मंगलवार, 9 सितंबर 2025

बाली यात्रा --2

 बाली --1 से आगे

कल कल निनाद के बीच रिवर सोंग

बाली एयरपोर्ट पर ही बाली की द्वीपीय अनूठी कला और संस्कृति का अनुमान हो जाता है । भवन शिल्प , चित्रकला , भाषा सब कुछ अलग अनूठा ।

एयरपोर्ट पर एक  चित्र


 बोर्ड पर अंग्रेजी में लिखे शब्द पढ़ने की कोशिश की तो कुछ समझ नहीं आया जैसे–
Kecamatan KutaTuban। असल में इन शब्दों की लिपि तो रोमन है लेकिन भाषा इण्डोनेशियन या बालिनी है । अंग्रेजी का चलन बहुत कम है ,लगभग न के बराबर । केवल पर्यटन से जुड़े लोगों और सामान विक्रेताओं ने अंग्रेजी के कामचलाऊ शब्द सीख लिये हैं ।

बाली एयरपोर्ट का नाम गुस्ती नगुराह राय एयरपोर्ट है । गुस्ती नगुराह राय एक कर्नल और स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने डचों के खिलाफ इण्डोनेशियाई स्वतंत्रता संग्राम में बाली के लिये वीरतापूर्ण भूमिका निभाई थी । उनका पूरा नाम गुस्ती नगुराह राय कैरांगसारी है । इसे देनपसार एय़रपोर्ट भी कहा जाता है । देनपसार बाली की राजधानी होने के साथ ऐतिहासिक ,धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण शहर है।

बाली इण्डोनेशिया का एक बड़ा द्वीपीय प्रान्त है । इण्डोनेशिया शायद दुनिया का सबसे बड़ा द्वीपीय देश है ,जो लगभग सोलह-सत्रह हजार द्वीपों का समूह है इनमें बाली एकमात्र हिन्दू बहुल (लगभग 87 प्रतिशत) प्रान्त है । भारतीय व्यापारियों और विद्वानों के आगमन से जावा सुमात्रा बाली आदि अनेक प्रान्तों में हिन्दूधर्म की स्थापना हुई। प्राचीन और मध्यकाल में यहाँ हिन्दू साम्राज्य का विकास चरम पर था । पहले बाली जावा के महान् माजापहित हिन्दू-बौद्ध साम्राज्य का हिस्सा था पर वहाँ मुस्लिम सुल्तानों के उदय के बाद उसका पतन होता गया और अधिकतर हिन्दू बाली आगए । बाली द्वीप नाम राजा केसरीवर्मा द्वारा सन् 914 ई. में दिया गया जिसका उल्लेख शिलालेखों में मिलता है।
एयरपोर्ट पर ही बढ़िया कॉफी पीने के बाद मयंक ने ड्राइवर को फोन किया । कुछ ही देर में एक हट्टा कट्टा सुन्दर नौजवान मुस्कराता हुआ आया । उसकी आँखें छोटी थी जो हँसने पर लगभग बन्द होजाती थीं। पर बड़ा विनम्र और मृदुभाषी । टूटी फूटी अंग्रेजी में वह कुछ आवश्यक बातें मयंक को बताता रहा और मैं बाली की सड़कों भवनों और पेड़ों को निहारती रही । सड़क के दोनों तरफ बाँस की सुन्दर कलात्मक वन्दनवार जैसे हमारे स्वागत में ही झुके हुए थे ।

वन्दनवार

घटोत्कच
आसमान में अनेक आकृतियों ,तितली चिड़िया , तिलचट्टा, फूल ,कौआ , नाव , हवाईजहाज आदि की विशालकाय पतंगें लहरा रही थीं । बाहर चटकीली धूप थी । दोनों तरफ मूर्तियों की आकर्षक दुकानें थीं । जिनमें गणेश , लक्ष्मी , सरस्वती ,विष्णु ,शिव, पाँडवों और घटोत्कच की प्रतिमाओं के साथ अनेक अनबूझ सी प्रतिमाएं भी थीं । हर जगह कुछ विशेष प्रकार के भवन द्वार और आकृतियाँ बड़ा कौतूहल जगा रही थीं । मुझे सफर में नींद नहीं आती चाहे ट्रेन हो या प्लेन ..दिन हो या रात । वह सब देख नींद और भूख जाने कहाँ विलुप्त होगईँ थीं । हमारे लिये सब कुछ नया ,अनूठा और आकर्षक था । गाड़ी लगातार चल रही थी । मन में यह सवाल उठने लगा कि आखिर हम गन्तव्य पर कब पहुँचेंगे ।


