शुक्रवार, 1 दिसंबर 2023

हृदय धरा का

हृदय धरा का 

अथाह ,असीम

नेह भर उमड़ता है,

देखकर प्रिय को

पूर्णकला सम्पन्न

भर लेता है आगोश में

वंचित से किनारों को .

भर देता है दामन बादलों का

दिल खोलकर .

 

धड़कता है हदय धरा का

किसी की आहट पर

प्रतीक्षा और धैर्य की

टकराहट पर .

हिलोरें उठतीं हैं

टकराती है पलकों के किनारों से

 

मिलती हैं जब बदहाल नदियाँ

लिपटती हैं ससुराल से आईं बेटियाँ

जैसे माँ से 

 मन ही मन सिसकता है .

हदय धरा का .

 

और गरजता भी है

हृदय धरा का

किसी के थोथे दम्भ पर

झूठे अवलम्ब पर .

अनर्थ और अतिचार पर

उफन उफन कर   

उत्ताल तरंगें मिटा देतीं हैं

हर चिह्न मनमानी का .  

 शान्त और प्रसन्न

स्नेह से सम्पन्न

लिखता है गीत

सावन की हरियाली के

फूलों भरी डाली के .

पर ध्यान रहे कि

रुष्ट हो तो

प्रलय भी लाता है .

हदय धरा का .



शनिवार, 25 नवंबर 2023

26 /11 की स्मृति में

26 नवम्बर मेरे लिये विशेष है . आज ही मेरे बड़े पुत्र प्रशान्त का जन्म हुआ . लेकिन आज का दिन मेरे साथ पूरे देश के लिये भी विशेष है क्योंकि सन् 2008 में आज के ही दिन पाकिस्तान से आए आतंकवादियों के हमले से मुम्बई दहल उठी . लगभग 164 से भी अधिक लोग मारे गए . 300 से अधिक घायल हुए . कमांडो व सेना के जवान भी शहीद हुए . आज एक बहार फिर  उन शहीदों की पुण्य स्मृति में और कसाब को पहचानने वाली नौ साल की वीर बालिका ( जो अब युवा है ) देविका को समर्पित  एक गीत आप सबके अवलोकनार्थ  प्रस्तुत है . 

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एक बार फिर उसने गैरत को ललकारा है.

सद्भावों को जैसे यह आघात करारा है .

 

दिवा-स्वप्न कबतक देखोगे ,अब तो आँखें खोलो .

कब तक व्यर्थ चुकेंगी जानें ,कुछ तो साहस तोलो .

समझ सके ना बात समझ की ,उसको क्या समझाना .

सीखा है वह चिनगारी सा जलना और जलाना .

अमन चैन से रहना उसको कहाँ गवारा है .

 

लगे समझने जब उदारता को कोई कमजोरी .

चोरी करके उलटा हमें दिखाए सीनाजोरी .

बड़े प्यार से उसको उसके घर की राह दिखाओ .

अपनी ही सीमाओं में रहने का पाठ पढ़ाओ .

समझौतों वार्ताओं से कब हुआ गुजारा है .

 

है इतिहास गवाह कि चुप रहना डर जाना है .

औरों का ही मुँह तकते रहना ,मर जाना है .

समझौतों को एक तरफ रख ,दो जैसे को तैसा .

सबको समझादो यह देश नहीं है ऐसा वैसा .

वीरों ने बलिदानों से ही इसे सँवारा है .

 

किसी शहादत पर ना हो अब कोरी नारेबाजी .

आन बान की बात नहीं है कोई सब्जी भाजी   

स्वार्थ और सत्ता से ऊपर हों अपनी सीमाएं

कोई भी गद्दार न रहे ना अपने दाँए बाँए .

तर्क-भेद सब पीछे पहले देश हमारा है 


बुधवार, 22 नवंबर 2023

राग-विराग

 अमराई को हुआ विराग

बिसरा बूढ़ा लगता बाग,

भूल रहा सुर तानें मौसम

लगे हवा भी भागमभाग .

 

रिश्तों में जंजीर नहीं है

काँटा तो है पीर नहीं है

लहरें तोड़ किनारे बहतीं

हृदय नदी के धीर नहीं है

बिगड़ गईं तानें मौसम की  

कुपित बादलों का अनुराग .

 

टूटे बिखरे स्वप्न पड़े हैं .

सब अनीति की भेंट चढ़े हैं

सिकुड़ रहें हैं आँगन गलियाँ ,

पदलिप्सा के पाँव बढ़े हैं .

उखड़ी सड़कों सी उम्मीदें

उजड़ा जैसे अभी सुहाग .

