26
जनवरी 2023
हमारा
गणतंत्र-दिवस . सुबह तड़के से ही हृदय में सदा की तरह उमंग थी . याद कर रही थी कि स्कूल
में किस तरह आठ दिन पहले से ही गणतंत्र-दिवस की तैयारियाँ शुरु हो जाती थीं . स्वतन्त्रता
दिवस के पर्व में बादलों की छाँव तले, कभी रिमझिम फुहारों में जहाँ गर्व के साथ
देशभक्त वीरों और सेनानियों के प्राणोत्सर्ग की स्मृति में हृदय विगलित होता है , मेघ
भी जैसे उनकी सजल स्मृतियों में हमारा साथ देते हैं , वहीं गणतन्त्र-दिवस शीत लहर
के बीच गुनगुनी चमकीली सुहानी धूप में खुशी और धूमधाम का पर्व होता है . इस बार
में स्कूल से ही नहीं अपनी मातृभूमि से भी दूर हूँ . टीवी पर प्रसारण देखना भी
संभव नहीं था क्योंकि कार्यक्रम का जब प्रसारण हुआ होगा हम 'न्यू कैसल' पहुँच चुके
थे .
न्यू
कैसल साउथवेल्स के उत्तरी भाग में ही बसा विशाल नीलाभ जलधि की फेनिल तरंगों के
सौन्दर्य से रचा बसा खूबसूरत शहर है . यह सिडनी से लगभग 170 कि.मी. दूर न्यूसाउथ
वेल्स का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला शहर माना जाता है . इस बार हमारे साथ पाँच परिवारों के ग्रुप में से शिवम् ही (सपरिवार) था . शिवम् बहुत ही ऊर्जावान् और महत्त्वाकांक्षी युवक है .समय का बड़ा पाबन्द . अगर सात बजे चलना तय है तो भले ही दो छोटे बच्चों का साथ है वह सात बजे ही निकलता है . हम जब एक घंटा दूरी पर थे शिवम् केव्स
बीच पहुँच चुका था .साथ में पत्नी नेहा बच्चे अमायरा व रिधान तथा नेहा की माँ मधु सिंह
भी थीं.
‘केव्स
बीच’ और
हम
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केव्स बीच
|
लगभग
42 किमी में विस्तारित केव्स बीच स्वन-सी प्रायद्वीप में स्थित है जो मॉक्वारी लेक
और प्रशान्त महासागर के बीच ग्रेटर न्यूकैसल का ही भाग जो सर्फिंग और फिशिंग के
लिये खासतौरपर जाना जाता है लेकिन हमारे लिये सुदूर समतल बीच , काँच सा साफ पानी
और अठखेलियाँ करती ,शोर मचाती ऊँची लहरों का आकर्षण ही प्रमुख था . शरारती बच्चे लहरें
जैसे बचो बचो चिल्लाती हुई आती हैं और तेज थपेड़ों से किनारे की ओर धकेल देती है
और लौटते हुए पैरों के नीचे से रेत खींचती हुई लेजाती है जैसे कोई पैरों के नीचे से
कोई फर्श या दरी खींचले .उस दशा में अक्सर गिर जाते हैं ,हम भी खूब गिरे , सम्हले , लहरों के
साथ खेलते रहे
तट के किनारे कई जगह ऊँची चट्टानों में 'केव्स' ( सुरंगें) होने के कारण इस तट का नाम ‘केव्स बीच’ पड़ा है . चट्टानों के सँकरे रास्ते
से उफनती गरजती लहरों का आना जाना बड़ा रोमांचक और दर्शनीय होता है .
किनारे
पर रेत में धूप सेकते बच्चे,युवा ,वृद्ध स्त्री पुरुष आदिम युग की याद दिला रहे थे ,लेकिन कोई ध्यान
नहीं देता कि कौन क्या पहने हैं ..पहने है भी या ...यहाँ परिवेश ही है ऐसा ..आचार
विचार व्यवहार देशकाल के अनुकूल ही शोभा देता है असहज भी नहीं लगता . अपने देश में यहाँ का उदाहरण
देना उतना ही अनुचित है ,जितना यहाँ साड़ी पहनने का आग्रह .
घंटों
तक ..लहरों में झूलना ,हिचकोले खाना जितना आनन्दमय होता है बाहर निकलकर कपड़े
बदलना उतना ही कष्टकर . समुद्र के नमक बहुल जल और रेत से लिपटे कपड़े ,उसपर सार्वजनिक
खुली जगहों पर छोटे फव्वारों में
किसी तरह नहाना , कपड़े बदलना और उतरे रेत भरे कपड़ों को थैली में भरकर कार में
डालना बड़ा असुविधाजनक...तब स्थानीय गोरे युवक युवतियों का अत्यल्प कपड़े (पट्टियाँ) पहनकर नहाना काफी प्रासंगिक
और आवश्यकतानुसार ही लगा . न उतारने में झंझट न पहनने में और ना ही धोने में...
नहाने
के बाद सबने घर से बनाकर लाया तृप्तिदायक खाना खाया . फिर हम सब अपने विश्राम-स्थल
की ओर चल पड़े .
‘वार्नर्स
बे’ और
‘पिप्पीज
लॉज’
‘वार्नर्स
बे’ सिटी
ऑफ मॉक्वरी का एक उपनगर है ( सिटी ऑफ मॉक्वरी ग्रेटर न्यू कैसल का ही एक हिस्सा है ) जो न्यूकैसल से 15 कि मी की दूरी पर है .यहाँ 'पिप्पीज' लॉज' में तीन रूम बुक किये थे एक शिवम्-नेहा व बच्चों का ,दूसरा मयंक श्वेता और अदम्य का और तीसरा मेरा व
नेहा की मम्मी का था .नेहा की मम्मी मुम्बई से हैं पर अपने शान्त ,मितभाषी स्वभाव के कारण सबसे थोड़ी अलग हैं . पर उनकी साहित्यिक अभिरुचि , राजनैतिक व सामान्य ज्ञान चकित करने वाला है . ये ही बातें हैं जिनके कारण हमें साथ रहना बहुत सहज लगता है .
लॉज में कमरे साफ सुन्दर और सुविधायुक्त थे . यह स्थान इतना सुन्दर लगा कि परिदृश्य देखते आँखें न भरें . लॉज के सामने ही सुदूर तक फैली वार्नर्स
खाड़ी , उसमें दौड़ते स्टीमर , सी प्लेन , नावें ..हरे-भरे पेड़ ..टहलने के लिये
सुन्दर रास्ता . मधु जी और मैं सुबह सुबह दूर तक 'वाकिंग' के लिये निकल जाते थे . वह सचमुच एक अपूर्व आनन्दमय समय था .
आगे भी जारी ....