नोटों की दुनिया में
इन्सान कुछ भी नही
जीना है ,जीने का सामान
कुछ भी नही !
हर सुबह अखबार
बिखराता आँगन में
ढेरों समस्याएं
समाधान कुछ भी नही !
सुर्खियों में रहते हैं
अतिचार ,अनाचार
शेष है जो आदमी का
ईमान कुछ भी नही ?
गाँव खेत छोड जबसे
आगए हैं शहर में
बेनाम रहते हैं
पहचान कुछ भी नही ।
रिश्ते बचाना या
रस्ते बनाना हो
दौड-भाग, भगदड में
आसान कुछ भी नही ।
सूख गया एक पेड
चिडियों में शोर है
तह में हुआ क्या है
सन्धान कुछ भी नही !
कल से नही लौटी
माँ-बाप चिन्तित हैं
बेटी किस हाल में हो
अनुमान कुछ भी नही ।
आन--मान उम्र भी
दरिन्दे कब देखते
औरत है बस ,
आत्म-सम्मान कुछ भी नही !
इन्सान कुछ भी नही
जीना है ,जीने का सामान
कुछ भी नही !
हर सुबह अखबार
बिखराता आँगन में
ढेरों समस्याएं
समाधान कुछ भी नही !
सुर्खियों में रहते हैं
अतिचार ,अनाचार
शेष है जो आदमी का
ईमान कुछ भी नही ?
गाँव खेत छोड जबसे
आगए हैं शहर में
बेनाम रहते हैं
पहचान कुछ भी नही ।
रिश्ते बचाना या
रस्ते बनाना हो
दौड-भाग, भगदड में
आसान कुछ भी नही ।
सूख गया एक पेड
चिडियों में शोर है
तह में हुआ क्या है
सन्धान कुछ भी नही !
कल से नही लौटी
माँ-बाप चिन्तित हैं
बेटी किस हाल में हो
अनुमान कुछ भी नही ।
आन--मान उम्र भी
दरिन्दे कब देखते
औरत है बस ,
आत्म-सम्मान कुछ भी नही !