रविवार, 12 मार्च 2023

ऑरेंज में क्रिसमस

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25 दिसम्बर

क्रिसमस प्रभु यीशु का जन्मदिन .यह दुनिया के बड़े स्तर पर मनाए जाने वाले त्यौहारों में से एक है . ईसाई धर्मावलम्बी-बहुल राष्ट्र होने के कारण ऑरेंज  में भी क्रिसमस पर बड़े आयोजन ,रोशनी और धूमधाम की कल्पना सहज थी . वैसे भी सिडनी डार्लिंग हार्बर में शानदार आतिशबाजी होती है फिर आज तो .....

इसलिये तय किया गया कि आज खाना बाहर ही खाएंगे और क्रिसमस की रौनक भी देखेंगे लेकिन जब श्वेता ने गूगल पर कोई अच्छा सा रेस्टोरेंट बुक करना चाहा तो सफलता नहीं मिली . पता चला कि रेस्टोरेंट ही नहीं पूरा बाजार बन्द है . हमें बड़ी हैरानी हुई . हमारे यहाँ त्यौहारों पर कितनी रौनक और धूमधाम होती है .  

चलो बाहर निकल कर देखते हैं .कहीं कुछ तो होगा . मयंक ने कहा . शाम पाँच बजे हम लोग बाहर निकले .पर सब कुछ मेरी कल्पना के विपरीत था .


 जन-शून्य चौड़ी सड़कें , शटर पड़ी दुकानें , नीरव वातावरण .चारों और सन्नाटा था मानो किसी आतंक से डरे लोग शहर को लगभग खाली कर गए हों . हम जैसे भूले भटके से इक्का दुक्का लोग और हवा में पत्ते झुलाते पेड़ शहर के जीवित होने की निशानियाँ थे . श्वेता का शॉपिंग करने का विचार तो टीवी चैनलों से गायब गाँव जैसा होगया पर अदम्य और मयंक का किसी रेस्टोरेंट में एक अच्छा डिनर लेने का विचार भी ( उपमाएं)

अपने इष्ट के जन्मदिन पर ऐसी उदासीनता –मुझे आश्चर्य हुआ . पर्व त्यौहार सांस्कृतिक परम्पराओं के निर्वाह के साथ साथ जीवन में नयापन और और मन में ताजगी लाते हैं .समय को बोझिल नहीं होने देते .

"मेरे विचार से यहाँ अधिकतर वयोवृद्ध लोग रहते हैं .युवा बाहर चले गए हैं . इतनी शान्ति और उदासीनता यही कारण होगा . इनका उत्सव इतना ही है कि ब्रेड बटर चीज़ आदि के साथ वाइन ले ली .कोई 'रिलेटिव्स' मिलने आ गए .बस."--मयंक की यह बात मुझे सही लगी .

"अभी थोड़ी देर गार्डन में बैठते हैं . सात बजे तक होसकता है कुछ दुकानें व रेस्टोरेंट खुलें..,"- यह सोचकर हम एक गार्डन में चले गए . वहाँ कुछ लोग चहलकदमी कर रहे थे . वे भारत और भारत से जुड़े देशों के ही लगते थे . दूर एक बैंच पर एक युवती चुपचाप बैठी कभी गार्डन में बैठे लोगों को देख रही थी तो कभी मोबाइल फोन में कुछ देखने लगती थी . काफी देर उसे देखती रही . वह भारतीय लग रही थी . आदत के अनुसार अन्ततः मुझसे रहा नहीं गया . उसके पास पहुँची . मुझे देख वह हल्का सा मुस्कराई . पूछने पर बताया कि वह चंडीगढ़ के पास एक गाँव से है . यहाँ हॉस्पिटल में काम करती है , किसी के साथ 'रूम शेयर' करती है . परिवार के सभी लोग पंजाब में ही हैं .

"परिवार की कमी तो खलती होगी ."

"हाँ खलती तो है आंटी पर यहाँ जॉब के अवसर काफी हैं . भागदौड़ नहीं करनी पड़ती ..जिन्दगी कूल है ."

मैं देखती हूँ कि अब 'कूल' रहना सबसे अहम् होगया है चाहे इसके लिये अपनी ज़मीन ,अपने लोग छोड़कर किसी होटल में प्लेट ही क्यों न उठानी पड़ें या हॉस्पिटल में बिस्तर चादर . सुविधा और पैसा पैरों से अपनी ज़मीन खींच रहा है .

