ख़यालों में तुम्हारा आना
फूटना है कोंपलों का
ठूँठ शाखों पर
पतझड़ के बाद ।
दस्तक देना है ,पोस्टमैन
का
भरी दुपहरी में
थमा जाना
मिल जाना है
रख कर भूला हुआ कोई नोट
किताबें पलटते हुए
अचानक ही ।
लौट आना है
एक गुमशुदा बच्चे का
अपने घर
बहुत दिनों बाद ।
उतर आना है दबे पाँव
चाँदनी का
नीरव रात में
बिखेर देना रुपहले ख्वाब
अमावसी पलकों में ।
या कि जैसे
मिल जाना है
अचानक ही
किसी अनजान शहर में
बचपन के सहपाठी का ।
जब दिमाग में भरी हो
खीज और झुँझलाहट
तब एक दुधमुँही मुस्कराहट
समा जाना आँखों में ,
यूँ तुम्हारा आना ...
यूँ तुम्हारा आना ...
मिल जाना एक सान्त्वना
अपनत्व और दुलार भरी
चोट से आहत
रोते हुए बच्चे को ।
आजाते हो
ख़यालों में तुम यूँ ही ,
ख़यालों में तुम यूँ ही ,
जैसे किसी कॅालोनी की
उबाऊ खामोशी के बीच
गुलमोहर के झुरमुट से
अचानक कूक उठती है कोयल ।