 

जो धारा में बहने वाले

सुनलें हाँ हाँ कहने वाले

अनाचार का असुर खड़ा है  

न्याय सत्य के तीर निकालें

अपनी ही रोटियाँ सेकने

अब तो ना सुलगाएं आग  

 

दरवाजे कचनार खड़ा है .

सुरभित हरसिंगार बड़ा है

फिर इस बार आम की टहनी ,

गुच्छा गुच्छा बौर जड़ा है .

मौसम बदले ना अब ऐसे

बने बेसुरा कोई राग .

अमराई को हो अनुराग

बूढ़ा बिसरा लगे न बाग .

 

 

शनिवार, 11 नवंबर 2023

सज गई दीपावली में

 

जगमगाए दीप अनगिन नयन में सखि री.

सज गयी दीपावली में हदय की नगरी .


राम देखो लौट आए सिय लखन के साथ .

फूल बरसाए हदय ने आज दोनों हाथ .

आज उमड़ी है नदी छलके नयन जल री .

राम मेरे आगए हैं अवध की नगरी .


हदय के वन में प्रभु कर ही रहे थे वास .

किन्तु भावों की अवध को अब मिला मधुमास .

मुक्त होकर उड़ चली आसा विहंगिन री .

राम मेरे लौट आए .......


जीत यह विश्वास की धीरज प्रतीक्षा की .

नीति के ध्रुव सत्य की ,सच की समीक्षा की .

कामना पूरी हुई तपरत भरत की री  .

राम मेरे लौट आए ...


पुष्प में जैसे सुरभि है नीर है सरुवर .

प्राण जैसे देह में कण कण रमे रघुवर .

राम ही चिन्तन मनन हैं राम ही गति री .

राम मेरे लौट आए...


अवनि से आकाश तक प्रभु राम का ही राज

हवाओं में गूँजती है एक ही आवाज .

मन वचन और कर्म से तू राम ही रट री .

राम मेरे आगए हैं अवध की नगरी .

 

सोमवार, 4 सितंबर 2023

सबसे आगे हम हैं

 

23 अगस्त 2023 को जब शाम साढ़े पाँच बजे से चद्रयान—3 की चन्द्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का सीधा प्रसारण किया जा रहा था देश-दुनिया के लाखों लोग प्रसारण पर टकटकी लगाए हुए थे . हम लोग भी उन्ही लाखों लोगों में से थे .पल पल धड़कनें बढ़ रही थीं . 2019 का चन्द्रयान मिशन-2 का स्मरण हो रहा था जिसमें चाँद की सतह पर उतरते उतरते से कुछ ही दूरी से आहिस्ता उतरने की बजाय पर नियंत्रण से अलग हो गया था और लक्ष्य के अनुसार सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो सकी थी . शाम 6 बजकर चार मिनट पर जैसे ही विक्रम ने बड़ी कोमलता के साथ चाँद की सतह पर कदम रखे तो रोम रोम नर्त्तन करने लगा . भारत ही नहीं पूरे देश दुनिया में बसे प्रवासी भारतीय जयहिन्द का जयघोष करके झूम उठे थे . सचमुच यह एक अविस्मरणीय ऐतिहासिक पल था . चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का अग्रणी देश हमारा भारत हम लोगों के लिये मेरे लिये यह और भी अधिक हर्ष की बात थी क्योंकि इस अभियान में हमारा बड़ा बेटा प्रशान्त लगातार सात वर्ष से जुड़ा हुआ था . मैंने कार्य के प्रति उसकी लगन और मेहनत को देखा है . अपने कार्य के प्रति उसका निष्ठावान् होना मुझे आश्वस्त करता रहा है . चन्द्रयान –2 की तरह चन्द्रयान—3 की योजना निर्माण सम्पादन खास तौर पर सॉफ्ट लैंडिंग की कार्ययोजना में भी उसकी मुख्य भूमिका रही है ..

