शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

एक पेन की तलाश

यह हास्य-व्यंगात्मक संस्मरण लगभग 25 वर्ष पहले लिखा . लिखकर भूल भी गई . आज नजर पड़ी तो पोस्ट करने का विचार आया . पात्र और स्थान का नाम परिवर्तित है . आप पढ़ें  और मुस्कराएं ) 

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बक्की-झक्की राधे दर्जी को जाने क्या सूझी कि सबके सामने ही पं. सूधेलाल माड़साब की तारीफ कर गया .—

भाई कोई बुरा मानो या भला ,मास्टर हो तो पंडित सूधेलाल जैसा . कि पढ़ाए तो आवाज पूरे गाँव में गूँजे . क्या बुलन्द आवाज है भाई .जरूरत पड़ जाए है तो जन-जन तक अपना सन्देश बिना माइक के ही पहुँचा सकते हैं .और लोग भले ही बैठे-बैठे गप्प हाँकते रहें पर पंण्डित सूधेलाल को हमने कभी फालतू नही बैठे नही देखा ...

पुराने समय के मैट्रिक पास पंडित सूधेलाल मुखरैया जबसे सुरावली गाँव के प्राथमिक विद्यालय में आए हैं ,गाँवभर में चर्चित होगए हैं .मझोला कद , लम्बा चेहरा ,इक्का-दुक्का बालों के अलावा खोपड़ी सफाचट्ट हैं जिसकी आबरू बचाए रखने कानों के ऊपर चारों ओर दीवार बने हुए से सफेद बाल ,गेहुँआ रंग ,माथे पर रोली की बिन्दी ,चेहरे और पैरों के बीच दीवार बना हुआ सा पेट और पेट को हिलाती हुई तेज चाल ,सफेद झकाझक धोती-कुरता और उन्ही के रंग से मेल खाती भौंहें , दाढ़ी और कानों के ऊपर उगे बाल जो उनकी पचास पार आकर स्थिर सी होगई उम्र का ऐलान करते हैं .आँखें कान और दाँत आश्चर्यजनकरूप से दुरुस्तहैं .रोज कम से कम पन्द्रह किमी पैदल चलते हैं लेकिन तोंद की सेहत पर कोई असर नही है पैरों में हमेशा चप्पलें ही होती हैं जिनका पिछला एक सिरा चलते-चलते घिस गया है . नई चप्पलें पूरा घिस जाने पर ही आतीं हैं ..चलते समय धोती का एक सिरा हाथ में थामे वे चलते-चलते स्कूल में आकर साँस लेते हैं और लोगों की ओर देखते हुए जताते हैं कि उनसे पहले स्कूल में कोई नही आया .

"वाह पंडित जी ..भई नौकरी करो तो पंडिज्जी की तरह ."—लोग सुनाते हैं तो उनका निष्ठाभाव कई गुना बढ़जाता है .

"क्या करें भाई ,जिसका खा रहे हैं उसकी तो बजानी पड़ेगी .अब लोग घर के कामों में उलझे रहते हैं , टूसन-ऊसन करते हैं स्कूल में लेट आते हैं तो यह नौकरी के प्रति ....."

एम एल शर्मा समझ जाते हैं कि इशारा उन्ही की ओर है पर मुस्कराकर रह जाते हैं . पं. सूधेलाल से किसी की नही चलती. वशभर वे अपनी बात ही आगे रखते हैं जैसे कि एक दिन लता बहिन जी कक्षा में बच्चों की अधिक संख्या से परेशान थी . पहली कक्षा और उसमें साठ-पैंसठ बच्चे .किसको सम्हाले ,किसे पढ़ाए ..

"कक्षा में ज्यादा से ज्यादा चालीस बच्चे होने चाहिये .'एल टू आर' ( लर्निंग टू रीड) वाले तो बीस बच्चे ही कहते हैं .."

लता की बात सुनकर पंडितजी चुप कैसे रहते .बोले--

"लता बहनजी , जब एक चरवाहा सौ बकरियों को घेर सकता है तो क्या एक मास्टर साठ बच्चों को नही घेर सकता ..?"

"हाँ मास्टरजी ,घेर तो सकते हैं ..लेकिन सिर्फ घेर ही सकते हैं ."-–लता ने हँसकर कहा .

मास्टर साहब खाने के बेहद शौकीन हैं .उनका हाजमा किसी को भी चकित कर देने वाला है. कनागतों ( श्राद्ध-पक्ष) में वे भोजन के लिये आमन्त्रित करने वाले किसी भी व्यक्ति को निराश नही करते . बस आधा-एक घंटे के अन्तराल से हलवा-पूरी और दहीबड़ा खाकर कम से कम चार लोगों को कृतार्थ कर देते हैं .जब  

लेकिन सबसे ज्यादा चकित करता है उनका आत्मविश्वास भरी बुलन्द आवाज

सूधेलाल जी की आवाज तो उनके लिये एक वरदान है .किसी को अपनी बात कहने के लिये जोर नही देना पड़ता .यह बात अलग है कि उनके बार बार कहनेपर भी बच्चे शान्त नही होते .लोग पंडित जी की बातों का रस लेते हैं . तभी तो राधे दर्जी मुँह पर ही मास्टर जी की तारीफ कर गया . और सबकी आफत होगई .