इतनी देर में शाम गार्डन के ऊँचे और घने पेड़ों से होती हुई नीचे उतर आई थी . लोग क्रिसमस की धूम मचाएं न मचाएं पर ऊँचे घने पेड़ों में बैठे हजारों पक्षी ईश्वर के गुणगान से पूरे वातावरण को गुंजित कर रहे थे . स्ट्रीट लाइट तो जगमगाने लगी पर बाज़ार या कोई शॉप और रेस्टोरेंट वैसे ही बन्द थे जैसे कोई थका हारा या नशे की खुमारी में डूबा व्यक्ति नींद न होने पर भी आँखें बन्द किये पड़ा रहता है .

उस उदास शाम में एक सेंटाक्लॉज बने व्यक्ति ने हम सबके मन में उल्लास भर दिया . वह चहकता हुआ हमारी तरफ आया . मैरी क्रिसमस कहा ..हमने भी ुत्तर में वही कहा . फिर उसने अदम्य से हाथ मिलाया और कुछ गाते हुए झूमने लगा . पता चला कि वह एक चाइनीज़ होटल का कर्मचारी है और वैन से घर घऱ जाकर फूड-डिलेवरी कर रहा है . इसका मतलब था कि कम से कम एक जगह तो है जहाँ कुछ खाया जा सकता है . मयंक श्वेता और अदम्य की बाहर खाना खाने की योजना सफल हुई . मुझे चाइनीज़ खाना पसन्द नहीं है . वैसे भी मेरी कुछ भी खाने की इच्छा नहीं थी .मैंने केवल ऑरेंज जूस लिया , जो बहुत बढ़िया ,एकदम ताजे सन्तरों का था . सेंटा क्लॉज से मिलकर अदम्य के साथ हमें भी बड़ा अच्छा लगा . हताशा के बीच उल्लास भरने वाले लोग सचमुच वन्दनीय होते हैं .चाइनीज़ होटल में सबने खूब इनजॉय किया . वैसी फीलिंग्स (अनुभूतियों) के लिये आनन्द या खुशी शब्द फिट नहीं होते .उस समय समझ आया कि दुनिया में चीन का प्रभाव और बाज़ार विस्तार ऐसे ही नहीं हो रहा है . घर लौटते हुए चर्च के पीछे चमकते तिर्यक चन्द्रमा ने इस बात पर ध्यान नहीं जाने दिया कि सड़कों पर सन्नाटा ही नहीं , कई जगह अँधेरा भी था . क्रिसमस के दिन यह सब बड़ा अजीब लगा .

26 दिसम्बर

घर से दूर बाहर कहीं होमस्टे में रुकना मयंक के लिये सिर्फ आराम करना होता है . 25-26 दोनों दिन ऑरेंज बन्द होने की बात ने श्वेता को ( मुझे भी) जहाँ निराश किया वहीं मयंक को फुरसत से बैठने , या लेटने का अच्छा अवसर मिला . खाने पीने का सामान था ही .. पीछे बने गार्डन में पिता-पुत्र क्रिकेट खेले , शाम को गार्डन में गए वहाँ मन सचमुच गार्डन गार्डन होगया . ऊँचे मनोहर अनेक किस्म के घने पेड़ नरम हरे घास की कालीन से सजी धरती , सुन्दर फव्वारे , कल्लोल करते अनगिन पक्षी और सबसे मनोहर गुलाब-गार्डन ..छह सात रंगों के बड़े बड़े मनमोहक गुलाब के फूल ..कि देखते मन ही न भरे .. एक नेपाली परिवार गुलाबों के बीच अपने फोटो खींचने में व्यस्त था . मुझे देखते ही उत्साहित होकर उन्होंने मुझसे फोटो खींचने का आग्रह किया . मैंने कई कोणों से उनके फोटो लिये . वह शाम बहुत ही खूबसूरत रही ..पर मयंक लगभग पाँच सौ ब्लॉक वाली बड़ी जटिल पज़ल ले आया था जिसे बनाने में सारा दिन व्यस्त रहे बल्कि देर रात तक हम चारों जुटे रहे तब जाकर पूरी हो सकी . 

27 दिसम्बर की सुबह जब तक मयंक श्वेता जागते मैंने रात के बचे चावल प्याज टमाटर के साथ फ्राइ कर लिये . खाने पीने का सामान समेट लिया . चाय ब्रेड का नाश्ता करके हम लोग सिडनी की ओर चल पड़े .लौटते हुए रास्ता भी कम खूबसूरत नहीं था . कहीं घने जंगल के बीच तो कहीं लम्बे चौड़े हरे भरे मैदान के बीच बढ़िया सड़क पर कार जैसे बह रही थी . 



नदी किनीरे

रास्ते में एक नदी के किनारे हरी दूब के
गुलाब का यह फूल इतना सुन्दर 
व सुगन्धवाला था कि इसकी टहनी लाने का लोभ संवरण न कर सकीं 
 सुविस्तृत तट पर कुछ समय विराम लिया . खाना खाया . क्रिकेट खेले ,नदी की धारा में चले . वह पड़ाव भी बहुत मनोरम रहा .