हमारे लिये यह प्रसन्नता की बात तो है कि प्रशान्त देश के एक गौरवशाली संस्थान से जुड़ा है .किन्तु विशेष और उल्लेखनीय बात यह है कि वह बिना किसी शोर या प्रचार किये अपना काम करता रहता है . कैमरे के आगे आना उसे पसन्द नहीं ,जबकि लोग कैमरे में आने के लिये कितने लालायित रहते हैं . यही कारण है कि इस अभियान में भी वह बहुत कम दिखा है . अपनी सीट से उठकर कैमरे के सामने आना उसने बिल्कुल ज़रूरी नहीं समझा . जब बहू सुलक्षणा ने मैसेज किया कि एक बार तो सामने आएं तब कहीं सीट से उठकर आया . उसका कहना है कि हमें अपना काम करना चाहिये बस . काम बोलता है 

तब मुझे प्रशान्त पर गर्व के साथ केदारनाथ अग्रवाल की यह कविता भी याद आई --

सबसे आगे हम हैं

पाँव दुखाने में;

सबसे पीछे हम हैं

पाँव पुजाने में ।

 

सब से ऊपर हम हैं

व्योम झुकाने में;

सबसे नीचे हम हैं

नींव उठाने में ।

 

 

शनिवार, 29 जुलाई 2023

बदरिया गरजे आधी रात

 

बदरिया गरजे आधी रात .

बिजुरिया चमके आधी रात

रिमझिम रिमझिम सुधियाँ बरसें

कैसी यह बरसात 


अमराई में झूलें यादें

गाएं राग मल्हार .

महके नीबू और करोंदे

बेला हरसिंगार .

मोर पपीहा घोलें

कानों में रस की बरसात   

 

बाड़ों पर छाई हैं बेलें

पकी निबोली नीम .

कच्चे खपरैलों में ही

थी खुशियाँ भरीं असीम .

कितने किस्से और कहानी  

तारों वाली रात . बदरवा...

 

सावन में जब आ जाती   

ससुरे से सारी सखियाँ .

पनघट पर हँस हँसकर करती थी

मधुभीगी बतियाँ .

बहिन बेटियाँ सबकी साझी

एक सभी का घाट . बदरिया

 

अम्मा ने बोई लहराईं

लम्बी पीत भुजरियां.

जातीं गातीं नदी सिराने   

धारा लहर लहरिया .   

घोंट पीसते सुर्ख हुए

मेंहदी से दोनों हाथ . बदरवा...

 

जाने किस आँधी में उजड़ गए

खुशियों के मेले .

हरी घास में चलते फिरते

इन्द्रवधू के रेले .

हल के पीछे पीछे चलती थी

बगुलों की पाँत ..बदररिया  

 

सूने घाट बाट हैं सूनी

माँ बाबुल  की देहरी .

नहीं नाचते मोर सशंकित

देख घटाएं गहरी .

बीते दिन नयनों में छाए

भीगे अंसुअन गात .

बदरिया गरजे आधी रात .

गुरुवार, 29 जून 2023

जिया तुम्हारे बिना

 

तुम्हारे बिना

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मन है वीरान ,

जैसे तुम्हारे बिना

यह मकान .

मकान जो घर हुआ करता था ,

दो कमरों वाला

वह बहुत छोटा सा घर 

तुम्हारे ममत्त्व की सुगबुगाहट से  गुंजित . 

घर , जिसकी देहरी-दीवारें भले ही

नहीं थीं बड़ीं ,

पर छत को सम्हाले खड़ीं

मजबूती से .

छोटा सा आँगन, 

बड़ा था जैसे आसमान .

चहकती चिड़ियों और पतंगों वाला आसमान .

सूरज चाँद या सितारों वाला आसमान .

जिसकी खिड़कियों से देखा जा सकता था

सुदूर क्षितिज तक फैली लाली ,

किरणों की  रुपहली जाली 

अटका हुआ सूरज। 

बादलों की गडगड़ाहट सुन नाचता मोर

या अनीति का शोर 

खड़खड़ा उठती थीं खिड़कियाँ ,

विरोध में अनीति के ..

चली आती थीं खुशियाँ , बेझिझक

दस्तक बिना ही

दरवाजा हमेशा खुला रहता था

तुम हँसती थीं खुलकर  

दीवारें भी मुस्कराती थी .

गैलरी दोहराती थी तुम्हारे गीत .

आँगन में खाट पर लेटे

तारों भरे आसमान के नीचे

तुम्हारी कहानियों में घुल जाती थी चाँदनी

'जिया 'एक और ..बस वह हंस वाली कहानी

चाय के कप में मलाई के साथ

घोल देती थीं तुम धीरे से

ढेर सारी आश्वस्ति,

और बातों में विश्वास

 

तुम बिन

दीवारें झड़ रही हैं  अफसोस करती 

जाले पुरे हैं हर कोने में .

आँगन में उग आए हैं झाड़ झंखाड़ .

दरवाजा बन्द है .

एक पूरी दुनिया ,

जो तुम्हारे कारण थी ,

चली गई हैं तुम्हारे साथ ही .

साथ-साथ स्नेह और अपनत्त्व भी .हर राह सुनसान , जैसे यह मकान

तुम्हारे बिना .