बुधवार, 11 सितंबर 2024

एक गीत 11 सितम्बर 1987 का

 (सुश्री महादेवी वर्मा का प्रयाण-दिवस)

देवि  तुम्हारे लिये 

हृदय के सारे गीत

समर्पित हैं । 

भारत की भारती

काव्य-पथ युग-युग

तुमसे तुमसे सुरभित है ।

तुमने करुणा--जल पूरित

जो काव्य--तरंगिनि लहराई

विगलित भावों से जैसे

मरु में हरीतिमा मुस्काई

छू लेता है मर्म

व्यथा से अक्षर-अक्षर गुम्फित है

आज तुम्हारे लिये...।

 

ममता की प्रतिमा

पीयूष बरसातीं रहीं सदा अविरल

'घीसा', 'रामा' 'गिल्लू' 'सोना'

अमर बनाए प्रिय निश्छल

मानव ही क्यों ,

पशु-पक्षी भी कहाँ नेह से वंचित हैं

आज तुम्हारे लिये...।

 

व्यथा--वेदना विष पीकर भी

सदा सुधा बरसाया

नारी की गरिमा--ममता को

शुचि, ,साकार बनाया ।

राह बनाई जो तुमने

शुभ-संकल्पों से सज्जित है

आज तुम्हारे लिये...।

 

चली गई हो देवि

अलौकिक राहों को तुम महकाने

जीवनभर पीडा में जिसको ढूँढा

उस प्रिय को पाने ।

नीर-भरी दुःख की बदली का

जल कण-कण से अर्जित है

आज तुम्हारे लिये..।

 

करुणा जब तक होगी

और हदय में संवेदन होगा

शोभित सम्मानित तुमसे

हिन्दी-साहित्य गगन होगा

श्रद्धा के ये सुमन सजल

हे विमले ,तुमको अर्पित हैं

आज तुम्हारे लिये हदय के

सारे गीत समर्पित हैं ।