शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

बन्द

बलबीर बहुत खुश था .आज पलभर में ही टेम्पो ठसाठस भर गया . और दिनों उसे इन्तजार करना पड़ता था . कई बार तो एक दो सवारियों को लेकर ही बाड़े तक चक्कर लगाना पड़ता है . कितने ही साथी टेम्पोवाले सवारियों को ले जाते हैं पर आज तो चार चक्कर ही उसे दिनभर की कमाई दे जाएंगे . मालिक को हिसाब देकर भी इतने रुपए बच जाएंगे कि आज दो दिन का राशन और बढ़िया मनपसन्द सब्जी खरीद लेगा .बच्चों की पनीर की सब्जी खाने की बहुत दिनों की माँग भी पूरी कर दूँगा . पर जैसे ही टेम्पो स्टार्ट किया कि कुछ लोग नारे लगाते हुए आए और बलवीर को खींचकर सीट से उठाकर बाहर निकाला .

क्यों बे ! देख नही रहा कि सड़क पर एक भी टेम्पो ऑटो नहीं है ?...साले पेपर नही पढ़ा क्या ? सरकार ने गलत कानून पास किया है . पन्द्रह दिन से लगातार चिल्ला रहे हैं कि दो तारीख को भारत बन्द रहेगा .

बन्द कहाँ है ? सड़कों पर आदमी , साइकिल, बाइक, कारें सब तो दिख रहे हैं .

अबे वे 'परसनल' हैं ...तुझे एक भी दुकान दिख रही है खुली ?..चल ज्यादा सवाल मत कर . टेम्पो सीधे घर ले जा नहीं तो किसी भी नुक्सान का जिम्मेदार तू ही होगा .

बलवीर ने हताश होकर टेम्पो बन्द कर दिया .उतरती सवारियाँ जेब से गिर गए नोटों जैसी लग रही थीं .बन्द हो या हड़ताल, जब देखो केवल ऑटो, टेम्पो पर ही गाज गिरती है या उन लोगों पर जो आने जाने के लिये टेम्पो के भरोसे रहते हैं . पता नहीं गरीबों का रास्ता बन्द करके कौनसा तीर मारते हैं ये लोग . बन्द कराना ही है तो कार , स्कूटर और बाइक सबको बन्द कराएं ना ...

बलवीर सोच रहा था कि आज भारत बन्द हो कि न हो एक बार फिर उसके घर की चहलपहल जरूर बन्द होगई थी .