     

    

 

शुक्रवार, 10 मार्च 2023

‘ऑरेंज’ में चैरी



सिडनी डायरी--10

 शीर्षक काफी जिज्ञासा भरा है न ?

जब मयंक ने बताया कि हम ऑरेंज जा रहे हैं तो मुझे लगा कि यह स्ट्राबेरी पिकिंग जैसा ही कुछ रोचक अभियान होगा . फ्रूट-पिकिंग यानी पेड़ों से खुद ही पके फल चुनना .इसके बारे में मैं सिडनी जाने से पहले ही जान चुकी थी ,जब श्वेता ने अपने हाथों स्ट्राबेरी चुनते हुए फोटो डाले , प्लम-पिकिंग के बारे में बताया . यह बात उत्साह से भर देने वाली थी . अपने हाथों पेड़ से पके फल तोड़ने के आनन्द ही अनौखा होता है . मैं उससे भलीभाँति परिचित हूँ . हमारे घर में अमरूद का पेड़ था जिसके फल खूब बड़े और मीठे होते थे . खुद ही तोड़कर खाए भी खूब औरों बाँटे भी खूब .( अफसोस कि अब वह पेड़ नहीं है ) तिलोंजरी (गाँव) में भी खेतों से टमाटर ,बैगन ,लौकी आदि खूब तोड़े हैं . स्ट्राबेरी , चैरी , प्लम ( आलूबुखारा) के पेड़ और टहनियों में लगे फल देखना तोड़ना मेरे लिये नया अनुभव होगा यह सोचकर मैं काफी उत्साहित थी . हालाँकि इस बार सर्दियों भर वर्षा का मौसम रहने के कारण फलों की पिकिंग का अवसर बन नहीं पाया था लेकिन उम्मीद बनी हुई थी . ऑरेंज जाने की बात से मुझे लगा कि ऑरेंज-पिकिंग यानी सन्तरे चुनने का सुअवसर आगया है .

यहाँ भी है लखनऊ
लेकिन ऑरेंज के लिये जिस तरह की तैयारियाँ हो रही थीं ,उससे लग रहा था कि कहीं दो चार दिन रुकने की योजना है . मैंने पहले भी लिखा है कि श्वेता इंजीनियर के साथ एक अच्छी माँ और गृहणी भी है . खाना बनाने खाने के बारे में उसके विचार मेरे या अपनी माँ जैसे ही हैं . अगर दो-चार दिन बाहर रुकना पड़े तो वह भी बाहर पिज्ज़ा बर्गर पर समय बिताने की बजाय कुछ घर का ही बनाना पसन्द करती है .इसके लिये दाल चावल मसाले घी आदि साब रख लिया .मैंने भी दिनभर के लिये मूँग दाल की कचौड़ियाँ बनाली . तभी बातों बातों में मालूम हुआ कि 'ऑरेंज' कोई फल नहीं,बल्कि एक शहर है, जहाँ हम जा रहे हैं . तब मैंने जिज्ञासावश गूगल पर ऑरेंज के बारे में कुछ जानकारियाँ भी हासिल कीं,
जैसे ऑरेंज सिडनी से लगभग 158 किमी दूर बसा ऑरेंज 'न्यू साउथ वेल्स' के मध्यपूर्व में फैले पठारी क्षेत्र में कैनवोलास पर्वत की ढलान पर बसा छोटा सा शहर है जो सन्तरा की तरह खट्टा मीठा और रसीला न सही लेकिन सुन्दर , साफसुथरा ,सुव्यवस्थित और शान्त शहर है . 
वस्तुतः ऑरेंज आधिकारिक रूप से सन् 1846 में किंग विलियम द्वितीय के सम्मान में एक गाँव के रूप में स्थापित .
शान्त सुन्दर
ऑरेंज 
मिनी एप्पल
आलूबुखारे (प्लम) से लदी टहनियाँ 

किया गया था . मूल रूप से यह विराजुरी आदिवासियों की भूमि है .बाद में ऑरेंज से मात्र 30 किमी दूर 'ओफियर' (Ophir) टाउन में सोने की खदानों , और उपजाऊ भूमि में उन्नत कृषि के कारण ऑरेंज में उल्लेखनीय प्रगति हुई . 1877 में ऑरेंज को रेलमार्ग द्वारा सिडनी से जोड़ दिया गया . 1946 तक ऑरेंज एक छोटे शहर के रूप में उन्नत होगया था . आज यह बड़े पार्कों और 'वाइनरीज' के कारण न्यू साउथ वेल्स के सुन्दर सुव्यवस्थित शहरों में गिना जाता है ,जहाँ सुकून से कुछ समय गुजारने लोग जाते रहते हैं .ऑरेंज पहुँचने के लिये अपने साधन के अलावा बस और रेल सेवा भी बहुत सुनदर और सुविधाजनक है .23 दिसम्बर 2022 को सुबह ऑरेंज के लिये मयंक ने कार की स्टेयरिंग सम्हाली और हमने अपनी सीट .
चैरी के बगीचे में 
 अब रास्ते में 'फ्रूट-पिकिंग' खोजने का सिलसिला चला . श्वेता ने जहाँ जहाँ सर्च किया , उधर उधर मयंक ने कार घुमाई . बोला ,"आज मम्मी को फ्रूट-पिकिंग का अनुभव तो कराना ही है . जहाँ ,जैसे भी मिले ." 