सबका पढ़ाना बन्द . चाहे मिसरा जी हों या सरमा जी ,अपनी कक्षा में बच्चों को पढ़ाना छोड़ पं. सूधेलाल के व्याख्यान सुनने विवश होजाते हें .पंडित जी पढ़ाते हैं तो सिर्फ उनकी आवाज सुनाई देती है . पंडितजी का धाराप्रवाह ओजस्वी भाषण जो अक्सर एक ही तरह का होता सब अपना मुँह बाँधे सुनते हैं .और दबे दबे मुस्कराते हैं गाँव वाले भी आ खड़े होते हैं 

और सबसे पहले लेट आने वालों की जोरदार खबर लेते हैं –.."ओय कल्यान ..तू आज फिर लेट आया !..देखो तुम अब लेट आओगे तो जीवनभर लेट ही होते रहोगे .जिसने अनुशासन नही सीखा, वह कुछ सीख ही सकता .कुछ बन नही सकता  तुमने सुना होगा कि अनुशासन ही देश को महान बनाता है .जब अनुसासन एक देश को महान बना सकता है तो बच्चों को क्या नही बना सकता ?..विद्या मनुष्य को मनुष्य बनाती ..मानोगे तो फायदे में रहोगे नही तो हमारा क्या बिगड़ेगा . फिर वे बाहर खड़े गाँववालों की तरफ देखकर और जोश से भर जाते हैं—अगर गाँव में थानेदार आजाए तो लोग जी हजूरी करते हैं पर शिक्षक के लिये ठीक से दुआ-सलाम भी नहीं ..टेढ़ि जानि संका सब काहू...

उनके पीरियड में कोई पढ़ता नही है ,पढ़ ही नही सकता है इसलिये ज्यादातर छात्र खुश रहते हैं .कुछ नही रहते और पंडित जी से कोई पाठ पढ़ाने का आग्रह करते हैं तो पंडित जी का पारा चढ़जाता है –--"पाठ पढ़ा दीजिये ..अरे अभी क्या मैं झक मार रहा हूँ .पढ़ाने को कहो तो कोई भी पढ़ा सकता है पर मैं ऐसी बातें बता रहा हूँ जो मेरे पचास साल के अनुभवों का निचोड़ है .मैंने धूप में बाल सफेद नही किये ."

"पंडिज्जी आप हमें कोई कविता समझा दीजिये . अभी तक एक भी पाठ नही हुआ .."

"कविता पढ़ादो ..कविता पढ़कर क्या कवि बनोगे ?..कवियों को कोई दो कौड़ी नही पूछता . कविताओं में इतनी रुचि ठीक नही ..."

छात्र उनकी टालमटोलका मतलब खूब जानते हैं इसलिये अक्सर जटिल सवाल करते रहते हैं और पंडित जी के बगलें झाँकने का आनन्द लेते हैं .

बच्चे मुस्कराते हैं और दूसरे शिक्षक खीजते हैं कि कब इनका पीरियड खत्म हो और गाँव के लोग उन्हें सुनाकर कहते हैं-पंडीजी सही तो बोल रहे हैं .पंडीजी के चेहरे पर विजयी भाव चमक उठता है .

आज जब पंडितजी कक्षा में गए तो जाते ही उन्हें शिकायत मिली—-"पंडिज्जी ,किसी ने पप्पू के बस्ते में से उसका पेन निकाल लिया ."

"अच्छा !"--–पंडितजी को अचरज हुआ —" किसने ले लिया ?"

"यही तो पता नही है ."

"मैं लगाता हूँ पता . मेरी कक्षा में और चोरी !..राम राम चोरी सबसे बड़ा पाप है .कबसे नही मिल रहा ?"

"कल से ."

"तो मूरख ,तुझे कैसे पता कि स्कूल में ही खोया है ?"

"मैं यहाँ से सीधा घर गया . घर जाते ही मैंने हिन्दी का काम पूरा करने के लिये कापी पेन निकालना चाहा तो केवल कापी निकली . पेन बस्ते में था ही नही .."

"होसकता है रास्ते में गिर गया हो ."

"मेरा बस्ता फटा नही है .."

