चौड़ी सड़कें,..
.सड़कों का जाल
अति व्यस्त... ट्रैफिक से त्रस्त .
वाहनों की बाढ़ की,
शोर और सन्नाटे की अभ्यस्त
शोर और सन्नाटे की अभ्यस्त
सड़क जैसी ही . हो रही है जिन्दगी ,
सड़कों को पार करना कठिन
उससे भी ज्यादा कठिन तय कर पाना दूरी
अब दिल से दिल तक की .
विलुप्त हो रहा मिलने का चाव
क्योंकि बीच में फैली हैं लम्म्म्बी .. चौड़ी व्यस्त
सड़कें ,
सड़क पार तुम..
इन्तजार रहता है मुझे
शनिवार रविवार का ,
शनिवार रविवार का ,
पर नही आते शनिवार इतवार हर हफ्ते .
परस्पर मिलने के लिये ..
कितने सारे काम ..और
बहुत ही बारीक सी दूरियाँ
धीरे धीरे फैल रही हैं सड़क की तरह .
सड़क भारी ट्रैफिक से व्यस्त त्रस्त .
बहुत जरूरी लगने पर ही बनाते हो तुम योजना
आकर मिलने की .
अब असंभव है सोचना भी
सहज ही शाम को
एक साथ बैठकर चाय पीने की बात .
तुम एक अलग दूसरा घर बनाओ
पर न हो वहाँ अपनों के बीच कोई व्यस्त सड़क .
ताकि कल्पना बनकर न रह जाए
सबका एक साथ ,हँसते बोलते हुए
शाम गुजारना बाँटते हुए अपनी उलझनें खुशियाँ
उम्मीदें ..अपेक्षाएं
जैसा कि होता था
अपने गाँव और छोटे से शहर के
एक मोहल्ले में .
तुम दौड़कर आजाते थे
एक पुकार पर या ऐसे ही चाहे जब
बिना कोई योजना बनाए .
दूरियाँ ज्यादा डरावनी होजातीं हैं
किसी महानगर में .