अन्ततः बाथर्स्ट टाउन के बाद एक जगह 'चैरी-पिकिंग' खोजने में सफल हो ही गए .वहाँ चैरी के अलावा ,मिनी एप्पल, प्लम ,अंजीर के भी बगीचे हैं . लेकिन पिकिंग के लिये चैरी के बगीचे ही तैयार थे . मिनी एप्पल और प्लम अभी पके नहीं थे . 17 डॉलर प्रति व्यक्ति के हिसाब से चैरी गार्डन में जाने का टिकिट था .हम चैरी के बगाचे में पहुँचे तो मैं वहाँ का दृश्य देख रोमांचित हुए बिना न रह सकी . गहरे लाल , मैरून हुए पके फलों से सजी चैरी की टहनियाँ पास आने का निमंत्रण दे रही थीं . चैरी चुनते खाते हुए और भी परिवार थे . मुझे खाने की बजाय तोड़ने का चाव अधिक था . "मम्मी सत्रह डॉलर हमने फल खुद तोड़कर खाने के लिये अदा किये हैं इसलिये पहले खाओ जितना चाहो .खाने के बाद बीज यहीँ डालने हैं .साथ ले जाने के लिये अलग कीमत देनी होगी ."--मयंक ने कहा .पर केवल खाना ही क्यों , टहनियों से पके फल तोड़ना क्या कम आनन्दप्रद था ? मीठे मीठे लाल जामुनी चैरी फल जीभर कर तोड़े , पूर्ण त़प्ति तक खाए . पास ही सेव के बगीचे थे . 

घर, जहाँ हम चार दिन रहे 

"माँ ये मिनी एप्पल हैं . छोटे हैं पर मीठे होते हैं . " –श्वेता ने बताया -"एप्पल पिकिंग में उतना आनन्द नहीं . आखिर कितने सेव खाओगे , दो , चार .."  खैर चैरी-पिकिंग एक प्यारा अनुभव रहा .

ऑरेंज में मयंक ने चार दिन के लिये एक घर लिया था .गृहस्वामी सिडनी या अमेरिका ,इंगलैंड जैसे दूसरे देशों में चले जाते हैं . तब ये मकान इस तरह आय का साधन भी बने रहते हैं . दो बेडरूम , हॉल सुविधायुक्त किचन पीछे बड़ा गार्डन . यहाँ सभी मकान उतने बड़े तो नहीं होते लेकिन उनमें गार्डन के लिये काफी जगह छोड़ी जाती है .सड़कें काफी चौड़ी और सुन्दर हैं पर लोग बहुत ही कम ..पड़ोस में बसी एक अंग्रेज महिला से श्वेता की बात हुई . पता चला कि इतने बड़े घर में केवल पति-पत्नी है ,एक कुत्ता और कुछ पक्षी हैं . उनका बेटा सिडनी में रहता है .यहाँ रहना उसे पसन्द नहीं .

हमने 'वूलवर्थ' से दूध ,दही मक्खन ब्रेड सलाद की सब्जियाँ खरीदी .पहली शाम तो घर से बनाकर लाया खाना पर्याप्त था . हमने तारों भरे आसमान के नीचे बैठकर चाय पी और बातें करते रहे कि हमारे यहाँ लोग गाँवों से शहरों को पलायन रोजगार और शिक्षा आदि सुविधाओं के लिये करते हैं . लेकिन यहाँ इतने शानदार घर और सुन्दर शहर को इसलिये छोड़ देते हैं कि वहाँ बड़े शहर जैसी रंगीनियाँ और सुविधाएं नहीं हैं . सचमुच पैसा सुविधाएं और पसन्द बदल देता है .

