मौसम के द्वार
पर ऋतुरानी आई
पलकों के छोर
खोल कलियाँ मुस्काईं .
कोयल ने बाँची
जो केसरिया पाती
गूँज उठी
सुधियों के आँगन शहनाई .
गुलमोहर भर लाया मुट्ठी गुलाल अब
किंशुक ने
कुंकुम की थाली सजाई .
गूँज उठी सुधियों के आँगन शहनाई .
रचने लगा शिरीष खुशबू के गीत अब
वासन्ती सरसों
,उमंगों की जीत अब
झौर झौर बौर
बौर महकी अमराई
गूँज उठी
सुधियों के आँगन शहनाई
ठूँठ हुए अन्तर
में पल्लव से पीके हैं
राग ने सिखाने
के ढंग नए सीखे हैं
पोर पोर पीर जागी
,अखियाँ अलसाईं
गूँज उठी
सुधियों के आँगन शहनाई