स्वतन्त्रता के महायज्ञ में 'मातृवेदी संगठन' ने जो काम किया वह इसलिये और भी वन्दनीय है कि उसके संस्थापक व अध्यक्ष पं. गेंदालाल दीक्षित जो वीर क्रान्तिकारी बिस्मिल के गुरु व मित्र थे , आजादी की राह में चुपचाप तन मन और धन से समर्पित होगए । बहुत दिनों तक कोई नही जान पाया कि अस्पताल में अनाम ही चला गया यह शख्स एक महान क्रान्तिकारी था और एक ऐसी चिनगारी अपने साथियों के सीने में सुलगा गया जो या तो रक्त से बुझ सकती थी या आजादी की शीतल बयार से । वे अनाम सिर्फ इसलिये रहे कि कोई उनसे क्रान्तिकारियों का भेद न पा सके । आजादी के इन दीवानों को यश की कामना नही थी बस एक जुनून था कि भारतमाता की बेडियों को तोड फेंकना है ।
यह सब आज श्री श्याम सरीन जी ने हमारे विद्यालय में छात्रों को बताया । श्री श्याम सरीन आकाशवाणी ग्वालियर के पूर्व उद्घोषक हैं । वे वर्षों तक अपनी आवाज के जादू से श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध करते रहे हैं । वास्तव में श्री सरीन जी का यह परिचय अधूरा है । सही-सही पूरा तो अभी मैं भी नही बता सकती क्योंकि आज से पहले उनसे मेरा परिचय रेडियो के माध्यम से ही था । लेकिन आज जो परिचय हुआ वह इस विश्वास को मजबूत करने के लिये पर्याप्त है कि जीवन केवल हमारा नही है उस पर समाज व देश का भी अधिकार है । और इसे हर व्यक्ति को समझना चाहिये ।
सरीन जी के बारे में उल्लेखनीय बात एक तो यही है कि सेवा-निवृत्ति के बाद वे एक संगठन से जुड कर शेष जीवन को बहुत ही सार्थक रूप में लगाए हैं । उनके संगठन का नाम भी 'मातृवेदी' है । इसके माध्यम से वे वीर क्रान्तिकारी शहीदों की शौर्य-गाथाओं का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं । दूसरी यह कि इसके लिये वे संचार माध्यमों के मोहताज नही है जबकि आज सिर्फ पौधे को हाथ भर लगाकर वृक्षारोपण का नाम करने वाले महानुभाव बिना फोटोग्राफर के एक कदम नही चलते । और तीसरी सबसे बडी बात यह कि हर बात उनकी आत्मा से ,रोम-रोम से निकलती प्रतीत होती है । हृदय से निकली उनकी एक एक बात आज कितनी प्रभावशाली थी इसका अनुमान इसी से लगाया जासकता है कि विद्यार्थी जो किसी भी भाषण को ,और पढाने का तरीका रोचक न हुआ तो पाठ्यक्रम के ही किसी प्रसंग को भी ध्यान से नही सुनते वे और हम सब पूरे ढाई घंटे खामोशी से सुनते और रोमांचित होते रहे । सब कुछ पढा व सुना हुआ था पर आज वही सब अधिक प्रभावशाली लग रहा था । यही है अभिव्यक्ति का जादू । अन्तर से निकली आवाज का असर । क्या आश्चर्य है कि जीवन की प्रभात बेला में ही सारे सुख छोड सर्वस्व समर्पण के लिये गान्धी जी के साथ आगए थे । ( असहयोग आन्दोलन तक तो हर नौजवान उनकी आवाज के साथ ही था ) और सुभाषचन्द्र बोस के जोशीले नारे पर आबालवृद्ध नर-नारी खूनी हस्ताक्षर करने और भारत माता के चरणों में शीश चढाने के लिये दीवाने होगए थे ।
आग तो दिलों में आज भी है उसे सही दिशा में हवा देने वालों की जरूरत है । इसके लिये सशक्त स्वर में क्रान्ति व क्रान्तिकारियों का गौरवगान पहली जरूरत है । देश के हर बच्चे को पता होना चाहिये कि जिस निश्चिन्तता के साथ हवा में साँस ले रहा है वह कितनी अनमोल है । एक राष्ट्रीय भावना ही तो है जो देश से हर तरह के भ्रष्टाचार को मिटा सकती है। हर नागरिक को ईमानदार व कर्मठ बना सकती है । एक देशभक्त नागरिक भ्रष्ट नही होसकता । देशभक्ति आएगी आजादी के इतिहास को समझने से । अपने भूगोल को जानने से । मातृभूमि के प्रति कृतज्ञता का भाव होने से ।अपने भारतीय होने पर गर्व करने से ।
सरीन जी यही सब कर रहे हैं । बिना कोई शोर किये । ऐतिहासिक मातृवेदी संगठन की राह पर चलते हुए । मौन-मूक एक जमीन तैयार कर रहे हैं जिसमें राष्ट्रीयता के फूल खिलें । आत्मगौरव की फसलें लहलहाएं । वह यों कि अब किसी को आजादी के लिये विदेशी शक्ति से टकराने के लिये प्राण देकर देशभक्त कहलाने की आवश्यकता नही है । आज आवश्यकता है ईमानदारी से अपने दायित्त्वों के निर्वाह की । आवश्यकता है अनुचित के प्रति असहमति की। आवश्यकता है स्वार्थ से ऊपर समाज व देश के लिये सोचने की । यही नही अब ऐसे विचारों व अभियानों का बिना आडम्बर के प्रचार-प्रसार भी होना चाहिये ।
मेरे लिये वह हर व्यक्ति आदरणीय है जो ऐसा सोचता है और इस दिशा में कदम रखता है ।