"हूँ ..समझा . देखो बच्चो ! तुम अभी छोटे हो विद्यार्थी हो अभी से ऐसे गुण मत सीखो कि लोग तुम्हारे ही नही तुम्हारे माँ-बाप के नाम पर थूकें .आज का बच्चा कल का नागरिक है .आज चोरी करेगा तो कल बैंक लूटेगा .लगता है तुम पर मेरी बातों का असर जरा भी नही हुआ .कहते हैं न कि कुत्ते की पूँछ को बारह साल दबाकर रखो( किसने दबाकर रखी )तो भी वो टेढ़ी ही निकलेगी . यह बहुत चिन्ता की बात है .देखो मेरे पास ऐसी चीज भी है जिसे मुँह में रखते ही चोर खुद चोरी कबूल लेता है पर मैं नहीं चाहता कि ऐसी चीज बच्चों को खिलाऊँ ....चलो, मैं पचास तक गिनती गिनूँगा . देखता हूँ कि कौन आता है खुद पेन लेकर ..एक दो ..तीन .दस ...बीस .तीस ..और पचास ..अरे कोई नही आया ."

"चलो सब खड़े हो जाओ...लातों के भूत बातों से नही मानते .बच्चे खड़े होगए तो पंडितजी हाथ में डण्डा घुमाते हुए सबको गहरी निगाहों से देखते हुए गुजरने लगे .पहला डण्डा पप्पू को मारने उठाया –" हाथ कर आगे .."

"यह क्या पंडिज्जी ..मेरा ही पेन खोया है और मुझे ही ...क्या मैं खुद अपना ही पेन चुराऊँगा ?"

"मेरी नजर में सब बराबर हैं .आजकल इन्सान का कोई भरोसा नही जब वह अपना अपहरण करवा सकता है ..तुमने समाचार नही पढ़ा ..तो क्या अपना पेन नही चुरा सकता ?"

कक्षा में हँसी का फव्वारा फूट पड़ा . लोग खिड़कियों से सटे हुए पंडित जी की प्रतिभा का आनन्द ले रहे थे .. 

"चुप रहो ."—पंडितजी दहाड़े—--"किसी पर भी हँसना आसान है .तुम लोग कुँए के मेंढ़क हो . कूपमण्डूक .बाहर की दुनिया देखो तो पता चले कि तुम....."

"हे भगवान. क्या हम यहीँ टर्र..टर्र करते रहेंगे ?"—बच्चों में से कोई बोला तो पंडितजी उधर मुड़े –

"अच्छा ! ठहर बिरमा के ! ..कमीन !..पेन तूने ही चुराया है ..लोगों के खेतों से गन्ने और बूट उखाड़ता है ..मूँगफलियाँ खोदकर ले जाता है ..मुझे सब पता है . पप्पू का पेन तूने ही चुराया है ."

इसके साथ ही अरुण की के कानों की जोरदार मालिश और खिंचाई हुई . जब पंडिज्जी को लगा कि कुछ ज्यादा होगया तो कुछ नर्म हुए -- "देखो बेटा ,पेन का न मिलना तुम्हारे साथ मेरी भी हार है इसलिये डरो मत जो पेन को ढूँढ़ने में सफल होगा उसे मैं परीक्षा में दस नम्बर ऊपर से दूँगा ..चलो बताओ ..होसकता है भूल से तुमने ही रख लिया हो ..कई बार मैं भी रख लेता हूँ .."

"ओ ..याद आया पंडितजी !"--पप्पू बोला 

"आपने कल मुझसे पेन लिया था फिर मैं लेना भूल गया और आप भी ..."

"हें !!.." पंडितजी ने कुरते की जेब तलाशी .एक पेन हाथ में आया तो बोल पड़े–--

"अरे हाँ ..हाँ ..मैंने कहा था न कि कभी कभी गलती होजाती है ."

"सो तो ठीक है पर मुझे दस नम्बर तो मिलेंगे ना ?"

"हाँ दूँगा तुझे बड़े-बड़े लड्डू ..नालायक ! शैतान लड़के मुझे ही उल्लू बनाते हैं .."

इसके साथ ही स्कूल में एक तेज ठहाका बुलन्द हुआ .

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 21 नवंबर नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (22-11-2020) को  "अन्नदाता हूँ मेहनत की  रोटी खाता हूँ"   (चर्चा अंक-3893)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  3. "सो तो ठीक है पर मुझे दस नम्बर तो मिलेंगे ना ?"
    "हाँ दूँगा तुझे बड़े-बड़े लड्डू ..नालायक ! शैतान लड़के मुझे ही उल्लू बनाते हैं .."
    इसके साथ ही स्कूल में एक तेज ठहाका बुलन्द हुआ .


    वाह! क्या खूब

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  4. दीदी, मैं तो खूब हँसी इसे पढ़कर और मुझे अपने बचपन के एक उपाध्याय सर मास्टरजी थे, उनकी याद भी आ गई।

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  5. एकाध ऐसे मास्टर हमारे ज़माने में भी निकल आते थे। लेकिन जो भी हो, मज़ा आ गया पढ़कर। इस रचना को बच्चों के स्कूल में या किसी राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर बच्चों के नाटक के रूप में भी बच्चों द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।
    इस बार के आलेख में टंकण की बहुत सारी त्रुटियाँ हैं। दोहराकर सुधार कर लें!!

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