मंगलवार, 26 नवंबर 2024

कोहरे में डूबी सुबह


 सुबह सुबह

जब मेरी पलकों में समाया था

कोई स्वप्न .

नीम के झुरमुट में चहचहा रही थीं चिड़ियाँ

चिंता-मग्न तलाश रही थीं कि

अरे ,कहाँ गया सामने वाला बड़ा सा पीपल ?

कौन ले गया बरगद ,इमली ,नीम ,गुडहल ?.

कहाँ गया नीला नारंगी आसमान ?

सुन सुनकर मैं भी हैरान ,

उठकर देखा

सचमुच नहीं है अपनी जगह  

दीनू की दुकान 

सरपंच की अटारी और मंगलू का मकान

फैलू की झोपडी पर सेम-लौकी का वितान

चिड़ियों की उड़ान

धुंध में डूबे हैं दिशाओं के छोर

चारों ओर

सारे दृश्य अदृश्य

सुनाई दे रही हैं सिर्फ आवाजें ,

चाकी के गीत ,चिड़ियों का कलरव

गाड़ीवाले की हांक ,

खखारता गला कोई

छिनककर साफ करता नाक

क्या है जो फैला है

धुंधला सा पारभाषी आवरण

कदाचित्

बहेलिया चाँद ने

पकड़ने तारक-विहग

फैलाया है जाल

या सर्दी से काँपती ,ठिठुरती धरती ने

सुलगाया है अलाव

उड़ रहा है धुआँ .

या आकाश के गली-कूचों में

हो रही है सफाई 

उड़ रही है धूल .

या मच्छरों से बचाव के लिये

उड़ाया जा रहा है फॉग

या शायद ‘गुजर’ गयी रजनी

उदास रजनीश कर रहा है ,

उसका अंतिम-संस्कार

या कि  

साजिश है किसी की

सूरज को रोकने की .

नहीं दिखा अभी तक .

बहुत अखरता है यों

किसी सुबह

सूरज का बंदी होजाना .

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(1987 में रचित

शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

अपना आसमान


14 नवम्बर 2024



आज बाल-दिवस है । दुनियाभर के सभी बच्चों के लिये कामना कि उनका बालपन बना रहे । समय से पहले बड़े न हों । बड़े तो उन्हें आखिर होना ही है पहले बचपन को तो पूरी तरह जी लें ।

मेरे लिये बाल दिवस के साथ मान्या-दिवस भी है । दिनांक के साथ वर्ष लिखना सकारण है क्योंकि आज मान्या ने पूर्ण नागरिक का दर्जा पा लिया है ।  

उसका जन्म जैसे कल की बात है ।

14 नवम्बर 2006 सेंट फिलोमिना हॉस्पिटल .. किसी के आने की आहट सुनने के लिये साँसें जमी हुई सी थीं । एक उमंग और आतुरता से पाँव धरती पर टिक ही नहीं पा रहे थे । एक ओर सुलक्षणा की पीड़ा की कष्टकर अनुभूति थी ,दूसरी ओर प्रतीक्षा की आकुलता । पल पल भारी हो रहा था । तभी एक साँवली सलौनी नव वयस्का परिचारिका प्रकट हुई और मुस्कराते हुए बड़ी मिठास के साथ कहा –--"कॉँग्रेचुलेशन्स ,यू हैव अ हैल्दी बेबी गर्ल ।

सुनकर रोम रोम झंकृत होगया । पहली बार नए रिश्ते बने चाचा चाची पापा मम्मी दादा और मेरे लिये सबसे प्यारी पदवी मिली--दादी । यों तो माँ बनना सबसे प्यारा अनुभव होता है लेकिन जब मैं माँ बनी थी तब (18 भी पूरे नहीं हुए थे ) माँ होने की उतनी समझ और अनुभूति नहीं थी लेकिन दादी बनने के लिये मैं पूरी तरह तैयार थी ।एक नवागन्तुक की प्रतीक्षा थी, उल्लास था । जब मान्या आई तो जीवन में एक कमी पूरी होगई बेटी की ।


बहुत सालों बाद फिर से नन्ही जान को गोद में लेने , उसमें आए हर परिवर्तन को देखने का आनन्द अनौखा था । मान्या को लेकर मैंने अनेक कविताएं लिखी हैं । एक कविता यहाँ है ,जब वह पहली बार स्कूल गई थी --  

स्कूल का पहल  दिन

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मान्या स्कूल चली
गुंजा सी खिली--खिली ।

सजधज दरवाजे पर
ज्यों भोर खड़ी उजली।

बस ढाई साल की है यह
नटखट कमाल की है यह
चंचल है मनमौजी है
अपने खयाल की है यह ।

बस्ता में भर कर सपने
मन में ले जिज्ञासाएं ।
चलती है उँगली पकडे
कल खुद खोजेगी राहें ।

जो पाठ आज सीखेगी
कल हमको सिखलाएगी
खुद अपना गीत रचेगी
अपनी लय में गाएगी । 

मान्या आज अठारह वर्ष की होगई है । अपना गीत खुद रचने और गाने की उम्र , अपना आसमान खोजने की उम्र । अब वह अपना गीत खुद लिख रही है , गा रही है ,  हमें सिखा रही है । उसने अपना आसमान खोज लिया है . अब वह इंजीनियरिंग कॉलेज में बी ई की प्रथम वर्ष की छात्रा है ।