छाँव में आराम करते छोटे कंगारू
डब्बो नेशनल पार्क-- मैं अप्रैल में सिडनी आई थी . तभी से कंगारू देखने की बड़ी
 लालसा थी . यह ऑस्ट्रेलिया का राष्ट्रीय पशु है लेकिन मुझे वह भोला-भाला सा प्राणी अपनी उछाल वाली दौड़ और बच्चे के लिये पेट के साथ लगी थैली के कारण शुरु से ही बड़ा आकर्षक लगा है . ऑस्ट्रेलिया आकर कंगारू न देखा तो क्या देखा . मेरी इसी बात को ध्यान में रख इससे पहले मयंक ने दो नेशनल पार्क देख डाले पर मन नहीं भरा . एक पार्क में तो थे ही नहीं ,दूसरे में बड़े थके ,धूप से बेहाल और दयनीय सी हालत में तीन चार कंगारू दिखे जो एक पेड़ की छाँव में सिमटे बैठे थे .

गेंडा

हाँ रास्ते में सड़क पर कुचले पड़े निरीह से कंगारू अपने राष्ट्रीय पशु होने पर कड़े सवाल करते हुए से कई बार दिखे पर मुझे तो उनकी उछाल वाली चाल देखनी थी . किसी ने बताया था कि ऑरेंज जा रहे हो तो डब्बो ज़रूर जाना . ‘ टॉरंगो जू डब्बो’ में कंगारू यकीनन मिलेंगे . इसलिये दूसरा दिन हमारा डब्बो के नाम रहा .

शुतुरमुर्ग ( ऑस्ट्रिच)
डब्बो टाउन ऑरेंज से लगभग 155 किमी दूर बड़े एरिया में फैले नेशनल पार्क के लिये विशेष रूप से जाना जाता है . हम भी उसी के लिये और खास तौर पर कंगारू देखने गए थे . पार्क सचमुच बहुत बड़ा है . घूमने के लिये वहाँ किराए पर गाड़ियाँ उपलब्ध थीं . अगर तेज धूप न होती तो हम तीनों ही पैदल चलना अधिक पसन्द करते पर धूप को देखते हुए गाड़ी लेनी ही पड़ी . नेशनल पार्क जितना बड़ा और सुन्दर है , जानवरों का हाल उतना ही विचारणीय , इसके पीछे धूप बड़ा कारण थी इसलिये चीता महाशय अपनी गुफा से बाहर ही न आए . पानी के ऊपर तैरती हुई सी उभरी दो आँखों से ही पता चलता था कि ये हिप्पो महाशय हैं . शेर भी दुनिया से बेखबर से बड़े अन्यमनस्क से लगे . शेरनी जरूर  अपने बच्चों में मन बहला रही थी .यह स्वभावतः मातृत्त्व और स्त्रियोचित गुणों का ही प्रतीक है . गेंडा , शुतुरमुर्ग और बड़े कछुओं को देखना बहुत रोचक रहा .इतने बड़े कछुए मैंने कभी नहीं देखे .
भीमकाय कछुआ
इनके अलावा हाथी , जिराफ , एमू , टर्की , क्वाला , और छोटे कंगारू देखे पर आशानुरूप कंगारू देखने की लालसा डब्बो में भी पूरी न हो सकी .... 
जारी .....




 

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

मन-उन्मन

 यहाँ होता है ,

तो याद करता है बातें  

वहाँकी .

और वहाँ से निकलकर भटकता है

यहाँ..जाने कहाँ कहाँ...

व्यथा को परे झटककर

कोशिशें होती हैं .

बहलने की , उबरने की

और आनन्द में आशंकाएं

उसके समापन की .

कोई क्षण जब सामने होता है ,

देखता है उससे परे ..उस पार सुदूर..

पर गुज़र जाता है वह .

मलता है हाथ ,

चला गया वह पल ,

बिना बताए ,दूर से ही

मिल नहीं पाया उसे ,

जी नहीं पाया जीभर .  

हाय ,क्यों है यह मन ,

ऐसा उन्मन ?

जीते हुए सोचता है

अक्सर मृत्यु के बारे में ,

और देखना ,

मृत्यु के समय चाहेगा

मोहलत कुछ और जीने की .

रविवार, 19 फ़रवरी 2023

चार दिन न्यूकैसल के --2

गतांक से आगे  

27 जनवरी



सामने विशाल मालवाहक और यात्री जहाज
फोर्ट स्क्रैच्ले--नॉबी बीच के ऊपर पहाड़ी पर स्थित लगभग 200 वर्षों का इतिहास समेटे हुए यह एक स्थान सुरक्षा और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तो रहा ही है . यहाँ उस समय के सैनिकों के कपड़े जूते और दैनिक जीवन की वस्तुएं , बर्तन ,रसोई , वॉशबेसिन तोप बन्दूक सुरक्षित देखी जा सकती हैं ,अब यह पहाड़ी गन फाइरिंग और वहाँ से चारों ओर के मनोरम दृश्यावलोकन के लिये बहुत ही उपयुक्त है .

