
हमारे लिये यह प्रसन्नता की बात तो है कि प्रशान्त देश के एक गौरवशाली संस्थान से जुड़ा है .किन्तु विशेष और उल्लेखनीय बात यह है कि वह बिना किसी शोर या प्रचार किये अपना काम करता रहता है . कैमरे के आगे आना उसे पसन्द नहीं ,जबकि लोग कैमरे में आने के लिये कितने लालायित रहते हैं . यही कारण है कि इस अभियान में भी वह बहुत कम दिखा है . अपनी सीट से उठकर कैमरे के सामने आना उसने बिल्कुल ज़रूरी नहीं समझा . जब बहू सुलक्षणा ने मैसेज किया कि एक बार तो सामने आएं तब कहीं सीट से उठकर आया .
इस बार जबकि इतनी बड़ी सफलता देश के लिये एक उपलब्धि है . अभियान की
हर टीम को अपेक्षा थी कि व्यक्तिगत् न सही इसरो प्रमुख कम से कम चन्द्रयान-3
अभियान की हर टीम को प्रधानमंत्री जी से मिलवाते ( सारे वैज्ञानिक तो अभियान में
नहीं थे न) लेकिन कैमरे और मीडिया में 'इसरो' प्रमुख ही रहे या वे लोग जो इस अभियान में थे ही
नहीं . इससे निश्चित ही लोगों को निराशा रही .जब मैंने कहा कि “ 'इसरो' प्रमुख को चन्द्रयान की पूरी टीम को कैमरे के सामने लाना चाहिये था और .प्रधानमंत्री जी भी महिला वैज्ञानिकों के साथ-साथ पूरी टीम से मिलते तो और अच्छा लगता .” तो प्रशान्त ने कहा -–" यह सही है कि
उससे प्रोत्साहन मिलता लेकिन मम्मी हम अपना काम देश के लिये करते हैं , किसी को
जताने के लिये नहीं .इसलिये कोई फ़र्क नहीं पड़ता . फोटो को लोग कितना याद रखेंगे ,
पता नहीं , पर काम हमेशा याद किया जाता है .”
तब मुझे प्रशान्त पर गर्व के साथ केदारनाथ अग्रवाल की यह कविता भी याद आई --
“सबसे आगे हम हैं
पाँव दुखाने में;
सबसे पीछे हम हैं
पाँव पुजाने में ।
सब से ऊपर हम हैं
व्योम झुकाने में;
सबसे नीचे हम हैं
नींव उठाने में ।“