बुधवार, 3 सितंबर 2025

बाली यात्रा--1

नीलमणि में जड़ा पन्ना


जब रात ने अपनी चादर समेटनी शुरु की तो कालिमा धीरे-धीरे नीलिमा में बदलने लगी । मैंने विमान की खिड़की से चारों देखा तो आँखें विस्मय से भर उठी । चारों ओर मोहक नीलिमा का असीम विस्तार था । समझ ही नही आ रहा था कि धरती कहाँ ,आसमान कहाँ क्षितिज की कहीं कोई सीमारेखा नहीं । तब क्या हम इतनी ऊँचाई पर हैं कि हमारे आगे पीछे ऊपर नीचे केवल आसमान है
? या किसी ने रात की कालिमा की तर्ज में हर तरफ आसमानी रंग की कूची चला दी है। यह रंग कितना मोहक है ! शायद इसीलिये प्रायः कृष्ण की तस्वीर में यही रंग मिलता है । अगर कोई दूसरा रंग था भी तो कहीं कहीं तैरते छोटे छोटे नटखट बच्चों जैसे बादलों का धवल रंग था । धीरे धीरे जब उजाला और उजला हुआ तो नीचे आसमानी विस्तार में बादलों के बीच कुछ धूमिल सी आकृतियाँ दिखाई दीं ।  दो महासागरों के बीच उत्ताल लहरों में जैसे  हिचकोले खाती नौकाएं हों ,या असीम जलागार में अनेक कछुए सतह पर आकर आराम कर रहे हों । कुछ पलों में नीचे की नीलिमा उर्मिल लगने लगी , छोटी धूमिल आकृतियाँ कुछ गतिशील दिखाई दीं को हृदय पुलक और रोमांच से भर उठा अरे यह तो अगाध विशाल सागर है , अपनी गोद में कितने ही द्वीपों और जहाजों को सहेजे हुए । धरती लाल सुनहरे सूरज का अभिनन्दन कर रही थी । आसमान भी नीचे उतर आया था नन्हे धवल बादलों के साथ , सुनहरी किरणों के साथ । घड़ी में अभी 3.40 हुए थे लेकिन हमारा विमान सुबह की सुनहरी किरणों में चमक रहा था ।

वह 3 अगस्त 2025 की सुबह थी । हमारा विमान बाली की ओर उड़ानें भर रहा था ।


मयंक और श्वेता ने जाने कब इस यात्रा की योजना बना ली थी। हमारे साथ श्वेता की माँ भी थीं । उधर सिडनी से दोनों के मित्र शिवम् और सौरभ भी सपरिवार आ रहे थे । इसलिये यह यात्रा निस्सन्देह बहुत आनन्द व उल्लासमय होने वाली थी । विमान की मेरी यात्राएं यों तो पन्द्रह साल से जारी हैं लेकिन समुद्र के ऊपर उड़ान का यह पहला अवसर था । मैं बेहद उत्साहित थी । लगातार देख रही थी कि उस निस्सीम नीले वैभव में अब लाल सुनहरे हरे पीले रंग शामिल हो रही थे । अगाध नीली जलराशि के बीच धरती का हरीतिमाच्छादित किनारा , किनारे से टकराती लहरों की रुपहली मेखला मोहक तिरंगी तस्वीर बना रही थीं । उत्ताल हिलोरों से आन्देलित सीमाओं में बँधा सागर जंजीरों में बँधे उस विशालकाय हाथी की याद दिला रहा था जो जंजीरें तोड़कर सब कुछ तहस नहस कर डालना चाहता हो । 


विमान अब अपने गन्तव्य के निकट था । धरती का सामीप्य पाकर आँखें खिल उठीं । धरती से दूर पाँव ही नहीं हदय भी खुद को कहीँ टँगा हुआ सा महसूस करता है । आश्वस्ति माँ की गोद में ही मिलती है, प्यारी धरती माँ । विमान से उतरकर मन ही मन धरती को प्रणाम किया । 

अब हम बाली की धरती पर थे । 

विदेश की एक और रोमांचक यात्रा ।      


जारी......