गन-फाइरिंग

गन-फाइरिंग—पारम्परिक समुद्री यात्रा के सम्मान में फोर्ट स्क्रैच्ले पर दोपहर एक बजे तोपें चलाई जाती हैं . उससे पहले की तैयारी और सावधानी देखना काफी रोमांचक होता है बहुत सारे पर्यटक इस प्रक्रिया को देखने पहुँचते हैं . 18-19 वी सदीं का कालखण्ड जैसे पुनःजीवित होजाता है . नेवी के कैप्टन निरीक्षण भी करते हैं कि फाइरिंग सुचारु रूप से हो पा रही है या नहीं.

इस पहाड़ी से एक ओर शहर तो दूरी तरफ पोर्ट पर खड़े विशाल मालवाहक जहाज , दस बारह मंजिला क्रूज़ , बड़े स्टीमर जैसे बस-स्टैण्ड पर बसें खड़ी रहती हैं और अपना नम्बर आते ही चल देती हैं .तीसरी चौथी तरफ अपनी विशालता के गर्व में लहराता और बड़े बड़े जहाजों को डुबा सकने की सामर्थ्य के अभिमान में गरजता निस्सीम सा नीलाभ सागर . उत्तुंग नीली लहरें तट से टकराकर दुग्ध-धवल होजाती हैं मानो वे हुलसकर शुष्क सूने मरुस्थलीय तट को मोतियों का हार पहनाकर बहला रही हों ,या माँ धरा को रजत की रूप-रुपहली मेखला पहना रही हों . या फिर लहरों के विशालकाय फणिधर क्रोध में गरजते फुफकारते हुए तट टकरा रहे हों और टकराकर फुफकारते हुए ढेर सारा झाग निकाल रहे हों . ऊपर तेज हवा पाँव उखाड़ने पर तुली होती है लेकिन नीचे हरे, नीले और सफेद रंग का मिश्रित मोहक सौन्दर्य आपके पाँव थाम लेता है .



फोर्ट स्क्रैच्ले पर ही कुछ आकर्षक वस्तुओं की शॉप है . विभिन्न डिजाइन के 'शार्पनर' मयंक को इतने पसन्द आए कि दस-ग्यारह खरीद डाले .6 डॉलर प्रति शॉर्पनर . वहाँ से नीचे उतरकर लंच कहाँ किया जाय ,इस पर विचार हुआ . मयंक शाकाहारी है लेकिन नई चीजें नए रेस्टोरेंट देखने का शौक है तय हुआ कि मैक्सिकन व्यंजनों का स्वाद लिया जाय .इसके लिये हमने अन्टोजिटॉस (antojitos) रेस्टोरेंट चुना . मैक्सिकन खाने में 'वैजीटेरियन' कुछ ठीक ठाक मिल जाता है . वहाँ मिला भी- वेजिटेबल्स रोल और बरिटॉ बॉउल.

हर विदेश की तरह यहाँ भी मांसाहार वालों के लिये तो अनेक अच्छे विकल्प है लेकिन शाकाहारी लोगों के लिये पिज्ज़ा ,बर्गर ,सबवे के अलावा कुछ नहीं . गनीमत है कि अब हर जगह भारतीय रेस्टोरेंट मिल जाते हैं . खाना खाने के बाद म्यूजियम देखने गए .

न्यूकैसल संग्रहालय –आदिवासी संस्कृति और परम्पराओं की प्राथमिकता रखने वाला यह म्यूजियम हर प्रसंग और घटनाओं के लिये सुन्दर पृष्ठ भूमि है . मौलिक रूप से इसकी स्थापना 1988 में हुई . अनेक प्राचीन वस्तुओं और रोचक व अनूठे उपकरणों के अलावा इस संग्रहालय का सबसे खास प्रोग्राम है –फायर एण्ड अर्थ का प्रदर्शन . यह दो बड़े उद्योग कोल और बी.एच.पी. का मिला जुला लगभग आधा घंटे का शानदार प्रदर्शन है . इसके अलावा सी-मॉन्स्टर की प्रदर्शनी भी थी 30 डॉलर के टिकिट में .

28 जनवरी--

लाइटहाउस
नॉबीज़ लाइट हाउस (Nobby ‘s Lighthouse)

सन् 1854 में स्थापित नॉबीज हैड पर स्थिति यह सक्रिय लाइट हाउस ( प्रकाश स्तम्भ) सुन्दर परिदृश्य के लिये ही नहीं बल्कि पोर्ट की निगरानी व सुरक्षा की दृष्टि से भी एक महत्त्वपूर्ण लैंडमार्क है . बलुआ पत्थर ( सैंडस्टोन) से निर्मित इस लाइटहाउस की ऊँचाई 10 मीटर है और रेंज 44 कि मी. कार पार्किंग से लगभग 800 की दूरी पर लगभग 220 मीटर ऊँची पहाड़ी पर स्थित है . यहाँ से एक तरफ न्यूकैसल सिटी का विहंगम दृश्य है और तीन तरफ लहरों पर छोटे बड़े जहाजों को झुलाता सुदूर क्षितिज तक फैला नीलाभ सागर . असीम अथाह जलागार के सामने मानव का अस्तित्त्व कितना तुच्छ है , लेकिन हदय लहरों और तूफानों से जूझते मानव के उस नगण्य से पर अजेय अस्तित्व का अभिनन्दन करता है .

