रोशनी !
तुम अभी मत आओ
मेरे अँधेरे कमरे में.
किसी नए-नए पड़ोसी की तरह .
अस्त-व्यस्त है सबकुछ
किसी नए-नए पड़ोसी की तरह .
अस्त-व्यस्त है सबकुछ
तुम आओगी ,
मुझे दिखाओगी
मुझे दिखाओगी
कमरे का उखड़ा फर्श ,
दरकती छत ,झड़ती दीवारें .
होगा अहसास मुझे
अभाव और बेवशी का व्यर्थ ही .
दरकती छत ,झड़ती दीवारें .
होगा अहसास मुझे
अभाव और बेवशी का व्यर्थ ही .
बारिश नहीं होती अब
सूख गए हैं गमले के फूल,
पन्ना-पन्ना बिखर रही है डायरी.
तुम्हें जरूर नागवार होगा कि
पुराने कलेंडर मैंने अभी तक
टांग रखे हैं दीवारों पर
टांग रखे हैं दीवारों पर
कि नहीं उतारा
वर्षों से एक ही जगह लगा
चटका हुआ पुराना शीशा .
शीशे में टुकड़ा-टुकड़ा विभाजित
अपरूप मेरा अक्स ...
अभी फासला है हमारे बीच
किसी बहुमंजिला इमारत और ,
सुदूर अंचल के कच्चे खपरैल जैसा
ठहरो ! जबतक कि ,
सब कुछ संवार न लूँ ,
सब कुछ संवार न लूँ ,
या कि जो कुछ है ,
उसी में खुले दिल से
स्वागत कर सकूँ तुम्हारा
स्वागत कर सकूँ तुम्हारा
अपनेपन के विश्वास के साथ,
मुझे रहने दो ,
अपने घर के अँधेरे में ही ,
उसकी आदत है वर्षों से .
अपने घर के अँधेरे में ही ,
उसकी आदत है वर्षों से .
इसलिए रोशनी !
बावजूद इसके कि ,
तुम मुझे अच्छी लगती हो ,
प्रतीक्षा भी है तुम्हारी ,
दूरियाँ खत्म होने से पहले
बुला नहीं सकूंगी अपने घर .
.
तुम मुझे अच्छी लगती हो ,
प्रतीक्षा भी है तुम्हारी ,
दूरियाँ खत्म होने से पहले
बुला नहीं सकूंगी अपने घर .
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