रिवर सोंग रिसॉर्ट पहुँचने ही वाले हैं। --ड्राइवर ने बताया । आठ नौ दिन कहाँ रुकना है कहाँ क्या देखना है सारी योजना और बुकिंग शिवम् ने की थी । मुझे नाम बड़ा सुन्दर और आकर्षक लगा ।

अन्ततः सूनी उजाड़ सी (रास्ते में मिले साफ सुन्दर स्थानों की तुलना में) हमारी गाड़ी रुकी । यह उबुद टाउन था।

हम इस जगह रुकने वाले हैं !” -मुझे कुछ पुराने से कमरे और आसपास की अव्यवस्थित जगह देख हैरानी हुई तभी एक दुबली पतली सी युवती एक साथ के साथ आई और हमारे सूटकेस उठा लिये । नियत समय पर आने की कहकर विदा ली तो मयंक ने नाम पूछा।

द्वैपायन .”—ड्राइवर ने मुस्कराकर कहा तो मुझे सुखद आश्चर्य हुआ । यह तो व्यास जी का नाम था । बाली में रामायण के साथ महाभारत के प्रभाव का यह एक और उदाहरण था ।

हम लोग युवती के पीछे-पीछे घनी झाड़ियों के कुंज बीच नम सीढ़ियों से उतरते यही सोच रहे थे कि आखिर कहाँ ,किस पाताललोक में ठहरने वाले हैं हम । सीढ़ियाँ और ढलान जहाँ खत्म हुई वहाँ एक लकड़ी की लिफ्ट हमें और नीचे ले जाने तैयार थी । रास्ते भर का उत्साह अब हवा निकले गुब्बारे सा हो रहा था । लिफ्ट ढलान पर बिछे लोहे के मजबूत सरियों के सहारे ऊपर से नीचे जाती आती थी । उसमें केवल चार लोग बैठ सकते थे ।

लिफ्ट 
लिफ्ट से उतरकर हम जहाँ प्रविष्ट हुए तो सारी थकान और शिकायत मिट गई । हरियाली के बीच सीढ़ीनुमा बने रिजॉर्ट नाम रिवर सोंग एकदम सार्थक था । नदी का कलनाद जैसे मीठे गीत सुना रहा था । नीचे झाँकने पर चंचल नीलाभ सलिला पूरे वेग से उछलती कूदती रोम रोम में उत्साह भर रही थी । कमरे बहुत खूबसूरत थे। एक दूसरे के कमरे में जाने के लिये सीढ़ियाँ थीं । हर कमरे में गैस ऑवन फ्रिज केतली आदि सामान थे । छोटा सा स्वीमिंग-पूल भी । उस समय तेज भूख थी लेकिन काफी देर बाद मिले अधपका सा पुलाव खाकर आशंका हुई कि पता नहीं यहाँ शाकाहारी खाना क्या ऐसा ही मिलेगा। लेकिन उस अधेड़ किन्तु दुबली पतली व्यवस्थापिका ने टूटी फूटी अंग्रेजी में ही आश्वस्त किया कि खाना हम जैसा चाहेंगे मिलेगा । उसका नाम शायद वायेन था बहुत चुस्त और फुर्तीली थी । उसकी बात बात पर फिसलने वाली मुस्कान उसकी अपने कार्य के प्रति सजगता और जिम्मेदारी दर्शाती थी। ड्रैगन फ्रूट ,पपीता ,अनानास ,तरबूज आदि फलों और ताजे औरंज जूस से भोजन की कमी पूरी होगई । मुझे नदी का कलनाद लुभा रहा था ।

हम चार

शिवम् और सौरभ रात दस बजे आए। फिर क्या , कबके बिछड़े हुए हम आज कहाँ जाके मिले..’ –के भाव में भला किसी को सोने की फिक्र होती ! सौरभ की बेटियाँ प्रियांशी रियांशी, और शिवम् की बेटी अमायरा अदम्य से मिलकर चहक रही थीं । बेटा हृधान की अपनी अलग मस्ती ।सबने खूब धमाल मचाया। शिवम्-नेहा ,सौरभ-प्रीति ( कई अन्य मित्र भी) के साथ सिडनी में बड़ा आत्मीयता भरा समय व्यतीत हुआ था । ऐसे रिश्ते कभी फीके नहीं पड़ते ।

सौरभ व शिवम् की मम्मी और हम दो ,यों लगभग हमवयस्का चार महिलाओं का भी एक समूह बन गया । उस रात भी नींद नहीं आई तो अगले दिन सबने केवल आराम किया । 

जारी ....बाली --1  

रास्ते में देखते हुए 

 



कृष्ण अर्जुन



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