झील में आतिशबाजी

क्राइस्ट चर्च मेमोरियल गार्डन

चर्च
गए . यह बहुत शान्त और हरे भरे गार्डन के बीच एक विशाल और सुन्दर भवन है .इसे शहर का हदय कहा जाता है . इसके अन्दर जाने की स्वीकृति नहीं थी ,इसलिये हमने बाहर ही कुछ देर ठण्डी छांव में विश्राम किया .  

29 जनवरी---शिवम् आज सिडनी लौट गया .शाम को झील कि किनारे शानदार आतिशबाजी भी देखने मिली . 30 जनवरी को लौटते लौटते सब एक पूल में घंटों तैरे नहाए ..लगभग पाँच बजे हम लोग सिडनी लौट आए .

चार दिन का भ्रमण यह सचमुच बहुत शानदार और अविस्मरणीय रहा .   

बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

रहे किनारे पर



इसकी उसकी राह न पकड़ी
 ,

रहे किनारे पर .


कोई शाख पकड़ लेते तो पार उतर जाते .

लगी कतारों में ,हम खुद को अलग नहीं पाते .

रेले गुज़रे कई , रहे अपने ही द्वारे पर .

इसकी उसकी राह चले ना ...


पत्ते होते तो ले जाती साथ हवा हमको .

या बह जाते धारा में ,मिलता सागर हमको .

अड़े रहे अपनी मर्जी पर , कहलाए पत्थर .

इसकी उसकी राह चले ना..


 दरवाजे नीचे थे , झुकना हमें नहीं आया .

कोई छाँव देखकर .रुकना हमें नही भाया .

दिल से निकले दो शब्दों के रहे गुजारे पर .

इसकी उसकी राह चले ना ..

 

निकले वे दरवाजे से ही नज़रें बचा बचा .

उनको मेरा तट पर रहना बिल्कुल नहीं रुचा .

रुकते वो ,यदि चलते उनके एक इशारे पर .

इसकी उसकी राह चले ना ..

 

पर हमको अफसोस नहीं पाए ना उच्च शिखर

छाँव न खोजी यहाँ वहाँ रहते अपने ही घर .

अपने पैरों चले, रहे ना किसी सहारे पर .

इसकी उसकी राह चले ना ...

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

सिडनी डायरी -9 'न्यू कैसल' में चार दिन

26 जनवरी 2023

हमारा गणतंत्र-दिवस . सुबह तड़के से ही हृदय में सदा की तरह उमंग थी . याद कर रही थी कि स्कूल में किस तरह आठ दिन पहले से ही गणतंत्र-दिवस की तैयारियाँ शुरु हो जाती थीं . स्वतन्त्रता दिवस के पर्व में बादलों की छाँव तले, कभी रिमझिम फुहारों में जहाँ गर्व के साथ देशभक्त वीरों और सेनानियों के प्राणोत्सर्ग की स्मृति में हृदय विगलित होता है , मेघ भी जैसे उनकी सजल स्मृतियों में हमारा साथ देते हैं , वहीं गणतन्त्र-दिवस शीत लहर के बीच गुनगुनी चमकीली सुहानी धूप में खुशी और धूमधाम का पर्व होता है . इस बार में स्कूल से ही नहीं अपनी मातृभूमि से भी दूर हूँ . टीवी पर प्रसारण देखना भी संभव नहीं था क्योंकि कार्यक्रम का जब प्रसारण हुआ होगा हम 'न्यू कैसल' पहुँच चुके थे .

न्यू कैसल साउथवेल्स के उत्तरी भाग में ही बसा विशाल नीलाभ जलधि की फेनिल तरंगों के सौन्दर्य से रचा बसा खूबसूरत शहर है . यह सिडनी से लगभग 170 कि.मी. दूर न्यूसाउथ वेल्स का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला शहर माना जाता है . इस बार हमारे साथ पाँच परिवारों के ग्रुप में से शिवम् ही (सपरिवार) था . शिवम् बहुत ही ऊर्जावान् और महत्त्वाकांक्षी युवक है .समय का बड़ा पाबन्द . अगर सात बजे चलना तय है तो भले ही दो छोटे बच्चों का साथ है वह सात बजे ही निकलता है . हम जब एक घंटा दूरी पर थे शिवम् केव्स बीच पहुँच चुका था .साथ में पत्नी नेहा बच्चे अमायरा व रिधान तथा नेहा की माँ मधु सिंह भी थीं.

