत्तीस का आंकड़ा है .
भ्रष्टाचार तो खैर अखबार की साँस है पर इन दिनों हत्या ,लूटपाट
हुल्लडबाजी और राजनैतिक गन्दगी भी उसकी जान बने हुए हैं । दिल्ली की घटना के बाद
तो बलात्कार के समाचारों की जैसे रोज ही रैलियाँ निकल रहीं हैं । कितनी भूख फट पडी
है दरिन्दों की ? रिश्तों का कोई लिहाज नही है । बेटे ने माँ का गला रेत दिया । पिता
ने बेटी को ही हवस का शिकार बना लिया । कैसे कैसे घिनौने समाचार पढने मजबूर होगए हैं
हम । संवेदना मरने लगी है । तमाम घटनाए दर्द नही वितृष्णा पैदा करतीं हैं । कविता दर्द के
खेत में उगती है , वितृष्णा और क्षोभ के रेगिस्तान में नहीं . पहले अभिव्यक्ति कमजोर या फालतू ,जैसी
भी थी अब पूरी तरह लकवा मार गया है ।
उधर समाचार चैनल तो 'दुर्घटनाओं' का ही दिया खा रहे हैं .
बुरी घटनाओ पर अच्छी कविता कैसे बने ? हम कोई भवानी प्रसाद
मिश्र तो हैं नही कि कुछ भी मिल जाए और एक शानदार कविता बना डाले ।
इधर रिश्ते-नाते ,’प्रनतपाल’ ( झुके हुए का (ही)
पालन करने वाला ) और ’दीनबंधु’ ( दीन-दुखी का (ही)
साथी) बने हुए हैं . इसे स्पष्ट करने के लिए हमने एक ताजातरीन सिद्धांत खोजा है
.हुआ यों कि “सुख के
सब साथी ,दुःख में न कोय “,वाली बात हमें बहुत पुरानी और व्यर्थ लग चुकी है. (यह बात वैसे अपनों के लिए है भी नहीं) क्योंकि एक लम्बे-चौड़े अनुभव से ज्ञात हुआ कि जब तक आप दीन हीन हैं , असहाय व निरीह हैं ,आपको
अपनों से अपनत्त्व मिलता रहेगा ,इधर आपकी आँखों में चमक और होठों पर मुस्कान दिखी तो
उधर अपनों के मन में जबरदस्त ऐंठन शुरू कि हाय राम उसके लडके ने तो यह परीक्षा भी
निकाल ली ! ..कि अब तो वह घर में भी पांच सौ से कम की साडी नहीं पहनती ....कि अमुक ने इतना
बढ़िया मकान बनवा लिया ? जरुर कोई बड़ा हाथ मारा होगा
वास्तव में आपका सही अपना वह है जो आपकी ख़ुशी को हृदय से
महसूस कर खुश हो .इस लिहाज से तो , “हमने देखा सदन बने हैं लोगों के , अपनापन खोकर ..”(नवीन) का सिद्धांत ही सामने आया है .आसपास यही सब तो देखने सुनने मिल रहा है .
हाल यह हैं कि यह है कि घुटन है , कुढन है , जलन है लेकिन
सृजन नहीं है . सो बंधू हमने यही पाया है कि अपने ही ख्यालों की दुनिया में लौटना ही सही
होगा . नम ,सीलनभरी, जैसी भी है अपनी दिल की
दुनिया ही अच्छी है . रोना गाना कुछ तो सार्थक निकलेगा.
इसे आप या कोई भी , पलायनवाद कहे तो कहे . हम तो घर–वापसी
की तयारी में हैं पक्का .. ..
नव-वर्ष आप सबके लिए मंगलमय हो .