केव्स बीचऔर हम

केव्स बीच

लगभग 42 किमी में विस्तारित केव्स बीच स्वन-सी प्रायद्वीप में स्थित है जो मॉक्वारी लेक और प्रशान्त महासागर के बीच ग्रेटर न्यूकैसल का ही भाग जो सर्फिंग और फिशिंग के लिये खासतौरपर जाना जाता है लेकिन हमारे लिये सुदूर समतल बीच , काँच सा साफ पानी और अठखेलियाँ करती ,शोर मचाती ऊँची लहरों का आकर्षण ही प्रमुख था . शरारती बच्चे लहरें जैसे बचो बचो चिल्लाती हुई आती हैं और तेज थपेड़ों से किनारे की ओर धकेल देती है और लौटते हुए पैरों के नीचे से रेत खींचती हुई लेजाती है जैसे कोई पैरों के नीचे से कोई फर्श या दरी खींचले .उस दशा में अक्सर गिर जाते हैं ,हम भी खूब गिरे , सम्हले , लहरों के साथ खेलते रहे

तट के किनारे कई जगह ऊँची चट्टानों में 'केव्स' ( सुरंगें) होने के कारण इस तट का नाम केव्स बीच पड़ा है . चट्टानों के सँकरे रास्ते से उफनती गरजती लहरों का आना जाना बड़ा रोमांचक और दर्शनीय होता है . 

किनारे पर रेत में धूप सेकते बच्चे,युवा ,वृद्ध स्त्री पुरुष आदिम युग की याद दिला रहे थे ,लेकिन कोई ध्यान नहीं देता कि कौन क्या पहने हैं ..पहने है भी या ...यहाँ परिवेश ही है ऐसा ..आचार विचार व्यवहार देशकाल के अनुकूल ही शोभा देता है असहज भी नहीं लगता . अपने देश में यहाँ का उदाहरण देना उतना ही अनुचित है ,जितना यहाँ साड़ी पहनने का आग्रह .   

घंटों तक ..लहरों में झूलना ,हिचकोले खाना जितना आनन्दमय होता है बाहर निकलकर कपड़े बदलना उतना ही कष्टकर . समुद्र के नमक बहुल जल और रेत से लिपटे कपड़े ,उसपर सार्वजनिक खुली जगहों पर छोटे फव्वारों में किसी तरह नहाना , कपड़े बदलना और उतरे रेत भरे कपड़ों को थैली में भरकर कार में डालना बड़ा असुविधाजनक...तब स्थानीय गोरे युवक युवतियों का अत्यल्प कपड़े (पट्टियाँ) पहनकर नहाना काफी प्रासंगिक और आवश्यकतानुसार ही लगा . न उतारने में झंझट न पहनने में और ना ही धोने में...

नहाने के बाद सबने घर से बनाकर लाया तृप्तिदायक खाना खाया . फिर हम सब अपने विश्राम-स्थल की ओर चल पड़े .

वार्नर्स बे और पिप्पीज लॉज

वार्नर्स बे सिटी ऑफ मॉक्वरी का एक उपनगर है ( सिटी ऑफ मॉक्वरी ग्रेटर न्यू कैसल का ही एक हिस्सा है ) जो न्यूकैसल से 15 कि मी की दूरी पर है .यहाँ 'पिप्पीज' लॉज' में तीन रूम बुक किये थे एक शिवम्-नेहा व बच्चों का ,दूसरा मयंक श्वेता और अदम्य का  और तीसरा मेरा व नेहा की मम्मी का था .नेहा की मम्मी मुम्बई से हैं पर अपने शान्त ,मितभाषी स्वभाव  के कारण सबसे थोड़ी अलग हैं . पर उनकी साहित्यिक अभिरुचि , राजनैतिक व सामान्य ज्ञान चकित करने वाला है . ये ही बातें हैं जिनके कारण हमें साथ रहना बहुत सहज लगता है . 

लॉज में कमरे साफ सुन्दर और सुविधायुक्त थे . यह स्थान इतना सुन्दर लगा कि परिदृश्य देखते आँखें न भरें . लॉज के सामने ही सुदूर तक फैली वार्नर्स खाड़ी , उसमें दौड़ते स्टीमर , सी प्लेन , नावें ..हरे-भरे पेड़ ..टहलने के लिये सुन्दर रास्ता  . मधु जी और मैं सुबह सुबह दूर तक 'वाकिंग' के लिये निकल जाते थे . वह सचमुच एक अपूर्व आनन्दमय समय था . 

आगे भी जारी ....